झुमरीतिलैया। 9 भाषाओं के ज्ञाता आजीवन ड्राय फ्रूट्स, नमक, धी के त्यागी चलते फिरते पूरे भारत में 51000 किलोमीटर का पैदल विहार करने वाले जैन जगत के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान परम पूज्य संत शिरोमणि गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज का 77वॉ अवतरण दिवस भक्ति भाव के साथ मनाया गया ।श्री दिगंबर जैन दोनों मंदिर जी में भगवान का महा अभिषेक के साथ सभी भक्तों के द्वारा संत शिरोमणि गुरुवार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ओर गणीय आयरिक भगवान के जन्म स्थली के उद्धारक 105 ज्ञान मति माता जी का शरद पूर्णिमा यानी जैन धर्म के अनुसार अमृत पूर्णिमा के दिन दो महान विभूतियों का अवतरण दिवस मुनि श्री 108 मुनि सुयशसागर जी महाराज के सानिध्य में मनाया गया सभी भक्तों के द्वारा आचार्य श्री के चित्र का अनावरण के साथ अष्ठ द्रब्यो से पूजन कर श्रीफल चढ़ाया गया इस अवसर पर मुनि श्री 108 सुयश सागर जी मुनिराजने अपने उदगार में कहा कि
भारत भूमि मुनियों, संतों, महात्माओं, आचार्यों की भूमि रही है और सभी की सत्य अहिंसा समता, जीयो और जीने दो, वसुधैव कुटुंबकम का भाव जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हम सबका यह परम सौभाग्य है कि इस युग के विश्व विख्यात महान तपस्वी एवं श्रमण संस्कृति के महामहिम संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज आज हम सबके बीच साधना रत हैं और उनका आशीर्वाद भी हम सबको सुलभ है।
आचार्य श्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक राज्य के बेलगांव जिले के ग्राम सदलगा में श्रावक श्रेष्ठी मलप्पाजी अष्टगे और श्रीमती श्रीमंती जी के घर आंगन में बालक विद्याधर के रूप में हुआ था। मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में विद्याधर आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज के प्रवचन सुनकर भाव विभोर हो जाते थे। 20 वर्ष की उम्र में आपने आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेकर गृह त्याग का संकल्प कर लिया और आचार्य श्री के समक्ष अपनी भावना व्यक्त कर एवं उनका आशीर्वाद एवं निर्देश पाकर विद्याधर जैन दर्शन के मर्मज्ञ और संस्कृत, प्राकृत एवं हिंदी के अध्येता एवं अनुभव और आयु समृद्ध अद्भुत भविष्यवेत्ता मुनि श्री ज्ञान सागर जी की शरण में अजमेर पहुंच गए और उसी दिन से उनके जीवन की दशा और दिशा बदल गई।
मुनि ज्ञान सागर जी से ब्रह्मचारी विद्याधर ने आजीवन वाहन का त्याग कर दिया ओर धर्म, दर्शन, न्याय, व्याकरण और साहित्य सृजन की सारी सीढ़ियां पार कर महाव्रत के दुर्गम शिखर तक पहुंच गए। दिनांक 30 जून 1968 को अजमेर की पावन धरा पर 22 वर्ष की उम्र में मुनि ज्ञान सागर जी ने ब्रह्मचारी विद्याधर को जैनेश्वरी मुनि दीक्षा प्राप्त किया ।जिनका जीवन एक सम्पूर्ण दर्शन है जिनके आचरण में जीवों के लिए करुणा पलती है जिनके विचारों में प्राणी मात्र का कल्याण आकर लेता है,जिनकी देशना में जगत अपने सदविकास का मार्ग प्रशस्त करता है |आप निरीह, निस्पृह वीतरागी है फिर भी आपके विचार भारतीयता के प्रति अगाध निष्ठा, राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यपरायणता से ओतप्रोत है।
आर्याक 105 ज्ञान मति माता जी का भी अवतरण दिवस मनाया गया माता जी हज़ारों जैन शास्त्र लिख का सवोच्च शिखर पर पहुँच गई है और अभी 24 जैन तीर्थंकर की जन्म भूमि का विकाश माता जी के मंगल आशीर्वाद से हो रहा है। आपका चिंतन प्राचीन भारतीय हितचिंतको दार्शनिको अनुकरण करते हुए भी मौलिक है आप तीर्थंकर के विचारों को संकलित करना छोटी सी अंजुली में सागर को भरने का असंभव प्रयास करना है साथ ही समाज के मंत्री जैन ललित सेठी, संयोजक जैन नरेंद झांझरी,,कार्यक्रम संचालन जैन लट्टू भैया के साथ समाज के सुरेश झांझरी,कैलाश जोशीला,मोहित सोगानी,नीलम सेठी,आदि बहुत लोगों ने भक्ति और अपने उदगार ब्यक्त किये,संध्या में मुनि श्री के मुखारबृन्द से णमोकार चालिसा भब्य आरती के साथ अमृत दिवस के उपलक्ष्य पर समाज के सेकड़ो लोगो ने जाप किया, इन सभी कार्यक्रम में समाज के सेकड़ो लोग शामिल हुवे। कोडरमा मीडिया प्रभारी जैन राज कुमार अजमेरा,नविन जैन ने उक्त जानकारी दी।