पिता की महिमा को गाया नही जाता पर होती जरूर है- शतावधानी पूज्या श्री गुरु कीर्ति जी
तलाम । इस संसार में माँ ही तीरथ है माँ ही तपस्या है। सनातन मान्यता के अनुसार ब्रह्मा विष्णु महेश और हमारी मान्यता देव गुरु धर्म। सनातन मानता है की ब्रह्मा संसार के रचयिता है, विष्णु पालनहार है और महेश तारणहार। लेकिन ब्रम्हा में विष्णु का समावेश नही हो सकता, विष्णु में महेश का समावेश नही हो सकता है। तीनों के अपने अपने कार्य है ।
लेकिन जो माँ होती है उसमें ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों का समावेश होता है, वो ही जन्मदाता होती है वो ही पालनहार होती है और वो ही हमारी तारणहार होती है ।
एक आचार्य 10 अध्यापकों से श्रेष्ठ होता है, एक पिता 100 आचार्यो से श्रेष्ठ होता है और एक माता 1000 पिता से श्रेष्ठ है। जहाँ में जिसका अंत नही उसे आत्मा कहते है, और संसार में जिसका अंत नही उसे माँ कहते है। माँ एक वटवृक्ष के समान होती है, वटवृक्ष का बीज छोटा होता है लेकिन उस बीज में इतनी शक्ति होती है जो विशाल छायादार वृक्ष बना देता है। माँ अपने बच्चे को सुसंस्कारित करके वटवृक्ष बना सकती है।
बहुत धार्मिक व्यक्ति है सम्पन्न व्यक्ति है रोज धर्मस्थान में घण्टो सामायिक करते है, उनके घर जाना हुआ भरा पूरा परिवार है। घर के सबसे आखरी वाले कमरे में वृद्ध बीमार माताजी बिस्तर पर लेटे हुए है, टेबल पर दवाईयां बिखरी पड़ी है और उस कमरे में एक घन्टी टँगी हुई थी, जबकि उस कमरे में कोई तस्वीर फोटो मूर्ति भगवान की नही थी, मैने पूछ लिया बाईजी आपके कमरे में ये घन्टी क्यों है तो वो बोली जब मुझे प्यास लगती है, दवाई लेना होती है या कोई काम होता है तो में जोर जोर से घन्टी बजाती हुँ तो बेटे, बहु, पोता कोई आ जाता है और मुझे सम्भाल लेता है। ये स्थितियां है इस संसार की। नवकार की एक माला कम गिन लो चलेगा लेकिन माता पिता की सेवा बराबर कर लेना।
आगम में भी कहा गया है की जो संतान अपने माता पिता की श्रद्धा भक्ति के साथ सेवा करता है वह देवलोक में 14000 वर्ष आयुष्य का देवता बनता है ।
क्यों जाना काशी क्यों जाना पुष्कर, सबसे पहले अपने माँ बाप को खुशकर
घर में वृध्द माँ रोती है कहती है और कहती है चातुर्मास चल रहा है, पर्युषण भी आ गए, तू मुझे अभी तक स्थानक लेकर नही गया मुझे स्थानक लेकर चल, बेटा कहता है अभी समय नही है, मैं टीवी चालू कर देता हूँ टीवी में दर्शन कर लो।
इधर माँ रोती है और उधर बेटा मारुती में बैठकर* साधु संतों और तीर्थयात्रा करने निकल जाता है । संतान को अपने माता पिता के उपकारों को कभी नही भूलना चाहिए, ये बिल्कुल वास्तविक है की माँ बाप के उपकारों का बदला अपने शरीर के चमड़ी के जूते बनाकर पहनाने से भी नही उतर सकता है। तीर्थंकर भगवान भी अपने माता पिता का महान उपकार मानते है । शतावधानी पूज्या श्री गुरु कीर्ति जी ने कहा कि बन्द करो समाज में उनका सम्मान जो करे अपने माता पिता का अपमान । इस संसार में दो लोगों के महिमा त्याग बलिदान का गुणगान पूरी दुनिया करती है वे दो है माँ और गुरु। माँ और गुरु के बारे में जितना कहा जाए उतना कम है लेकिन इनके अलावा एक और व्यक्ति है जिसका गुणगान कोई नही गाता लेकिन हमारे जीवन में उसके योगदान को भुलाया नही जा सकता है और वो है पिता। माँ जन्म देती है, पिता परवरिश देता है, दुनिया को समझाने का कार्य पिता करता है, पिता कदम कदम पर बच्चे का साथ देता है। किसी मुकाम पर पँहुचने के लिये हम वाहन, ट्रेन, बस, प्लेन का सहारा लेते है पिता भी हमारा वो सहारा है जो हमें मुकाम पर पँहुचाता है। पिता का कठोर अनुशासन बंधन नही है, वो यही चाहता है की आप संसार की उलझनों में न बंधे और कोई अनहोनी घटना आपके साथ न हो। पिता पुत्र के प्रति सागर की गहराईयों की तरह समर्पित होता है। कितने ही तूफान आ जाए वह स्वंय झेल कर अपने बच्चों की रक्षा करता है। छोटा बेटा भी निश्चित रहता है की जब तक मेरे पापा है मुझे कोई टेंशन नही, मुझे बीच मझदार में छोड़ेंगे नही। पिता की महिमा को गाया नही जाता पर होती जरूर है। कौन कहता है की पिता रोता नही है, उसकी भी आँखे झलकती है लेकिन उसके आँसुओं को देखने वाला समझने वाला कोई नही होता है।
आप नही भी बोलोगे तो भी पिता समझ जाता है, लेकिन जब आपका वक्त आता है पिता लाचार हो जाता है तब पिता बोलता है तो पुत्र सुनता नही है समझता नही है। वो पिता जिसने तुम्हे दुनिया दिखाई जब उसी पिता के कदम लडख़ड़ाते है तो क्या तुमने उन्हें सम्भाला। आज तुम जो कुछ हो उसे बनाया पिता ने है। उस पिता का त्याग बलिदान तुम क्या समझोगे। तुम युवा हो गए, अच्छा व्यवसाय नौकरी है तो तुम पिता को भूल गए, किस बात का घमंड है तुम्हे ।
अपनी सारी खुशियों को मारकर पिता ने तुम्हारी खुशियों को पूरा किया है। क्या कभी तुमने अपने पिता के त्याग के गुणगान गाए है। पिता तुम्हारे बारे में गर्व से लोगो को बताता है, कभी तुमने अपने पिता के बारे में गर्व से लोगो को बताया कभी लोगों के सामने अपने पिता की तारीफ की। जब तुम्हारे पिता एक ड्रेस तीन तीन दिन पहनते थे, एक चप्पल एक-एक साल चलाते थे, सायकल पर चलते थे तब भी तुम्हारे लिए कोई कमी नही होने देते थे।
बच्चे ने पापा से कोई डिमांड करी और पापा उस वक्त किसी कारण से वो पूरी नही कर पाए तो बच्चे की निगाह में वो बुरे पापा हो जाते है, वो बेटा अपने पिता की मजबूरी को देखता नही है समझता नही है। माँ का देहांत हो गया । पिता अकेले रह गए, घर में बहु बेटे पोता पोती है, बेटा बहु अपने कमरे में आराम से सोते है, कभी ये पूछने की कोशिश करी की आपको रात में आराम से नींद आई या नही, क्यों आप अपने बीवी बच्चों के साथ घूमने अकेले जाते हो, क्यों पिता को साथ में घुमाना पसन्द नही है। कभी अपने पिता के आँसू पोछने का काम किया।
पत्नि कहती है माँ बाप घर में जगह-जगह गंदगी करते है और माता पिता को वृद्धाश्रम में पँहुच जाते है। ऐसी दौलत किस काम की जो माता पिता को बीच मझदार में छोड़ दे। बन्द करो समाज में उनका सम्मान जो करे अपने माता पिता का अपमान । ईश्वर बाद में है गुरु बाद में है, सबसे पहले करो अपने माता पिता का बहुमान। इस मार्मिक प्रवचन के बाद खचाखच भरे हाल में न जाने कितने लोगों की आँखे नम हुई और स्थानक में पहली बार सभी ने एक साथ खड़े होकर मसा के प्रवचन की अनुमोदना की।