संस्कारों की उपेक्षा

जैन दिवाकर वाणी
साभार – जैनदिवाकर ज्योतिपुंज खंड 6/ 330
प्रवचानांश : जैन दिवाकर पू. गुरुदेव श्री चौथमलजी म.सा.
प्रस्तुति:सुरेन्द्र मारू इंदौर

आज कल बालकों के प्रति माता-पिता आदि की घोर उपेक्षावृत्ति देखने में आती है वे उनके संस्कारों की ओर जरा भी लक्ष्य नहीं देते। अनाड़ी नौकरों के हाथ में अपने नौनिहालों को सौंप कर निश्चिंत हो जाते हैं। अज्ञानी नौकर बेचारे बालक का भविष्य गढ़ना क्या जानें ? फल यह होता है कि उत्तम कुल और अच्छे घरानों के बालक अनेक प्रकार के कुसंस्कारों के शिकार हो जाते हैं और उनका जीवन एक प्रकार से बर्बाद हो जाता है। माता – पिता को इस ओर खूब ध्यान देना चाहिए। बालक संसार की अनमोल निधि हैं, कुल भूषण हैं, घर के दीप हैं, भविष्य के महापुरुष हैं। उनके प्रति उपेक्षाभाव रखना सारे संसार के भविष्य को अंधकारमय बना देना है। यह अक्षम्य अपराध है।