रतलाम, 20 जुलाई। सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में गुरूवार के प्रवचन में आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा ने परिस्थिति और मनस्थिति को समझाते हुए कहा कि परिस्थिति को चक्रवती भी नहीं बदल सकता है जबकि मनस्थिति को सब बदल सकते है। मन देव भी है दानव भी, पत्थर भी है परमात्मा भी, स्वर्ग भी है नरक भी और सत्य भी है असत्य भी है।
आचार्य श्री ने कहा मन पांच प्रकार के- चिंताग्रस्त, भयग्रस्त, प्रमाद ग्रस्त, अभाव ग्रस्त और सद्भाव ग्रस्त होते है। उन्होने कहा कि चिंता और चिता में एक बिंदी का फर्क है। चिता मुर्दे की जलती है लेकिन चिंता उससे भी दस गुना ज्यादा जला देती है। इसलिए चिंता अतीत की नहीं भविष्य की करना चाहिए। जिस चिंता का कोई परिणाम न निकले, उसे करने से क्या लाभ।
आचार्य श्री ने कहा कि मन को भविष्य का डर होता है, शरीर को नहीं। शरीर जहां जाएगा, वहां भूखा नहीं रहेगा, लेकिन मन जहां जाएगा उसे भविष्य का भय रहेगा। डरना सिर्फ परमात्मा से चाहिए। बच्चों के मन में डर पैदा मत करो। बच्चों को महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज, स्वामी विवेकानंद जैसा बनाओ। इसके लिए उनके आदर्श भगवान और महापुरूष होने चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा कि वर्तमान में लोग आलस के कारण अच्छे काम नहीं करते है, लेकिन जो लोग गलत काम करते है, वह पाप है। मनुष्य के पास जो है उसे उसका आनंद नहीं है लेकिन जो नहीं है उसकी पीड़ा है। मन अभाव का कारागार है। जहां जाएगा अभाव की बात कर परेषान करेगा। हमारा एक सूत्र है मिले तो संयम वृद्धि, नहीं मिले तो तपो वृद्धि मिलना चाहिए। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन के दौरान संघ के पदाधिकारी एवं बढ़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।