जीवन की रेल पूण्य और पाप की पटरी पर दौड़ रही है- बाल ब्रम्हचारी मालवकिर्ती पू.श्री किर्तीसुधाजी म.सा.

1 अगस्त से 9 अगस्त तक राष्ट्र सन्त आचार्य सम्राट पूज्य गुरुदेव श्री आनन्दऋषि जी मसा की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम होंगे आयोजित

रतलाम । नीमचौक स्थानक पर जिनशासन प्रभाविका, ज्ञानगंगोत्री, मेवाड़ सौरभ उपप्रवर्तिनी बाल ब्रम्हचारी मालवकिर्ती पू.श्री किर्तीसुधाजी म.सा ने अपने धर्म सन्देश में कहा कि सुख चार और दु:ख हजार इसी का नाम संसार। जीवन की रेल पूण्य और पाप की पटरी पर दौड़ रही है। हम पूण्य करते नही है लेकिन पूण्य का फल चाहते है और पाप करते है लेकिन पाप का फल भुगतना नही चाहते है।
आपके पूण्य का उदय हो तो बड़ी से बड़ी बात भी किसी को बोल दो तो सामने वाला हल्के में ले लेगा और पाप का उदय हो तो छोटी सी बात में भी विवाद हो जाएगा और हो सकता है आपकी पिटाई भी हो जाए। किसी के कपड़े अलमारी में समा नही रहे है और कोई एक कपड़े के लिए तरस रहा है किसी । किसी के बार अन्न के भंडार है कोई अन्न के दाने को तरस रहा है ।
पूण्य का उदय आने पर हर बात अनुकूल होती चली जाती है और पाप का उदय आने पर अनुकूलता भी प्रतिकूलता में बदल जाती है। पूण्य का उदय होता है तो आत्मा का संयोग भी अच्छा मिलता है,अर्थात परिवार मित्र अच्छे मिलते है। और पाप का उदय हो तो सही करने पर भी गलत हो जाता है।
जैसे की एक पति पत्नि थे उनकी आपस में बनती नही थी, नित विवाद होते रहते थे, आए दिन घर में क्लेश का वातावरण बन जाता था। पत्नि भोजन बनाती तो कभी चावल कच्चे रह गए पति ने टोक दिया पत्नि का मुँह फूल गया, कभी सब्जी में नमक ज्यादा कभी रोटी जली हुई इन बातों से घर में हमेशा विवाद होता रहता था।
पति ने अपने करीबी मित्र को व्यथा सुनाई की घर में हमेशा क्लेश होता है, इससे मन अशांत रहता है, व्यापार व्यसाय में भी फर्क पड़ता है, मित्र ने कारण पूछा और बात पता चलने पर समझाया की कभी कभी खाने की तारीफ कर दिया कर भाभी खुश हो जाएगी।
एक दिन शाम को दुकान से घर गया, और खाने बैठा मित्र की बात याद आई तो भोजन करते हुए बोला की आज तो सब्जी बहुत अच्छी बनी है फिर थोड़ी देर बाद बोला फलके भी नरम नरम बहुत अच्छे है, पत्नि ने कोई जवाब नही दिया फिर बोला आज तो भोजन बहुत बढिय़ा बना है। इतना सुनते ही पत्नि उठी और एक जोरदार थप्पड़ पति को मारा और कहा रोज में खाना बनाती हूँ तब तो मिन मेख निकालते हो, आज मुझे बुखार था तो पड़ोसन से खाना बनवाया तो आज तुम्हे अच्छा लग गया।
मतलब योग खराब हो तो अच्छी कही हुई बात भी सामने वाले को बुरी लग सकती है।
मेवाड़ के महाराणा जिनके नाम से दुश्मन काँपते थे, शत्रु सेना तीतर बीतर हो जाती थी, दिल्ली सल्तनत भी जिनसे भय रखती थी जब उनके पाप का उदय आया तो उन्हें जंगल में दर दर भटकना पड़ा, भूख मिटाने के लिए घाँस की रोटी तक खाना पड़ी। एक बार वे भूख से बहुत व्याकुल थे, जंगल में पेड़ के नीचे उन्हें एक भिखारी दिखा जिसके हाथ में दो रोटी थी, महाराणा की आँखों में रोटी देककर चमक आ गई। और भूख से व्याकुल होने के कारण एक समय का महाराणा भिखारी से याचना करता है की मैं भी भूखा हूँ एक रोटी मुझे दे दो । भिखारी ने उन्हें रोटी दे दी। महाराणा रोटी को हाथ में लेकर रोटी को देख रहे है और जैसे ही खाने के लिये मुँह की तरफ हाथ बढ़ाया एक नेवला आया और उनके हाथ से वो रोटी छीन कर भाग गया। ये है अशुभ कर्म का उदय ।
भूख शब्द दो अक्षरों से मिल कर बना है भू और ख। भू मतलब पृथ्वी और ख मतलब आकाश। भूख मिटाने के लिए व्यक्ति धरती आकाश एक कर देता है । ऐसी होती है भूख।
महाभारत युद्ध में गाँधारी के 100 के 100 पुत्र मारे गए । एक बेटा भी मर जाए तो दु:ख का पहाड़ टूट पड़ता है उसके तो 100 पुत्र मारे गए थे। वो युध्द भूमि में जाती है अपने मन की आँखों से अपने मृत पुत्रों को देखने के लिए। बेटों की लाश पर वो आँसू बहाती है। उधर उसे आस पास आम के पेड़ से आम की खुशबु आई उसे भुख लगी तो वो आम के पेड़ के नीचे पँहुची और आम तोडऩे का प्रयास करने लगी लेकिन आम ऊपर थे। वो अपने पुत्रों की लाश के ऊपर लाश रखती गई और उन लाशों के ऊपर चढ़कर आम तोड़कर खाने लगी, उसे संकोच भी हो रहा था की कोई उसे इस तरह देख न ले।
तभी वँहा श्रीकृष्ण पँहुचे गाँधारी आपने कृत्य पर बहुत शर्मिंदा हुई लेकिन फिर बोली की इस दुनिया में बुढ़ापा बहुत बड़ा दुख है, हाथ पाँव काम नही करते मनचाहा खाने पीने को नही मिलता, खाने के लिए दाँत नही होते, उससे भी बड़ा दुख है गरीबी और गरीबी से भी बड़ा दुख है पुत्र वियोग लेकिन दुनिया का सबसे बड़ा दु:ख है भूख ।
भूख मिटाने के लिए इंसान रात दिन दौड़ भाग करता रहता है, इंसान का पेट तो भर जाता है लेकिन पेटी नही भरती है, और यह अंतहीन दौड़ चलती रहती है ।
कब किस पाप का उदय आ जाए यह निश्चित नही है, इसलिए पाप का उदय आए उससे पहले ही ऐसी करनी करो ऐसी पुण्यवानी करो की पाप का उदय आए ही नही । तप, जप, ध्यान, दान शील से अपने कर्मों को खपाने का पर्याय करो। गुरुणी जी के प्रोत्साहन एंव आशीर्वाद से नीमचौक श्रीसंघ में दीर्घ तपस्याओं का दौर निरंतर जारी है। इसी क्रम में संघ के मंत्री गुनवन्त मालवी, एंव युवा वन्दन पितलिया और भी कुछ श्रावक श्राविकाओं के गुप्त रूप से आज 7 उपवास की तपस्या चल रही है । तेले की और आयम्बिल की लड़ी भी निरन्तर जारी है। दिनांक 1 अगस्त से 9 अगस्त तक राष्ट्र सन्त आचार्य सम्राट पूज्य गुरुदेव श्री आनन्दऋषि जी मसा की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम नवकार मन्त्र के जाप, एकासन, दया, नमुठ्ठान के जाप आदि रखे जाएंगे।