न्यायपालिका की गरिमा और सम्मान बनाकर रखना होगा

शिक्षक सांस्कृतिक संगठन द्वारा परिचर्चा आयोजित

रतलाम । वर्तमान सरकारें और राजनीतिक व्यवस्था एक्शन मोड में दिखाई दे रही है ठीक भी है जनता की अपेक्षा रहती है कि सरकार त्वरित निर्णय लेकर कार्यवाही करें लेकिन अपनी-अपनी सीमा में यह कार्यवाही हो तो ज्यादा बेहतर है एक दूसरे की मर्यादा और सीमा को सम्मान देते हुए उनकी गरिमा को ठेस ना पहुंचना चाहिए तभी इसके सुखद परिणाम देश और समाज को प्राप्त होंगे और यह किसी भी लोकतांत्रिक सभ्य समाज में जरूरी है कि हम न्यायिक व्यवस्था को उच्चतम सम्मान की दृष्टि से देखें तभी उसका गौरव बरकरार रह पाएगा ।
उक्त वैचारिक प्रतिक्रियाएं शिक्षक सांस्कृतिक संगठन द्वारा वर्तमान सरकारों का एक्शन और न्यायिक व्यवस्था विषय पर आयोजित परिचर्चा में नगर के बुद्धिजीवी वकील तथा शिक्षाविदों ने अपने विचार खुलकर व्यक्त किए ।
अपराधियों के मन में खौफ भी रहना जरूरी है अन्यथा हमारी न्यायिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी इसके लिए न्याय व्यवस्था के सभी अंगों को चाहे न्यायाधीश हो वकील हो सभी को मिलकर प्रयास करना होंगे और निर्णय देने में तेजी लाना होगी तभी जनता का विश्वास न्याय व्यवस्था पर बना रहे पाएगा
चर्चा की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार चिंतक डॉ. मुरलीधर चांदनी वाला ने कहा कि न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों की अपनी अपनी गरिमा है अपना-अपना कार्यक्षेत्र है अपने-अपने दायित्व है लेकिन प्राय: देखा जा रहा है कि विगत वर्षों में लचर न्यायिक व्यवस्था के परिणाम स्वरूप कार्यपालिका का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है और कार्यपालिका के न्यायिक अधिकारों का अधिक उपयोग होने लगा है न्याय व्यवस्था में लंबित प्रकरणों तथा उनका निराकरण ना होना भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है वर्षों तक चलने वाले प्रकरणों का निराकरण ना होना जनता के आक्रोश का कारण बनता है और इस आक्रोश के दबाव मैं सरकार दंड प्रक्रिया अपने हाथ में लेने की चेष्टा करती है जिसका सियासत ई लाभ अवश्य मिलता है लेकिन सामाजिक और राजनीतिक कटुता बढऩे का भय बना रहता है इसे रोकना होगा इसके लिए सामूहिक रूप से हमारी न्यायिक व्यवस्था को चुस्त बनाना होगा।
संस्था अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कहा कि न्याय व्यवस्था पर लोगों का भरोसा उठता जा रहा है इसी कारण जनता अब कार्यपालिका के प्रमुख की तरफ उम्मीद और इंसाफ की नजरों से देखती है अपराध और अव्यवस्था से त्रस्त लोग अपराधी को दंडित करने में अपना सुख देखने लगे हैं और उनकी यह अभिलाषा सरकारें पूरा करने में लगी हुई है बुलडोजर संस्कृति हो या अपराधियों का एनकाउंटर हो यह उसी बात का संकेत है लेकिन प्रजातंत्र में प्रत्येक संवैधानिक व्यवस्था का अपना अपना महत्व है अपनी गरिमा है जिसका गौरव बनाए रखना भी जरूरी है।
परिचर्चा मे सचिव दिलीप वर्मा ने कहा कि न्याय व्यवस्था पर सभी का भरोसा है और हमारी न्यायालय कार्य भी कर रही है दोस्तों सिर्फ व्यवस्था का है जो उसे लचर बना रही है उसको सुधारना जरूरी है रही बात सरकारों की कार्यवाही की वह एक तरफा नहीं होना चाहिए अपराधियों के प्रति जरूर सख्त और सख्त कार्रवाई समाज को भयमुक्त बना रही है।
वरिष्ठ अभिभाषक कैलाश पालीवाल ने कहा कि न्याय व्यवस्था को भ्रष्टाचार से मुक्त रखना होगा तभी इसके सुखद और शीघ्र परिणाम आएंगे अपराध और अपराधियों के प्रति दोनों तरफ से शासन-प्रशासन ईमानदार और स्वच्छ व्यवस्था स्थापित करें तो लोगों का भरोसा न्यायालय पर बना रहेगा।
नरेंद्र सिंह पवार ने कहा कि न्यायपालिका और कार्यपालिका हमारे देश का मूल प्रशासनिक स्वरूप है दोनों का मजबूत और सुदृढ़ होना जरूरी किसी एक का भी कमजोर होना हमारे समाज और देश के लिए घातक है।
प्रतिभा चांदनी वाला ने कहा की किसी भी देश की मूल आधार व्यवस्था शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा और न्याय व्यवस्था पर टिकी रहती है किसी एक का भी कमजोर या असफल होना समाज को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है शीघ्र न्याय दिलाने के प्रयास में किसी बेगुनाह को सजा ना हो और एक पक्षीय निर्णय ना होना चाहिए ।
भारती उपाध्याय ने कहा कि अगर सरकार कि नियत साफ और इच्छा शक्ति मजबूत हो तो व्यवस्था को सुधारा जा सकता है उत्तर प्रदेश सरकार से अन्य राज्यों की सरकारों को प्रेरणा लेना होगी तभी देश का अपराधिक वातावरण सुधर पायेगा और अपराधियों में खौफ पैदा होगा जिससे समाज सुरक्षित महसूस करेगा।
रमेश उपाध्याय ने कहा कि अपराधियों के प्रति समाज और सरकार का जो वर्तमान समय में एक्शन दिखाई दे रहा है वह हमेशा बना रहे ना चाहिए जिससे न्यायपालिका पर भी दबाव रहेगा और वह तुरंत निर्णय व्यवस्था को अंजाम देंगे।
श्याम सुंदर भाटी ने कहा कि हमारे देश के कानून व्यवस्था नहीं के बराबर है और यह कहीं दिखाई दे तो वह सक्षम और धनाढ्य लोगों के कब्जे में है मैं अपनी सुविधा के अनुसार अभी तक अपने अनुरूप इसको चला रहे हैं जो नहीं होना चाहिए।
देवेंद्र वाघेला ने कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका हमारे देश की रीड की हड्डी दोनों की गरिमा और बता बरकरार रखना होगी तभी देश सुरक्षित रहेगा ।
रमेश परमार ने कहा कि जिस प्रकार छोटे गांवों में शहरों में और मोहल्लों में सामूहिक पंचायत ही निर्णय लिए जाते हैं उसी प्रकार न्यायालय में व्यवस्था लागू होना चाहिए जिससे शीघ्र न्याय दिया जा सकेगा शिक्षक दशरथ जोशी ने कहा कि न्याय सेवाओं को अनिवार्य सेवा घोषित कर देना चाहिए तभी लंबित प्रकरणों का शीघ्र निराकरण हो पाएगा राधेश्याम तो बड़े ने कहा कि हमारा कानून और हमारे कानून के रखवाले दोनों ही इस लचर व्यवस्था के जिम्मेदार हैं अदालतों में चलने वाले केस निराकृत अवस्था में पहुंचने में बरसो लग जाते हैं यही इसका सबसे बड़ा असफल पक्ष है
विनीता पटेल ने कहा कि समाज को भी जागरूक रहना होगा लेकिन सरकार अगर इस तरह निर्णय देने लगेगी तो न्यायालय का महत्व कम हो जाएगा लोग रॉबिनहुड की तरह सड़कों पर न्याय करने लगेंगे अराजक और असामान्य स्थिति पैदा होगी।
नूतन मजावदिया ने कहा कि सरकार द्वारा की जा रही कार्यवाही से कम से कम अपराधियों में खौफ तो नजर आ रहा है जिससे हमारे समाज में सुरक्षा की भावना जन्म ले रही है कि अपराधियों को दंड मिल रहा है वरना लोग डर के मारे ही अपने कर्तव्य और दायित्व से दूर होते जा रहे हैं उत्तर प्रदेश सरकार ने सिद्ध किया है कि अपराधियों को नियंत्रित और दंडित किया जा सकता है ।
वीरेंद्र कैथवास ने कहा कि बरसो पुराने चल रहे कानून में बदलाव होना चाहिए जो आज के दौर में निरर्थक और निरूद्योगी है जिनका महत्व वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में नगण्य है इसी कारण न्याय व्यवस्था लंबित और अनुपयोगी होती जा रही है।
परिचर्चा में सुलोचना शर्मा, गोपाल जोशी, ओ.पी. मिश्रा, कृष्ण चंद्र ठाकुर, नरेंद्र सिंह राठौड़, वीणा छाजेड़, रक्षा कुमार, कविता सक्सेना, मिथिलेश मिश्रा, मदन लाल मेहरा, अनिल जोशी आदि उपस्थित थे । परिचर्चा का संचालन दिलीप वर्मा तथा आभार दशरथ जोशी ने व्यक्त किया ।