प्रस्तुति: विजय कुमार लोढ़ा निम्बाहेड़ा (बेंगलोर)
यह घटना मेरे गांव निम्बाहेड़ा( राज.) की है जिसका जिक्र मेरे पूज्य पिताजी श्री घीसालाल जी सा. लोढ़ा जिनके रोम रोम में गुरु जैन दिवाकर समाये हुए थे ! उन्होने अपनी आंखो से ये घटना देखी हैं ! वर्तमान में निम्बाहेड़ा जैन समाज के 92 वर्षीय श्रावक एवम जैन दिवाकर जी द्वारा उनको सभा में बोलने का आशीर्वाद मिला है! अभी उन्होंने स्वेच्छा से देह दान की घोषणा की है ! बहुत सी संस्थाओ के महानुभाव उनसे मिलने जाते है वह दिवाकर गुरुदेव के संस्मरण सुनाते है! यह जो संस्मरण है जो उनके सामने घटित हुआ उसका वर्णन करते है व पुरे जोश से सुनाते है व फिर गुरुदेव की याद में भावुक हो जाते हैं व उनकी आंखो से आंसु टपकने लगते है! अभी इस संस्मरण को निम्बाहेड़ा संघ के मंत्री व गुरु जैन दिवाकर के प्रति पूर्ण समर्पित युवा भाइ आनन्द जी सालेचा ने यह संस्मरण विभिन्न ग्रुपो में प्रेषित किया है !
में आज गुरु जैन दिवाकर महिमा में लिख रहा हूं!
इस घटना को बताने से पहले में आपको यह बता दूं कि आजादी के पहले निम्बाहेड़ा टोंक रियासत में था टोंक के नवाब वहा के शासक थे ! टोंक नवाब नाजिम की नियुक्ति करते थे! नाजिम याने आजके शब्दो में मजिस्ट्रेट! उस समय डूंगला की कोर्ट भी निम्बाहेड़ा ही थी!
जैन दिवाकर जी महाराज निम्बाहेड़ा पधारे हुए थे व नाहरो के नोहरे में ठहरे हुए थे ! डूंगला के एक महानुभाव जो गुरुदेव के परम भक्त थे! उन्होने गुरुदेव को वंदना की और बोले कि गुरु महाराज मुजे मांगलिक सुना दो! में अब आपके छः माह दर्शन नही कर पाऊगां ! गुरुदेव की कितनी विशेषता थी कि हजारो भक्तो को नाम से जानते थे! उन्होंने पूछा ?
गुरुदेव अपने क्षेत्रो में रहते तो अपनी भाषा में ही बात करते थे!
गुरुदेव ने कहा , कई बात वी जो थू यूं बोल रियो!
उस व्यक्ति ने कहा कल मेरे एक मुकदमें का फैसला निम्बाहेड़ा तहसील में ही हे व गुरु महाराज में आप के सामने गलत नही कहूगां मेरे को जूंठे केस में फसाया गया है और मेरे को मालूम पड़ी कि मुजे छः माह की कैद व पांच सौ रुपया जुर्माना (उस समय पांच सौ रुपया बहुत बड़ी राशी होती थी) देना पड़ेगा !
उस समय गुरुदेव ने दो मिनीट आंख बंद की व डूंगले वाले भाइ से बोले कि तूं कल कोर्ट जाए , उससे पहले व्याख्यान में आना व व्याख्यान सुनने के बाद कोर्ट जाना ।
अब गुरुदेव ने प्रवचन प्रारम्भ किये व आप देखिये कि उस दिन निजाम सा . भी प्रवचन में आए।
गुरुदेव का प्रवचन उस दिन न्याय पर था ! मुनि श्री ने कहा नाजीम सा . दो तरह के कसाइ होते है एक तो वो जो खंजर चला कर जीव को मारता है । दुसरा कलम का कसाइ होता है यदि जीसके हाथ में कलम है और यदि वह उस कलम से सही फैसला नही करता है तो वह कलम का कसाइ कहलाता है। कुरान की आयतो को बता कर इन्साफ करने से क्या हासिल होता है व इन्साफ नही करने से क्या हासिल होता है ।
खुदा ने आपको बहुत अच्छे ओहदे पर बिठाया हैं आप हमेशा न्याय करना!
गुरुदेव ने आगे एक उपदेशक गजल उन्होंने सुनाइ!
कभी जालीम फला फूला, कही हमने न पाया है
मगर मुश्किल से मरते तो , निगाह में बहुत आया है
एसी उर्दु भाषा युक्त गजल सुनाइ की अमन की जिन्दगी जिना हो तो हर इन्सान को न इन्साफ के रास्ते पर चलना चाहिये।
वह प्रवचन सुनते सुनते नाजीम सा. की आंखे भर आइ । व्याख्यान खत्म होने के बाद गुरु महाराज के पास आकर बोले , आप वास्तव में खुदा के बन्दे हो परवरदिगार आप पर बहुत महरबान हे ! यदि आज में आपके पास नही आता तो मेरे से बड़ी भूल हो जाती व एक गलत फैसला मेरे हाथ से हो जाता ! नाजीम सा अपने दफ्तर गये व जो फैसला फाड़ा! व दुसरा फैसला लिखा व केवल ग्यारह रुपये जुर्माना किया व मुकदमा समाप्त किया !
सबसे जो ध्यान में देने की बात यह है कि उस आदमी की बात सुन दो मिनीट आंख बंद करना फिर व्याख्यान में आने की कहना ! नाजीम का उस दिन व्याख्यान में आना और वाणी का जबरदस्त प्रभाव ! वास्तव में उनकी साधना का तथा वाणी का क्या प्रभाव था सोच सोच कर दंग रह जाते है ।
यह बाते सुन सुन कर उपाध्याय गुरुवर श्री केवल मुनि जी का यह स्तवन लबो पर आजाता है।
लाखो में एक ही साधु था
“बोली में चलता जादु था
वाणी थी आपकी अमृत से भी प्यारी
में बार बार बलिहारी
हो जिन शासन के ताज गुरु महाराज बड़े उपकारी में बार बार बलिहारी
आपकी कृपा सदैव बनी रहे ।