रतलाम । हायर सेकेंडरी और हाई स्कूल के सीबीएसई परिणाम घोषित हो चुके हैं बहुत ही शानदार रिजल्ट रहा अधिकांश बच्चे उच्च अंक प्राप्त कर उत्तरण हो गए कोरोना महामारी के उपरांत बच्चों में काफी भय और जिज्ञासा बनी हुई थी परिणाम को लेकर लेकिन उनकी आशाओं पर पर लग गए उनके चेहरे खिल गए परिणामों ने उन सब के लिए खुशी मनाने का अवसर प्रदान कर दिया लेकिन इतने उच्च अंक प्राप्त होने वाले बच्चे फिर भी संतुष्ट नहीं होते उनकी उच्च आकांक्षाएं उन्हें संतुष्ट नहीं होने देती उसमें उनका दोष भी नहीं है उनके अभिभावक इसके लिए दोषी अधिक मैं सदैव अपने बच्चों को 100प्रति. अंको की अभिलाषा रखते हैं जो सर्वथा उचित नहीं है जरा सोचिए उन बच्चों के लिए जो 60 प्रति., 65 प्रति., 70 प्रति., 75 प्रति., 80प्रति. अंक लाकर अपने आप को हीन भावना से ग्रसित समझने लगते हैं । डिप्रेशन का शिकार होकर अनुचित कदम उठा लेते हैं जो हमारे समाज में एक तरह का गहरा असंतोष पैदा कर देते हैं । इसी बात को ध्यान में रखकर शिक्षक सांस्कृतिक संगठन ने ऑनलाईन साप्ताहिक परिचर्चा आयोजित की । परिचर्चा का विषय था है कि क्या 90 प्रति. से कम अंक वाले बच्चे प्रतिभावान नहीं होते ? परिचर्चा में शहर के जाने-माने साहित्यकार बुद्धिजीवी शिक्षक और अभिभावकों ने भाग लिया ।
प्रसिद्ध साहित्यकार चिंतक डॉ. मुरलीधर चांदनी वाला ने कहा कि प्रतिभाओं का आंकलन नंबरों से नहीं किया जाता, बल्कि उनकी दक्षता के आधार पर किया जाना चाहिए । कई कम प्रतिशत वाले बच्चे भी उच्च पदों पर आसीन होते हैं यही उनका श्रेष्ठ परिणाम कह सकते हैं । अत: प्रतिभाओं को सदैव अवसर प्रदान कीजिए जो बच्चा जितना योग्य और काबिल होगा । बहुत अवसर का लाभ सफलतापूर्वक उठा पाएगा उसके लिए बड़ी-बड़ी डिग्रियां या 90-95 प्रतिशत अंक महत्व नहीं रखते हैं ।
संस्था अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कहा कि कुछ अंकों की अभिलाषा रखना गलत नहीं है । महत्वाकांक्षा होना भी गलत नहीं है लेकिन जो बच्चे सुविधाओं के अभाव में कम नंबर लाते हैं प्रतिभा में अव्वल होते हैं । उन्हें सिर्फ प्रोत्साहन और सुविधाओं की दरकार रहती है उन्हें निराश कभी नहीं होना चाहिए। कवि एवं साहित्यकार दिनेश बारोट ने कहा कि प्रतिभाओं का कोई मापदंड अंको से निर्धारित नहीं किया जा सकता बच्चों में कुछ विधाएं जन्मजात और कुछ विधाएं सीखने से प्राप्त होती है । जिससे वह अपना व्यक्तित्व निर्माण करता है । अत: यह कहना गलत होगा की उच्च अंक प्राप्त विद्यार्थी ही प्रतिभा संपन्न होते हैं यह कम अंक प्राप्त बच्चों के साथ अन्याय होगा ।
कवि श्याम सुंदर भाटी ने कहा कि कभी-कभी पढ़े लिखे लोग भी ऊंचे अंक प्राप्त इंजीनियर एवं डॉक्टर भी जुगाड़ के सामने फेल हो जाते हैं आपने एक उदाहरण देते हुए कहा कि कुएं में एक मशीन उतारने के लिए सारे इंजीनियर हार गए तब एक किसान ने बर्फ की डलिया मंगवा कर उस पर मशीन रखा कर कुए में उतार दी यह उसका कौशल उसकी प्रतिभा का प्रमाण है । कृष्ण चंद्र ठाकुर ने कहां की यह विषय बड़ा संवेदनशील है बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतन मनन करना समाज के प्रति अपना उत्तरदाई पूरा करना है। वरिष्ठ सेवानिवृत्त शिक्षक चंद्रकांत वाफगांवकर ने कहा कि अधिकांश प्रतिभावान बच्चे शासकीय स्कूल से उत्तीर्ण होकर उच्च पदों पर पहुंचे है जबकि उनके अंकों का प्रतिशत अधिक नहीं होता है। लायंस क्लब की झॉन चेयर पर्सन एवं सेवानिवृत शिक्षिका वीणा छाजेड़ ने कहा कि कम प्रतिशत प्राप्त बच्चे भी ऊंचे पदों पर आसीन हुए हैं उनकी प्रतिभा को कम नहीं आंकना चाहिए । देवेंद्र वाघेला ने कहा कि यह सोच और विचार पूर्णता गलत है 90 प्रतिशत अंक लाने वाले बच्चे ही प्रतिभावान होते हैं । इतिहास में और देश में कई ऐसे उदाहरण है जिन्होंने बिना डिग्री लिए भी दुनिया में नाम कमाया है सचिन तेंदुलकर इसका उदाहरण है ।
महिला सचिव रक्षा के कुमार ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चों का सर्वांगीण विकास करना है लेकिन 90 प्रतिशत अंक लाना है जीवन के और भी पहलू से सिखाना है माता-पिता की इस सोच को बदलना होगा कि हमारा बच्चा सिर्फ 90 प्रतिशत अंक लेकर के आए। सचिव दिलीप वर्मा ने कहा कि शिक्षक को तारे जमीन के आमिर खान बनना पड़ेगा प्रतिभा से अंक प्राप्त करने तक सीमित नहीं होती बल्कि कला के कई विधान बच्चों में प्राप्त होते हैं उन्हें निखार ना होगा वहीं शिक्षक का कर्तव्य है । शिक्षिका भारतीय उपाध्याय ने कहा कि उच्च पद प्राप्त बच्चे बड़ी नौकरियां पाने के बाद अपने अभिभावकों और परिवार से दूर हो जाते हैं विशेषकर माता पिता के प्रति अपने दायित्व भूल जाते हैं। सेवानिवृत्त शिक्षक रमेश उपाध्याय ने कहा कि कम अंक लाने वाले बच्चे भी प्रतिभा में कम नहीं होते हैं । कविता सक्सेना ने कहा कि अधिकांश उच्च पदों पर शासकीय स्कूल के बच्चे और प्रतियोगी परीक्षाओं में अपनी प्रतिभा दिखा कर जीवन में कुछ हासिल करते हैं । खेल अनुदेशक चंद्रशेखर लश्कर ई ने कहा कि मेहनत और परिश्रम में कम अंक प्राप्त बच्चे पीछे नहीं रहते हैं सुविधाओं का अभाव होने आगे बढऩे से रोक देता है लेकिन इसके बावजूद भी हार नहीं मानते। प्रतिभा चांदनी वाला ने कहा कि आजकल के दौर में लोगों की मान्यता बन गई की अस्सी नब्बे प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले बच्चे ही प्रतिभाशाली होते हैं जो सर्वथा गलत है इस मानसिकता को बदलना होगा तभी समाज में समानता का भाव विकसित होगा।
शिक्षक राधेश्याम तो गडेने कहा कि आईपीएस और आईएएस बनने के लिए 90 प्रतिशत अंक नहीं बल्कि प्रतिभा का होना जरूरी है और वह प्रतिभा अनुभव से विकसित होती है । जन शिक्षक वीरेंन्द्र कैथवास ने कहा कि यह कहना बिल्कुल गलत है की प्रतिभा सिर्फ उच्च अंक प्राप्त करने वाले बच्चों में होती है कम अंक प्राप्त बच्चे दूसरी विधाओं में दक्ष होकर अपना जीवन संवार सकते हैं । दशरथ जोशी ने कहा विद्यार्थी को बहुमुखी प्रतिभा में निपुण होना चाहिए उसे जीवन में कुछ बनना है तो सिर्फ अंकों की गणित में ना रहे । रमेश चंद्र परमार ने कहा कि प्रतिभा का कोई निश्चित दायरा नहीं होता है यह प्रतिभा को मिले अवसर पर निर्भर करता है । परिचर्चा में नरेंद्र सिंह राठौड़, नरेंद्र सिंह पंवार,रमेश कटारिया, बीके जोशी, मनोज कसेरा, अंजुम खान, मदनलाल मेहरा, नूतन मजावदिया, मिथिलेश मिश्रा, अनिल जोशी, आरती त्रिवेदी आदि उपस्थित थे। संचालन दिलीप वर्मा तथा आभार दिनेश शर्मा ने व्यक्त किया ।