रतलाम । धर्म के आचरण से वैराग्य, योग से ज्ञान, ज्ञान से मोक्ष और भक्ति भक्तों को सुख देने वाली होती है।ज्ञान और विज्ञान एक दुसरे के अधीन है भक्ति स्वतंत्र है। भक्ति दुसरे साधन का सहारा है अपेक्षा नही है। भक्ति अनुपम और सुख का मूल है। प्राणी को मुक्ति के लिएभक्ति, ज्ञान और वैराग्य की जरूरत होती है। काम, मद, दम्भ रहित भक्ति से ज्ञान, ज्ञान से सद्बुद्घि और वैराग्य से त्याग इससे आत्मज्ञान का सदा उद्योग करना चाहिए। मेरी बुद्घि, प्राण, मन, देह और शुद्घ चेतन आत्मा है ,यही वेदान्त विचार आत्माज्ञान को पुष्ट करता है। व्यक्ति का परिचय कर्म और बोलने से प्रकट होता है। उक्त विचार भानपुरा पीठ से अनंत विभूषित भानपुरा पीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य श्री ज्ञानानंद जी तीर्थ ने पूर्व धर्मस्व मंत्री स्व. पं. मोतीलाल दवे के द्वारा स्थापित 38 वां अ.भा. रामायण मेले के अंर्तगत प्रसारित अपने संदेश में व्यक्त किए।
उक्त जानकारी रामायण मेले के संयोजक पं. राजेश दवे ने दी है।