पर्युषण महापर्व का सातवां दिवस
रतलाम। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ नीमचौक पर पर्युषण महापर्व पर प्रवचनकार पूज्य गुरुदेव श्री अरुणमुनि जी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि गौतम स्वामी ने प्रभु महावीर से पूछा की सामायिक से जीव को क्या लाभ होता है, तो प्रभु ने फरमाया की समतापूर्वक की गई मात्र 1 सामायिक करने से 92,59,24,925 पल्योपम से अधिक स्थिति का नरक गति नाम कर्म का क्षय हो जाता है।
मेरे गुरुदेव परमपूज्य श्री लाभचन्दजी म.सा. जिन्होंने की मात्र 9 वर्षों में दिक्षा ग्रहण की थी, वो सामायिक की बहुत प्रेरणा देते थे, दिल्ली में चांदनीचौक के चातुर्मास के वक्त वो श्रावकों को एक आसन पर 30/30 सामायिक करवा देते थे, इसके लिए वे रात रात भर धार्मिक कहानियां श्रावकों को सुनाते थे।
गुजरात के खम्बात शहर में जब उनका सेकेकाल में जाना हुआ तब उन्होंने वँहा की एक बढ़िया परम्परा देखी की श्रीसंघ के अध्यक्ष, मंत्री और कार्यकारिणी के सदस्यों को सामायिक करना आवश्यक होता है। अगर सामायिक नही करेगा तो संघ में किसी पद पर नही रह सकता है । वँहा के कई श्रावक श्राविकाओं को 10/15 शास्त्रों के अध्ययन कंठस्थ थे।
वँहा प्रवचन के दौरान एक सुश्राविका ने म.सा. से प्रश्न किया की हमें वर्षों हो गए सामायिक करते करते, लेकिन अभी तक हमारे भीतर समता क्यों नही आई। तब गुरुदेव ने फरमाया की जैसे भोजन करने के बाद पेट भरना चाहिए, मीठा खाने के बाद मीठा लगना चाहिए, वैसे ही सामायिक करने के बाद समता आनी चाहिए, लेकिन वो आती नही है क्योंकि हम प्रभु के बताए अनुसार नियमानुसार शुध्द सामायिक नही करते है।
भगवान महावीर के संघ में 14000 साधु, 36000 साध्वी, 1 लाख श्रावक एंव 30000 श्राविकाएं थी। लेकिन प्रभु महावीर ने राजा श्रेणिक को नरक का बंध काटने के लिये पुनिया श्रावक की एक सामायिक का फल लेने का कहा । कैसी शुध्द सामायिक होगी पुनिया श्रावक की।
राजा श्रेणिक को यह कार्य बहुत आसान लगा अपने पुत्र अभयकुमार के साथ वो पुनिया श्रावक की झोपड़ी तक जाता है। बच्चों ने कहा की पुनिया श्रावक अभी भगवान से मिल रहे है और किसी से नही मिलेंगे। आप चाहो तो उन्हें दूर से देख सकते है।
वो पुनिया श्रावक को चुपचाप सामायिक करते हुए देखने लगे। लेकिन वो देखते है की पुनिया श्रावक सामायिक में स्थिर नही थे, बैचेन लग रहे थे। तब राजा श्रेणिक सोचता है इससे ज्यादा शुद्ध सामायिक तो मेरी महारानी चेलना करती है, प्रभु ने ऐसा क्या देख लिया इस पुनिया श्रावक की सामायिक में।
पुनिया श्रावक की सामायिक पूरी हुई तो वो खड़ा होकर प्रभु से क्षमा माँगता है की भगवन आज मैने बहुत बड़ा पाप किया है आपका समय मेने आज संसार को दे दिया, सामायिक के वक्त आज मेरा चित्त स्थिर नही था, मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया।
लेकिन पुनिया श्रावक एक बहुत ही विवेकवान श्रावक था, वो सोचना है की आज ऐसा क्यों हुआ की सामायिक में मेरा मन विचलित हुआ। वो सोचता है की संगत, वाचन एंव भोजन इन तीन में से किसी कारण से मेरी सामायिक में अस्थिरता हुई है। लेकिन संगत तो मेरी बुरी नही है, वाचन में अच्छे शास्त्रों का ही करता हूँ, और भोजन भी मेरी प्रामाणिक कमाई से मेरी श्राविका के हाथ का बना हुआ करता हुँ।
उसने पत्नि को बुलाया और पूछा की आज भोजन तुमने बनाया या किसी और ने । वो श्राविका भी बहुत विवेकवान थी, वो समझ गई की आज कुछ गलत हुआ है, क्योंकि ये तो कभी भोजन में मीनमेख निकालते नही है। ऐसा पूछा है तो जरूर कोई कारण होगा ।
फिर वो कुछ याद करके बोलती है, की हाँ आज भोजन तो मैंने ही बनाया है लेकिन मुझसे आज एक पाप हो गया। जब भोजन बनाने बैठ रही थी तो घर में अग्नि नही थी, तो उस वक्त पड़ोसी के घर के बाहर से एक कंडे का आधा टुकड़ा पड़ोसी से पूछे बिना उठा लिया और उसके द्वारा अग्नि प्रज्वलित की थी, इस प्रकार दूसरे की वस्तु बिन मांगे उठाकर आज मैंने अदत्तादान का पाप कर दिया।
ऐसे विवेकवान श्रावक श्राविका थे पुनिया श्रावक और उनकी धर्मपत्नि। ऐसी दृढ़ सामायिक की वजह से ही प्रभु महावीर ने पुनिया श्रावक की सामायिक को श्रेष्ठ कहा था।
सामायिक हमेशा विधिपूर्वक करना चाहिए, सामायिक की सभी पातिया शुद्धतापूर्वक बोलना चाहिए, सामायिक शुध्द स्थान पर और सामायिक के पूरे वेश में करना चाहिए, मुहपत्ति साफ सुधरी होना चाहिए, गंदी नही होना चाहिए, शास्त्र धार्मिक किताबे जमीन पर नही रखना चाहिये।
जैसे हलवा बनाने के लिये अति आवश्यक है आटा, घी, शक्कर, पानी, चूल्हा, अग्नि, कड़ाई, चम्मच और बनाने वाला । इनमें से कोई भी एक कम हो तो हलवा नही बन पाएगा । इसी प्रकार सामायिक के जो नियम बताए है जो पातिया बताई गई है उन सबके उपयोग से ही सामायिक पूरी हो सकती है ।
सामायिक कभी जल्दबाजी में नही करना चाहिए। सामायिक में एक पाठ आता है करेमी भंते का उसमें हम प्रभु से सीधे साक्षात्कार करते है। सामायिक मतलब 48 मिनिट का साधु का चोला। सामायिक पूर्ण होने पर हम बोलते है 10 मन के,10 वचन एंव 12 काया के दोष लगे हो तो मिच्छामि दुक्कड़म। तो हमें ये दोष कौन कौन से ये भी पता होना चाहिए और उन दोषों से दूर होकर शुध्द सामायिक करना चाहिए।