आज की वर्तमान पििस्थतियों में जैन धर्म का महत्व और अधिक बड़ जाताहै । जैन धर्म अंिहसा प्रधान धर्म है । विविधता में एकता, समन्वय, सांजस्य स्थापति करने के लिए भगवान महावीर स्वाी ने विश्व को अहिंसा, अनेकांत जैसे उदार सिद्धांत दिए है । जिसमें सभी समस्याओं का समाान है और सभी के हित व अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी । स्व-पर का हित समाहित है । सह- अस्तित्व का अर्थ है अपने अस्तित्व की तरह अन्य प्राणियों के भी अस्तित्व को स्वीकार करना । अन्य की सत्ता को भी अपनी सत्ता के समान ही मानना । सह – अस्तित्व का तात्पर्य संघर्ष के स्थान पर सहयोग, शक्ति परीक्षण के स्थान पर समन्वय, संग्राम के स्थान पर सदबाव, सहिष्णुता हो । आधुनिक युग में मानव जीवन में संघर्ष और संग्राम ने जिस प्रकार स्थान बनाया है उसने शांति पूर्ण सह-अस्तित्व को गहरी चुनौती दी है । यह अत्यंत कष्टपूर्ण स्थिति है जब मानव-मानव के मध्य, समाज-समाज के मध्य, राष्ट्र-राष्ट्र के मध्य अपने अस्तित्व को बचाने और अन्य के अस्तित्व को मिटाने के लिए संघर्ष हो रहा है । जैन धर्म द्वारा प्रतिपादित जीवन शैली व्यक्ति को पूर्ण रूपेण परिवर्तित कर शांतिपूर्ण ,सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ाती है । जैन धर्म के सिद्धांत अहिंसा, अनेकांत और जीओ और जीने दो पर आधारित जीवन शैली यह प्रेरणा देती है कि मनुष्य किस प्रकार अपने व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व स्थापित कर सकता है । श्रावक के लिए प्रतिपादित अणुव्रत इस संदर्भ में महान उपयोगी है । जिस प्रतिपादित सिद्धांतो को जीवन में अपनाकर मानव जाति का वर्तमान और भविष्य सुखद सुंदर बन सकता है ।