स्वामी श्री ज्ञानानंद जी तीर्थ ने प्रसारित संदेश में कहा-समाधि में मन की अस्थिरता, चंचलता और विचारों का भटकाव रूक जाता है

रतलाम । मनुष्य को अपनी कीर्ति, यश, गरिमा, महिमा की सदैव रक्षा व शुद्घिकरण करना चाहिए। अपनी पेतृक धरोहर कभी नष्ट भ्रष्ट नही होने देना चाहिए। पिता के द्वारा माता के शरीर से जो शरीर उत्पन्न होते है। उनका नष्ट होना अवश्य भावी है। इस संसार में कुछ भी शाश्वत नही है सब कुछ क्षणभंगुर है। जो संसार में आया उसे जाना निश्चित है। अंतकाल तक बने रहने वाले चिरंजीवी आठ है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम साकेत में और मार्कण्डेय, अश्वथामा, बलि, व्यास, हनुमान, कृपाचार्य, परशुराम, विभिषण सृष्टी में विराजित है।
उक्त विचार भानपुरा पीठ से अनंत विभूषित भानपुरा पीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य श्री ज्ञानानंद जी तीर्थ ने पूर्व धर्मस्व मंत्री स्व. पं. मोतीलाल दवे के द्वारा स्थापित 38 वां अ.भा. रामायण मेले के अंर्तगत प्रसारित अपने संदेश में व्यक्त किए।
उन्होने कहा कि शुभ अशुभ कर्मो का फल सभी को भूगतना पड़ता है। भय निरंतर बने रहने वाला सबका अपना अपना भाव है। आस्था और विश्वास अपना अपना चुनाव। भय सबको अपने अपने दुष्कर्मो के कारण सताता है। जो श्रद्घा, भक्ति से धर्म के मार्ग पर चलता है। उसेमें ही विश्वास उपजता और बढ़ता है। बकवास विवादों और कठौर नियमों में जकड़े परिवारों में भय और अविश्वास व्याप्त रहता है।
उन्होने कहा कि अभ्यास से चित्त की एकाग्रता द्वारा प्रज्ञा की अनुभूति होती है। मन को वश में करना धर्म का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। चमत्कारों से धर्म का मूल्याकन नही होता समाधि के साथ शील की भूमिका अनिवार्य है। समाधि में मन की अस्थिरता, चंचलता और विचारों का भटकाव रूक जाता है। उक्त जानकारी रामायण मेले के संयोजक पं. राजेश दवे ने दी है।