रतलाम, 7 सितंबर। जीवन में हमने क्या खाया, कितना खाया, उसका महत्व नहीं है। महत्व हमने कितना पचाया का होता है। उसी तरह हमने क्या सुना, कितना सुना इसका महत्व का नहीं है लेकिन उसे जीवन में कितना उतारा यह महत्वपूर्ण है। हर काम को श्रद्धा, भाव और संकल्प से शुरू करना चाहिए। इससे जीवन में हमेशा सफलता मिलती है। यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने कही | सेठजी का बाजार स्थित आगमोद्धारक भवन में प्रवचन के दौरान आचार्य श्री ने कहा कि हर काम श्रद्धा, भाव, संकल्प से शुरू करो, इससे सफलता निश्चित मिलेगी| बिना श्रद्धा की बुद्धि डुबा देती है।भाव नहीं होने पर मन नहीं लगता और संकल्प नहीं रहेगा तो सिद्धि कैसे मिलेगी ? आचार्य श्री ने श्रद्धा और आचरण को परिभाषित किया | उन्होंने कहा कि मोक्ष में जाने का शॉर्ट कट जानना और जितना के बीच अंतर है, यदि तप से वह खत्म हो जाए तो समझना कि मोक्ष आपके नजदीक है। साधु जीवन की अवस्था को जानते भी हैं और उसके मुताबिक जीते हैं। आचार्य श्री ने लघु कर्मी और बाह्य कर्मी के बारे में बताते हुए कहा कि जिसके कर्म कम हो वह लघु कर्मी और जिसके कर्म अधिक हो वह बाह्य कर्मी कहलाता है। विराधना के समय में जिसे आराधना याद आए वह लघु कर्मी कहलाता है। प्रवचन में श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी के सदस्यों सहित बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे।