अनुकूल समय में पाप का बंध ना करते हुए पुण्य अर्जन करें -आदित्य मुनि

रतलाम। शास्त्र के प्रति आस्था श्रद्धा विश्वास रखने वालों की कर्म के निर्जरा होती है भव्य आत्मा आगम पर श्रद्धा रखती है संसार मोहनी कर्मों से मुक्त हो जाती है वह संसार में भ्रमण नहीं करती शास्त्र धर्म सिखाता है धर्म अभयदान नाम है शास्त्रों की जानकारी तीर्थंकर भगवन द्वारा बताए मार्ग अनुसार आगम से मिलती है और आगम के बारे में हमें गुरु समझाते हैं गुरु के पास बैठते हैं उनका शरणा लेते हैं तो सीधे तीर्थंकर वाणी का श्रवण कर सकते हैं आगम में उपनइया विगनईया भूवइया तीन तत्व बताए गए हैं इसका अर्थ है उत्पन्न होना स्थिर रहना नष्ट हो जाना दुखी होने का कारण भी यही है हमारे पास धन-संपत्ति प्रतिष्ठा परिवार मकान आदि आते हैं कुछ समय रहते हैं और फिर हमसे दूर हो जाते हैं जो हमें दुखी करते हैं इसलिए हमें हमेशा पुण्य कार्य में लगा रहना चाहिए चार प्रकार के पुण्य होते हैं पुण्यान बंधी पुण्य पाप व पापानुबंधी पुण्य व पाप जब आपका समय उत्तम चल रहा हो तो पुण्य का लाभ लो उसी समय को मौज-मस्ती आनंद के लिए व्यर्थ ना करो सदुपयोग करो अच्छे कार्य करो दान धर्म शील तप की और आगे बढ़ो परिवार को समय दो राष्ट्र को समय दो समाज को समय दो अपने लिए तो सब जीते हैं औरों के लिए जीना सीखो उपरोक्त जानकारी देते हुए साधुमार्गी जैन संघ के प्रीतेश गादिया ने बताया कि श्री संघ द्वारा आगम सूत्र की कई गाथाओं का वाचन प्रवचन के माध्यम से हो रहा है इसकी परीक्षा भी अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होने वाली है सभा में संघ के अध्यक्ष सुदर्शन जी पीरोदिया दशरथ बाफना ने संचालन किया।