आचार्यश्री ने मासक्षमण की अनुमोदना में प्रदान किया तरूण तपस्विनी का अलंकरण
रतलाम, 03 सितंबर। परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में अभ्युदय चातुर्मास के दौरान रविवार को मासक्षमण की एक और दीर्घ तपस्या पूर्ण हुई। इस पर श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शान्त-क्रांति संघ के तत्वावधान में अनुमोदना दिवस मनाया गया। आचार्यश्री ने नवदीक्षिता महासती श्री मोहकप्रभाजी मसा एवं महासती श्री गुप्तिश्री जी मसा के कठोर तप की अनुमोदना तरूण तपस्विनी से अलंकृत कर किया। श्रावक-श्राविकाओं ने कई तप और त्याग के प्रत्याख्यान लेकर मासक्षमण तप की अनुमोदना की।
आचार्यश्री ने इस मौके पर कहा कि विचारकों के अनुसार पिता की सफलता, संतान को ज्ञान देती है और संतान की सफलता पिता को सम्मान देती है। नवदीक्षिता महासती श्री मोहकप्रभाजी का कठोर तप आज ऐसे ही उनके सांसारिक माता-पिता का सम्मान बढाने वाला है। इनसे पहले गुप्तीश्रीजी ने भी पहला मासक्षमण किया है। दोनो महासती अब तरूण तपस्विनी कही जाएगी। महासती श्री निरूपणाश्रीजी मसा ने भी इस साल चौथा मासक्षमण तप किया है, जिन्हें पहले ही ये अलंकरण दिया जा चुका है। आचार्यश्री ने इस चातुर्मास में मासक्षमण करने वाले जयमंगलमुनिजी मसा को भी तरूण तपस्वी का अलंकरण प्रदान किया और कहा उनसे पहले तरूण तपस्वी युगप्रभजी ने 34 उपवास की दीर्घ तपस्या कर सबका मान बढाया हैं।
आचार्यश्री से पूर्व उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने कहा साधु-साध्वी की तपस्या बहुत कठिन और वंदनीय होती है। उन्होंने इसकी अनुमोदना ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप से करने का आव्हान किया। श्री धेर्यमुनिजी मसा ने भी अनुमोदना में तपस्या का आव्हान किया। उनकी प्रेरणा से कई साधकों ने आचार्यश्री ने तप और त्याग के प्रत्याख्यान लिए। धर्मसभा के आरंभ में तरूण तपस्वी युगप्रभजी मसा ने विचार रखे। महासती मोहकप्रभाजी धन्यवाद ज्ञापित किया। महासती प्रभावतीजी मसा ने स्तवन प्रस्तुत किया। इस मौके पर महासती की सांसारिक बहन खुशी वागमार, मुंबई से आए अशोक बाफना, रायपुर की उषा जैन ने भाव व्यक्त किए। भोपाल श्री संघ की और से पदमचंद गांधी ने आगामी चातुर्मास की विनती की। संचालन हर्षित कांठेड ने किया।
पुण्य और पुरूषार्थ की जुगलबंदी से होती है तप आराधना
धर्मसभा मेंआचार्यश्री ने कहा संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता। संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते और सपने कभी पूरे नहीं होते। तप आराधना हमेशा पुण्य और पुरूषार्थ की जुगलबंदी से होती है। तप में बहुत शक्ति होती है, तप देवताओं को भी झुका देता है। तप किए बिना इसकी ताकत का पता नहीं चलता। सूर्य की उर्जा जैसे पूरी सृष्टि को उर्जावान बनाती है, वैसे ही तप की उर्जा हमें उर्जावान बनाती है। तप आराधना की अनुमोदना अधिक से अधिक तप करने करना चाहिए।