- पुण्य स्मृति दिवस, वैशाख शुक्ला एकादशी पर विशेष
- प्रस्तुति: विजय कुमार लोढ़ा निम्बाहेडा( बेंगलोर)
आचार्य प्रवर श्री देवेन्द्र मुनि जी का जन्म राजस्थान की प्रसिद्ध जिलो की नगरी उदयपुर में संवत 1988 की कार्तिक बुदी तेरस ( धन तेरस) तदानुसार 8 नवम्बर 1931 को हुआ । आपके पिताजी का नाम श्री जीवन सिंह जी बरड़ीया व मातुश्री का नाम श्रीमति तीजा बाइ था । आप जब केवल 21 दिन के थे आपके पूज्य पिता श्री का निधन हो गया उस समय आपके पिता श्री की उम्र मात्र 27 साल ही थी ! आपने अपनी बिमारी को जानकर संथारा कर लिया था तथा अन्तिम समय में अपनी पत्नी तीज कुंवर को कहा कि मेरे पुत्र की चिन्ता मत करना यह मलमल के कपड़े पहनेगा व कलाकन्द खाएगा । आचार्य श्री का जन्म नाम धन्ना लाल था । बचपन में ही महासती श्री मदन कुंवर जी के सानिध्य में आपका बचपन बीता । आपके एक बहिन भी थी जिनकी दीक्षा आपसे पहले ही होगई जो कि महासती श्री पुष्पवती जी बनी । आचार्य श्री के पूज्य दादाजी श्री कन्हैया लालजी सा बरड़ीया भी बहुत धार्मिक संस्कारो वाले व्यक्ति थे । जब धन्नालाल मात्र तीन साल का था उस समय आचार्य श्री जवाहर लाल जी म.सा का चातुर्मास कपासन था दादाजी के साथ दर्शन हेतु गया उस नन्हे बालक को देख कर आचार्य श्री जवाहर लाल जी महाराज ने दादा जी कन्हैया लाल जी को कहा कि यह बालक अगर दीक्षा लेना चाहेतो मत रोकना यह बालक बहुत बड़ा नाम करेगा ।
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि का सानिध्य पाकर वेराग्य के बीज और प्रस्फुटित हुए और संवत 1997 की फाल्गुन शुक्ला तीज, को आपकी दीक्षा , खण्डप में आपके दादा गुरु श्री ताराचंद जी म.सा के मुखारविन्द से हुई व आपको उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी का शिष्य घोषित किया गया । आपकी बड़ी दीक्षा मोकलसर में सम्पन्न हुइ ।
गुरु जी के साथ रह कर आपने आगम ज्ञान प्राप्त किया व जैन सिद्धान्ताचार्य , शास्त्री आदि परीक्षाए बहुत ही उच्च श्रेणी से उतीर्ण की! गुरु प्रेरणा प्राप्त कर आपने साहित्य लिखना प्रारंभ किया व कइ विषयो पर आपने पुस्तके लिखी व सम्पादन किया जिसकी संख्या लगभग 400 हे।
आप वृहद साधु सम्मेलन 1952 सादड़ी मारवाड,1964 सम्मेलन अजमेर , व पूना सम्मेलन 1987 में उपस्थित रहे व सक्रिय भूमिका निभाई ! पूना सम्मेलन 1987 में आचार्य सम्राट श्री आनन्द रिषी जी म.सा ने आपको उपाचार्य पद प्रदान किया ! आचार्य श्री आनन्द रिषी जी म.सा के देवलोक गमन होने के बाद आप श्रमण संघ के तृतीय आचार्य बने।
आपका आचार्य पद चादर समारोह 28 मार्च 1993 को उदयपुर में एक विशाल समारोह में किया गया ।
आपने अपने पुज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म.सा के साथ 52 चातुर्मास किये । आपकी पूर्ण दिनचर्या ज्ञान साधना व धर्म साधना में रहती थी । आपका सबसे बड़ा गुण जोभी आपके पास जाता उनसे बहुत ही मधुर वाणी व स्नेहपूर्वक बात करते थे। आपके चादर महोत्सव के छः दिन बाद ही आपके गुरु महाराज उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म.सा का 3 अप्रेल 1993 को देवलोक गमन होगया ! उस समय जब 28 मार्च को जब आपका चादर समारोह होने वाला था उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म.सा का स्वास्थ अत्यधिक खराब चल रहा था उस समय जैन दिवाकर श्री चौथमल जी म.सा के अन्तेवासी तपस्वी श्री मोहन मुनि जी म.सा. ( काले डण्डे वाले) ने उपाध्याय श्री की सेवा का बहुत लाभ लिया व आचार्य श्री को कहा कि आपका चादर महोत्सव निर्विघ्न संपन्न होगा ओर वह सेवा में तत्पर रहे ।
आचार्य श्री का अन्तिम चातुर्मास इन्दोर का रहा !
पंजाब , हरियाणा , दिल्ली आदि प्रान्तो में विचरण के समय आपने कई स्थानो पर स्थानको के निर्माण की प्रेरणा दी ! वैशाख शुक्ला एकादशी तदानुसार
26 अप्रेल 1999 को घाटकोपर ( मुंबई) में आपका आकस्मिक देवलोक गमन होगया ! एक महान सन्त की कमी हो गइ ।
आचार्य श्री के कई बार दर्शन करने का सोभाग्य मुजे भी प्राप्त हुआ , वो आचार्य बने उस समय भी व उसके पहले भी । मार्च 1989 में जब वह उपाचार्य पद पर थे निम्बाहेड़ा पधारे थे उपाध्याय पुष्कर मुनि जी म.सा. के पावन सानिध्य में एतिहासिक स्वागत हुआ था व सेवा का अवसर प्राप्त हुआ । उसके बाद भी कइ बार उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ ।
पुण्यतिथी के पावन प्रसंग पर कोटिशः वंदन।
विजय कुमार लोढ़ा निम्बाहेड़ा
उपाध्यक्ष: अ. भा. श्वे. स्था. जैन कांफ्रेस नइ दिल्ली , ज्ञान प्रकाश योजना
मंत्री: श्री जैन दिवाकर साहित्य प्रकाशन समिती चितौड़ गढ़( रजि.)