मानवता को शर्मसार करती है सियासत

रतलाम । सारी दुनिया एक दूसरे का हाथ थाम कर एक दूसरे के कंधे संभाल कर हौसला अफजाई कर रहे हैं मुसीबत में फंसे हुए लोगों की जान बचा रहे महामारी के इस दुष्चक्र का सब तोड़ ढूंढने में लगे हुए हैं जितना मानवता का नुकसान हुआ है और आगे ना हो इसके लिए प्रयासरत है युद्ध स्तर पर वैक्सीन बनाने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक जुटे हुए एक दूसरे को तकनीक जुटा रहे हैं अपना अनुभव साझा कर रहे हैं ताकि इस दुष्ट महामारी का कोई उपाय कारगर हो और मनुष्य कोम को बचाया जा सके । लेकिन हमारे देश की राजनीति ने इस मानवीय आपदा को भी अपनी सियासत के आगे मात दे दी । अपनी स्वार्थ सिद्धि और सत्ता के मोह तथा अहंकार के नशे में अपने ही देश के गरीब और लाचार मजदूरों को मरने पर छोड़ दिया । धिक्कार है ऐसी सियासत और राजनीति पर इसी विषय पर शिक्षक सांस्कृतिक संगठन ने ऑनलाईन साप्ताहिक परिचर्चा मानवता पर सियासत भारी विषय पर आयोजित की गई, जिसमें शहर के शिक्षाविद बुद्धिजीवियों ने अपने विचार प्रेषित की।
विषय प्रवर्तन करते हुए प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉक्टर मुरलीधर चांदनी वाला ने कहा कि कोरोनाकाल में मानवता पर सियासत भारी न होती, तो बेशक हमें ये दुर्दिन नहीं देखने पड़ते। उधर कोरोना वायरस अपने पाँव पसार रहा था और इधर सियासत का बाजार गर्म था। दिल्ली के शाहीनबाग में सियासत ने कोरोना के लिये जाजम बिछाई और हमारे शांत और साफ-सुथरे प्रदेश में सत्ता के लिये घमासान ने सब दरवाजे कोरोना के लिये खोल दिये।
संघर्ष के इन दिनों में मेडिकल से जुड़े लोग, पुलिस, पत्रकार, शिक्षक और समाजसेवियों ने अपना-अपना मोर्चा संभाला और मानवता को शर्मसार होने से बचाने के लिये जान तक जोखिम में डाली, लेकिन सियासत के प्रपंच में उलझे हुए राजनेता कहलाने का भ्रम पालने वाले लोग घर में छिप कर उठा-पटक करते रहे। प्रदेश के हालात बिगाडऩे के लिये ये ही जिम्मेदार हैं।
सियासत कभी भी मानवता की पक्षधर रही ही नहीं है। मानवतावादी और समाजसेवी का मुखौटा लगा कर सियासत ने मानवता को कुचलने की ही कसम खा रखी है। हमारा श्रमिकवर्ग लाचार है, बच्चे-बूढे-औरतें अब भी नंगे पाँव मीलों दूर अपने घर लौटने की जद्दोजहद में हैं। उनके लिये सियासत का दिल नहीं पसीजता। खतरा अभी टला नहीं है और रसूखदारों के लिये वायुयान सेवा आरंभ हो रही है मानवता पर सियासत का हावी होना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह आदमी की साँसों को तोड़ डालेगा और वे सब दरवाजे बंद कर देगा जो स्वर्णिम भारत के सपनों की ओर खुलते हैं।
संस्था अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कहा कि सियासत और मानवता का रिश्ता हमेशा 36 का रहा है । मानवता और संवेदनाएं दोनों ही गुण सियासतदार के लिए दूर की कौड़ी है । सियासत के लोग इंसानियत और मानव सेवा अपने स्वार्थ और रंग रूप धर्म के हिसाब से करने लगे है जो गिरते हुए राजनीतिक मूल्यों की निशानी है । पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी सुलोचना शर्मा ने कहा कि अब मानवीय संवेदनाएं कहां है राजनीतिक लोग सोच और विचारों से इतने निकृष्ट हो चुके हैं कि उनमें तनिक भी संवेदनाएं नाम की वस्तु बची हुई नहीं है वह अपने हित और लाभ के आगे सब कुछ भूल जाते हैं उनके लिए सत्ता ही प्रमुख सेवा है।
वरिष्ठ शिक्षक राजेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं निर्लज्जता की पराकाष्ठा पर पहुंच गई है अपने स्वार्थ और वोट बैंक की राजनीति मानवता को शर्मसार कर दिया है । वरिष्ठ सेवानिवृत्त शिक्षक रमेश उपाध्याय ने कहा कि नेताओं ने अपनी गंदी राजनीति से मानवीय संवेदनाओं की हत्या कर दी है बेचारे मजदूर फुटबॉल की तरह इधर से उधर भटक रहे हैं।
कवि एवं व्यंग्यकार श्याम सुंदर भाटी प्रसिद्ध कवि गोपालदास नीरज की पंक्तियों के साथ कहां की सियासत पर कवि निरज की यह पंक्तियाँ एकदम सही उतरती है ।
नैताओं ने गांधी की कसम तक बैची,कवियों ने निराला की कलम तक बैची
मत पूछ के इस दौर में क्या क्या न बिका, सियासतदारों ने आंखों की शरम तक बैची
शिक्षक दिलीप वर्मा ने कहा कि राजनीति और राजनीतिक लोग अपनी सत्ता बचाने और सत्ता के लालच में कोरोना जैसी महामारी को भी अनदेखा कर गए हैं जिसका परिणाम हमारे सामने है ।
शिक्षक राधेश्याम तोगडे ने कहा कि सत्ता की राजनीति इतनी निर्दयी हो सकती है यह आज देखा हिंदुस्तान में जब गरीब बेसहारा मजदूर अपना परिवार बचाने में लगे हैं और यह अपना सत्ता का घर बचाने में लगे है । सेवानिवृत्त शिक्षक चंद्रकांत वाफगांवकर ने कहा कि देश की सियासत पर हंसी आती है जिन सियासत दार को सत्ता की चाबी मजदूर देते हैं उन्हीं मजदूरों का निवाला छीन लिया उन्हें बेसहारा भटकने के लिए छोड़ दिया । शिक्षिका भारती उपाध्याय ने कहा कि हिंदुस्तान की राजनीति अपनी सत्ता बचाने के लिए अपने ही लोगों की बलि दे रही है सरकार बची रहे । मजदूर चाहे मरे यह जिए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ? शिक्षिका कविता सक्सेना ने कहा कि यह घोर अन्याय हमारे हिंदुस्तान में ही देखने को मिलता है जब हम हमारे ही भाइयों का इस तरह से दमन और शोषण का शिकार होते देखते है । वरिष्ठ शिक्षक देवेंद्र वाघेला ने कहा कि सियासत दारो की नजर में न मजदूरों का दर्द अहमियत रखता है नाही बीमारों का दर्द? उन्हें सिर्फ अपनी हुकूमत से मतलब रहता है बस हुकूमत बनी रहे यही उनका उद्देश्य रहता है ? परिचर्चा में शिक्षक दशरथ जोशी, रमेश चंद परमार, कृष्ण चंद्र ठाकुर, नरेंद्र सिंह राठौड़, आरती त्रिवेदी, मिथिलेश मिश्रा, अंजुम खान, चंद्रशेखर लश्कर ई, मनोज कसेरा, बी.के.जोशी, रक्षा के कुमार आदि ने भाग लिया परिचर्चा का संचालन सचिव दिलीप वर्मा एवं आभार दिनेश शर्मा ने व्यक्त किया ।