रत्न – जवाहर- हिरा- नन्दा
रटते रटते हो आनन्दा
जय गुरु जैन दिवाकर
त्रय दादा गुरुदेव के दीक्षा दिवस पर विशेष
प्रस्तुति: विजय कुमार लोढ़ा निम्बाहेड़ा( बेंगलूरू)
पिता पुत्रो में वैराग्य का रंग
गच्छाधिपती पूज्य आचार्य प्रवर श्री हुक्मी चंद जी महाराज सा के समय में विक्रम संवत 1878 में कंजार्ड़ा ग्राम जो कि जिला नीमच मध्य प्रदेश में स्थित है!श्री दयाराम जी भंडारी के यंहा श्री रतन चंद जी का जन्म हुआ! इनके यंहा क्रमशः तीन पुत्रो का जन्म हुआ!
विक्रम संवत1903 को श्री जवाहर लाल जी का, संवत 1909 की आषाढ़ शुक्ला चतुर्थी को द्वितिय पुत्र श्री हीरालाल जी का और संवत 1912 की भाद्रपद शुक्ला पंचमी को( संवस्तरी महापर्व को) तृतीय पुत्र श्री नन्द लाल जी का जन्म हुआ!
पूज्य हुक्मी चंद जी म.सा के पट्टधर आचार्य श्री शिव लाल जी म.सा के एक शिष्य थे राजमल जी महाराज! विभिन्न क्षेत्रो में विचरण करते हुए अपने शिष्य मंडल के साथ कजार्ड़ा पधारे! उनकी अमृतमयी वाणी सुनकर श्री रतनचंद जी को वेराग्य जागृत हुआ। उन्होंने अपने दीक्षा लेने के भाव अपनी पत्नी श्री राजकुंवर व सालेजी ग्राम केरी निवासी ( राजस्थान में निम्बाहेड़ा तहसील में एक गांव है)श्री देवी लाल जी को बताये! अनेक उत्तर प्रत्युतर होने के बाद विक्रम संवत 1914 की जेष्ठ शुक्ला पंचमी को श्रीरतन चंद जी व देवीलाल जी ने श्री राजमल जी म. सा से दीक्षा ग्रहण की, श्री देवी लाल जी महाराज को श्री मानिक चंद जी महाराज का शिष्य घोषित किया! दीक्षा लेने के बाद दोनो मुनिवरों ने जैन आगमों का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया!
विक्रम संवत1919 में भावी पुज्य श्री चौथमल जी महाराज(श्री हुक्मी चंद जी म. सा. के गच्छ के चतुर्थ आचार्य) अपने शिष्य समुदाय के साथ कंजार्डा पधारे! जिनका सार गर्भित प्रवचन सुनकर श्री जवाहर लाल जी के ह्रदय में गहरा प्रभाव पड़ा और जीवन पर्यन्त ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर लिया!
इस व्रत का जब इनकी मातेश्वरी श्रीमति राजकुंवर को पता लगा तब पुत्र को भांति भांति काफी समजाया, किन्तु उन्होंने अपनी दीक्षा का विचार पक्का कर लिया! विक्रम संवत 1920 में भावी पूज्य श्री चौथमल जी महाराज व रतन चंद जी म. सा का चातुर्मास फलौदी था, तब कंजार्ड़ा संघ ने फलौदी पंहुच कर पूज्य श्री से निवेदन किया कि चातुर्मास के बाद आप कंजार्डा की तरफ विहार करने की कृपा करे क्यों कि श्री रतन चंद जी महाराज का पुरा परिवार दिक्षित होने वाला है!
जब रतन चंद जी ने दीक्षा अंगीकार की जब ही राजकुंवर जी की भी संयम लेने की भावना थी, पर पुत्रो के छोटे होने के कारण दीक्षा नही ले सके! फिर जवाहर लाल जी के वैराग्य की भावना देखकर लघु भ्राता हिरालाल जी एवम नन्द लाल जी ने भी दीक्षा लेने के भाव प्रकट किये!
फलोदी में आये संघ की मुनि श्री ने विनती स्वीकार की उस समय कंजार्ड़ा पधारने वाले सन्तो में आचार्य श्री शिव लाल जी महाराज, श्री राजमल जी मराराज, भावी आचार्य श्री चौथमल जी महाराज, श्री रतन चंद जी महाराज, श्री देवी लाल जी महाराज आदि आठ सन्त थे!
विक्रम संवत 1920 पौष शुक्ल छ्ठ के पवित्र दिवस श्रीमति राजकुंवर ने अपने तीनो पुत्रो सर्व श्री जवाहर लाल जी, हिरालाल जी, नन्दलाल जी को दीक्षा दिलवाई और स्वयम भी दिक्षित हो गई! पुज्य श्री ने राज कुंवर जी को दीक्षा देकर महासती श्री नवलाजी की शिष्या घोषित की! इस प्रकार श्री जवाहर लाल जी को श्रीरतन चंद जी म. सा. का शिष्य तथ हीरालाल जी एवम नंद लाल जी को जवाहर लाल जी म. सा का शिष्य घोषित किया!
तीनो ही भाइयो ने गुरुजनो के साथ रहकर आगमों का गहन अध्ययन किया!श्री जवाहर लाल जी महाराज जो कि भाइयों में बड़े थे, उन्होंने स्वयम ज्ञान सीरवा कर भाइयों को ज्ञान सिखने में बहुत सहायता करी!
एक परिवार से सभी सदस्यों का दिक्षित होना व सभी का संयम के प्रति पूर्ण समर्पण, ज्ञान का भण्डार व तिन्नाणम – तारियाणम के गुणो से परिपूर्ण हो एसे उदाहरण इतिहास में बहुत कम मिलते है! एसे श्री रतन चंद जी महाराज( पिता)व श्री जवाहर लाल जी, हिरालाल जी, नंद लाल जी ( तीनो पुत्रो) ने जिन शासन की महती प्रभावना की है, इतिहास के पृष्ठो में अमर रहेगी !
पूज्य श्री रतन चंद जी महाराज
एसे महान सन्त जिसके लिये जैन दिवाकर जी महाराज ने एक गीत लिखा है, जिसमें महान सन्तो के गुणो का वर्णन किया है उसमें पूज्य श्री रतन चंद जी म. सा. के लिये लिखा है!
रतन चंद जी महाराज पधारे, जावरा शहर माय
प्रसन्न हो सुर मांगलिक सुनता, रात समय में आय
आते आते है महा उपकारी जैन पुज्यवर याद
पूज्य दादा गुरुदेव श्री जवाहर लाल जी महाराज
शास्त्रो के जानकर, स्वाध्यायी, ज्ञान सीखाने वाले, आत्मार्थी! उनका देवलोक गमन मन्दसौर में हुआ, और कहते है कि अन्तिम समय में विशिष्ठ ज्ञान उन्हे हुआ,
और जो बाते साथी सन्तो को बताइ व अक्षरतः सत्य साबित हुई
दादा गुरुदेव श्री हिरालाल जी महाराज
श्री हिरालाल जी महाराज जो कि बचपन से ही मित्तभाषी, सरल स्वभावी, हंसमुख एवम शान्त प्रकृति के थे! संयम लेने के बाद आगमों का तल स्पर्शी अध्ययन व प्रवचन में विशेष विषय कविता के माध्यम से कहते, जनता बहुत ही प्रेम से सुनती!
कवि ह्रदय होने के कारण उस समय की राग रागिनियों के आधार पर कई भजनो, उपदेश परक गीत, लावणीयें, तथा चरित्रो की रचना की! आज भी पर्वाधिराज पर्युषण के दौरान गाये जाने वाली रचना
एवन्ता मुनिवर नाव तिराई बहता नीर में
उनकी रचना बहुत प्रसिद्ध हे! उसके अतिरिक्त म्हारी दयामाता थाने मनाऊं देवी साश्वता
पर्युषण सम्पन होने पर गाने वाला बधावे का गीत* जिन राज बधाओं एसे कई गीत लिखें! उनकी लिखी आलोयणा भी बहुत प्रसिद्ध व सरल भाषा में है! जैन सुबोध हिरावली, जैन भजन तरंगीनी, ज्ञान दर्पण आदि रचनाए मुनि श्री द्वारा रचित हे!
कविवर श्री हीरालाल जी म. सा की संचमित वैराग्य वाणी से कई आत्माए आध्यात्म साधना की पथिक बनी जिसमें जैन दिवाकर मुनि श्री चौथमल जी महाराज जिन्होनेगुरुजी द्वारा संयम लेकर एक इतिहास बनाया जो कि किसी पद पर नही थे फिर भी उनके नाम से सम्प्रदाय चलती है! इसके अतिरिक्त श्री शाकर चंद जी महाराज, श्री हजारी मल जी महाराज ( मन्दसौर)श्री माया चंद जी महाराज. मूल चन्द जी महाराज ( बड़े) आदि!
संवत 1974 का चातुर्मास आपका किशनगढ़ था, वंहा प्लेग की बिमारी फैल गई आप अजमेर पधारे पर तीव्र ज्वर आने से आसोज शुक्ला एकम को आपका देवलोक गमन हो गया!
वादीमान मर्दक दादा गुरुदेव श्री नंद लाल जी महाराज
भाइयो में सबसे छोटे पर बुद्धि में प्रखर, आगमो का गहन अध्ययन, वाद- विवाद में शास्त्र युक्त बातो से समजाने व संतुष्ठ करने की अदभूत कला! संघ, समाज व परम्परा पर कोई संकट उपस्थित होता तो उसके लिये सदैव दुर करने के लिये तत्पर, ओज मय प्रवचन शैली, उनके कई संस्मरण पुस्तको में प्रकाशित हुए! और उन्हे वादीमान मर्दक की उपाधी प्रदान की गई!
उनके प्रमुख शिष्य धेर्यवान आचार्य पूज्य श्री खुब चंद जी महाराज जो एक आदर्श आचार्य बने! मेवाड़ भूषण प्रताप मल जी म. सा आदि!
73 वर्ष का संयम पाल कर संवत 1993 की सावन बुदी तीज के दिन समाधी भाव से रतलाम में आपका देवलोक गमन हुआ!
आपकी प्रशस्ती में जैन दिवाकर जी महाराज ने एक स्तवन लिखा
म्हारा नंद मुनि यश लिधो, धर्म दिपायके रे
पण्डित रत्न शिरोमणी, देखलो आयकेरे
ऐसे परम प्रतापी त्रय दादा गुरुवर की दीक्षा तिथी पोष सुदी छ्ठ के पावन दिवस पर ह्रदय की असीम आस्था के साथ कोटिशः वंदन!
पुनः स्मरण के साथ
*रत्न जवाहर हिरा नन्दा
रटते रटते हो आनन्दा
श्रद्धावनत
विजय कुमार लोढ़ा निम्बाहेड़ा( बेंगलूरु)
प्रमुख न्यासी अ. भा. श्री जैन दिवाकर संगठन समिती रजि.
मंत्री श्री जैन दिवाकर साहित्य प्रकाशन समिती रजि.
चतुर्थ जैन वृद्धाश्रम दुर्ग चितोडगढ़( राज.)