रतलाम । नीमचौक स्थानक से जिनशासन प्रभाविका, ज्ञानगंगोत्री, मेवाड़ सौरभ उपप्रवर्तिनी बाल ब्रम्हचारी मालवकिर्ती पू.श्री किर्तीसुधाजी म.सा ने अपने धर्म सन्देश में कहा कि गौतम स्वामी प्रभु महावीर से पूछते है, इस संसार में सबसे बड़ा दु:ख किसका है । उत्तराध्ययन सूत्र के 19वें अध्याय की 25वीं गाथा में फरमाया की जन्म में दुख, जरा (बुढापे) में दु:ख, व्याधि में दु:ख है और मृत्यु में भी दु:ख है । इस सारे संसार में दु:ख ही दु:ख है। जन्म का समय हो या मृत्यु का असहनीय वेदना होती है।
संसार के दुखों से मुक्त होने के लिए परमात्मा ने हमे साधना दी है, ये साधना है नवकार महामन्त्र । नवकार की साधना जन्म जन्मांतर के पापों को धो सकती है। अभी तक आप इस साधना का महत्व समझ नही पाए है। नवकार मन्त्र के जाप से सिंह लोमड़ी बन जाती है, राक्षस रक्षक हो जाता है, प्रेत प्रीत करने लगता है, डाकन डाकिनी सारे व्यवधान दूर हो जाते है।
चन्दन के वृक्ष के आसपास साँप लिपटे रहते है, लेकिन जब गरुड़ की आवाज आती है तो सारे साँप पलायन कर जाते है, वैसे ही जो नवकार मन्त्र में तल्लीन हो जाते है उसके सारे पाप पलायन कर जाते है।
अंतिम समय में भी नवकार का आलम्बन मिल जाए तो बेड़ा पार हो जाता है। राजकुमार पार्श्व कुमार काशी नगरी में मेला भृमण हेतु निकले। वँहा पर कमठ अग्नि साधना कर रहा था। हजारों लोग उसकी वाह वाही कर रहे थे। पार्श्व कुमार ने वँहा का वातावरण देखा और अवधि ज्ञान से जान लिया की इस अग्नि की लकड़ी में नाग नागिन का जोड़ा है (तीर्थंकर आत्मा केवल ज्ञान के पहले ही 3 ज्ञान की धारक होती है) ।
उन्होंने कमठ को अग्नि साधना करने से रोका और कहा की इसमें जीव हिंसा हो रही है लकड़ी में नाग नागिन है। अहंकारी कमठ ने कहा आप समझते नही है यह अग्नि साधना कोई सहज कार्य नही है, पार्श्व कुमार ने बिना देर किए अग्नि में से एक लकड़ी निकाली और उसके दो फाड़ किये लकड़ी के अंदर से नाग नागिन का जलता हुआ जोड़ा निकल कर गिरा। पार्श्व कुमार ने उस जोड़े को सांत्वना दी और ये जानकर की अब इनका अंतिम समय निकट है उन्हें संथारा करवा दिया । जगत के 84 लाख जीवों से क्षमायाचना करवा दी और नवकार मन्त्र सुनाने लगे, वो जोड़ा जो कुछ देर पहले अग्नि में तड़प रहा था, अपनी वेदना भूलकर नवकार मन्त्र में तल्लीन हो गया, जिसने जीवन भर नवकार नही सुना वो अंत समय में नवकार सुनकर देह त्याग दी और धरणेन्द्र पद्मावती देव बन गए। और एकाभवतारी बनकर देवता का आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध बुद्ध आत्मा बनेगी। आज भी जो प्रभु पार्श्वनाथ की भक्ति करता है धरणेन्द्र पद्मावती उसके सहयोगी बनते है ।
नवकार महामन्त्र बहुत पावरफुल है । मात्र नमो अरिहंताणं बोलने से तीर्थंकरों और 9 करोड़ केवल ज्ञानी आत्माओं को नमस्कार हो जाता है, नमो सिद्धानम बोलने से अनन्तानन्त सिद्ध भगवन्तों को नमन हो जाता है, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्व साहूणं बोलने मात्र से 9000 करोड़ साध्वी, 2000 करोड़ साधु भगवन्तों को हमारा वन्दन नमस्कार हो जाता है।
राज्य के मुख्य मंत्री से हमारा परिचय हो तो लोग कहते है की उनकी पँहुच ऊपर तक है, इनसे पंगा नही लेना है। और अगर प्रधानमंत्री से हमारा परिचय हो जाए तो और भी बड़ी बात हो जाए। शासन प्रशासन खुद हमारी रक्षा करता है। फिर हमारा परिचय तो नवकार महामन्त्र से है कितनी सिद्ध बुद्ध आत्माओं से हमारे तार डायरेक्ट जुड़े है कितनी आत्माए हमारी रक्षा करेगी। हम भी तो हमेशा नवकार का जप करते है फिर हमारा काम क्यों नही बनता है, क्योंकि हम चमत्कार को नमस्कार करते है । जिस दिन हम यह बात समझ लेंगे की अरिहंत ही हमारे देव है, गुरू हमारा निग्रन्थ है और दया ही धर्म है उस दिन नवकार मन्त्र का महत्व हम समझेंगे । नवकार मन्त्र की अन्य किसी मन्त्र से तुलना करना मतलब कोहिनूर की तुलना काँच के टुकड़े से करने के बराबर है। नवकार हत्यारे को हरी बना देता है। नवकार बोलने से ही नही लिखने मात्र से भी फल दे देता है। 12 चक्रवर्ती हुए है उनमें से 10 स्वर्ग में और 2 नर्क में गए है। संभम और ब्रह्मदत्त नर्क में गए। चक्रवर्ती की सेवा में 25000 देवता रहते है। जिसमें 14000 रत्न की रक्षा करते है, 9000 निधान की, 1000 देवता दाँयी भुजा की और 1000 बांई भुजा की रक्षा करते है । चक्रवर्ती 6 खण्ड के मालिक है किंतु यह चक्रवर्ती 7वी खण्ड पर विजय के लिये निकल पड़ा, 25000 देवताओं ने 7वीं खण्ड पर जाने और उसकी रक्षा करने से मना कर दिया । बीच समुद्र में जाकर वो अट्टाहस करता है और देवताओं की तरफ देखकर कहता है तुम्हारे बिना में मेरी नाव चल रही है तो देवताओं ने कहा इस नाव पर नवकार लिखा है इसलिए आप बचे हुए हो, अहंकार के वशीभूत होकर उसने नाव पर लिखा हुआ नवकार मिटा दिया, नवकार के मिटते ही नाव डूब गई और वो चक्रवर्ती 7वीं नरक में गया ।
इस महा फलदायी नवकार महामन्त्र के जाप कल रविवार 1 अगस्त को प्रात: 8.30 से 9.30 बजे करना है । और राष्ट्र सन्त आचार्य भगवन आनन्द ऋषि जी मसा के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में होने वाले एक करोड़ इक्कीस लाख जाप में अपनी भी सहभागिता दर्ज करवानी है। पूज्याश्री आराधनाश्री जी ने अपने धर्म सन्देश में फरमाया की स्वप्न 72 प्रकार के होते है । जिसमें से 30 उच्च कोटि के और 42 साधारण प्रकार के होते हैं। तीर्थंकर की माता इन 30 में से 14 स्वप्न देखती है, चक्रवर्ती की माता भी 30 में से 14 देखती है, लेकिन तीर्थंकर की माता स्पष्ट स्वप्न देखती है और चक्रवर्ती की माता धुंधले स्वप्न देखती है। वासुदेव की माता 7 स्वप्न देखती है, बलदेव की माता 4 स्वप्न देखती है। राजा और साधु साध्वी की माता 1 स्वप्न देखती है ।जब भी अच्छा स्वप्न आए तो तुरंत बैठकर साधना करना चाहिए चाहे कितनी भी रात बाकी हो, लेकिन फिर सोना नही चाहिये, अगर स्वप्न के बाद सो गए तो वो निष्फल हो जाता है। बुरा सपना आए तो करवट बदल कर सो जाना चाहिए। उत्तम स्वप्न आए तो हर किसी को नही बताना चाहिए नही तो गलत अर्थ बता देगा और स्वप्न निष्फल हो जाएगा, स्वप्न के बारे में किसी अनुभवी को या गुरू को ही बताना चाहिए।