अनुकुलता का राग और प्रतिकुलता के द्वेष को त्यागो – मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा.

रतलाम, 24 जुलाई । सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में सोमवार को आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने प्रवचन दिए। मुनिराज ने कहा कि राग, द्वेष, मोह को खत्म करना ही साधना है। व्यक्ति के द्वेष एवं वस्तु के राग की वजह से हम संसार में भटक रहे है। हमे अनुकुलता का राग और प्रतिकुलता के द्वेष को त्यागना है।
मुनिराज ने कहा कि बिना राग के द्वेष नहीं आता। राग को शेर की उपमा दी है और द्वेष को हाथी की। राग का प्रतिक स्त्री और द्वेष का शस्त्र होता है। हमें प्रभु की तरह वितराग बनना है। साधना का पहला प्रकार ही वितराग बनना है। हमें तत्व ज्ञान में इंटरेस्ट होता है लेकिन कर्म के रस में नहीं होता। मनुष्य जीवन में साधना ऐसी करो कि वितराग बने, वैरागी बने और अनुरागी बने। हमें जो तप मिला है उसे छोड़ना नहीं है।
मुनिराज ने कहा कि हम पदार्थ का त्याग करते है तो वितराग बनते है और पसंदीदा का त्याग करते है तो वैरागी बनते है। राग हमे सद्गति तक नहीं पहुंचाता है लेकिन वैराग्य ने कभी दुर्गति नहीं की। वैरागी के पास वेदना होती है। जिसके जीवन में वेदना होती है, वहीं साधना होती है।
मुनिराज ने कहा कि किसी के धर्म की यदि वंदना की तो आप मोक्ष का प्राप्त कर सकते हो, राग का पतन और परिर्वतन दोनों वैराग्य है। अल्प अध्ययन, आराधना से मोक्ष हो सकता है लेकिन अल्प अनुराग से नहीं। हमे भगवान वितरागी, गुरू मिले वैरागी और धर्म अनुरागी मिला है। अनुराग लाओगे तो वैराग्य आएगा और वैराग्य आएगा तो अपने आप वितरागी बनोगे।
श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी के सदस्य एवं बढ़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।