मुमुक्षु ने आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा को सौंपा प्रतिज्ञा पत्र
रतलाम,07 अक्टूबर। परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में अभ्युदय चातुर्मास के दौरान दीक्षा की प्रतिज्ञा और आज्ञा के पत्र सौंपने का प्रसंग आया। शनिवार को छोटू भाई की बगीची मे जैसे ही मुमुक्षु के परिजनों ने आज्ञा पत्र सौंपा, वैसे ही पूरा परिसर केसरिया-केसरिया से गूंज उठा। इससे पूर्व गंगा शहर बीकानेर की मुमुक्षु मधु भूरा ने प्रतिज्ञा पत्र भेंट किया। श्री हुक्म गच्छीय साधु मार्गी जैन श्रावक संघ ने मुमुक्षु के वीर माता-पिता का बहुमान किया। उपस्थितजनों ने जय-जयकार कर प्रतिज्ञा और आज्ञा पत्र की अनुमोदना की।
मुमुक्षु की और से उनके पिता माणकचंद भूरा, माता उषादेवी भूरा, बहन पूजा एवं भाई नवीन भूरा ने आचार्यश्री ने आचार्यश्री को आज्ञा पत्र भंेट किया। इससे पूर्व इसका वाचन किया गया। श्री संघ की और से अध्यक्ष मोहनलाल पिरोदिया, मंत्री दिलीप मूणत, जवेरीलाल बोहरा, मोतीलाल पिरोदिया, धीरेन्द्र मेहता, शांतिलाल रांका, राजकुमारी पिरोदिया, पुखराज पितलिया, सुशीला रांका, शकुंतला पिरोदिया सहित युवा संघ एवं बहु मंडल ने मुमुक्षु के परिजनों का बहुमान किया। मंजु भंडारी ने स्तवन प्रस्तुत किया। श्रावक-श्राविकाओं ने जयकारे लगाए। इससे पूरा परिसर केसरिया-केसरिया की गूंज में रम गया।
आचार्य श्री ने इस मौके पर कहा कि जिसके पास जीवन का सौंदर्य होता है, उसे शरीर का सौंदर्य नहीं लुभाता है। शरीर का , पदार्थों का, पद का प्रतिष्ठा का सौंदर्य ये सभी संसार के सौंदर्य उसे ही लुभाते है, जिसके पास जीवन का सौंदर्य नहीं होता। इस सौंदर्य के अनुभव के लिए दृष्टि बदलने की जरूरत होती है और दृष्टि बदलते ही सृष्टि बदल जाती है।
उन्होंने कहा कि जीवन के सौंदर्य को पहचानने का मार्ग कांटों भरा होता है, इस पर शूरवीर ही चल पाते है। एक बार जो जीवन का सौंदर्य पा लेता है, वह कभी संसार के चक्कर में नहीं पडता। गुरू प्रेरणा दे सकते है, प्रकाश दे सकते है, पथ दिखला सकते है, लेकिन चलना तो हमे ही पडता है। मुमुक्ष मधु ने संयम धारण करने को जो निर्णय लिया है, वह बार-बार अनुमोदनीय है। आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने गुरू महिमा का गुणगान किया। महासती श्री इन्दुप्रभाजी मसा ने 19 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।