छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन: दूसरो को अनुकुल बनाने का सबसे बढिया विकल्प है खुद अनुकुल बन जाना -आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

रतलाम,30 अक्टूबर। संसार में चक्रवर्ती का सबसे बढा पुण्य होता है, लेकिन वे भी सबकों अपने अनुकुल नहीं बना सकते। दूसरों को अनुकुल बनाने का सबसे बढिया विकल्प यही है कि खुद उनके अनुकुल बन जाए। अनुकुलता सबको अच्छी लगती है, लेकिन वह दूसरों से नहीं मिलती। इसके लिए खुद ही पहल करना पडती है। इसलिए जीवन में सदैव दूसरों को अनुकुल बनाने के बजाए खुद सबके अनुकुल बनने का लक्ष्य रखे।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि इन दिनो चुनाव चल रहे है। इनमें भी प्रत्येक प्रत्याशी यही कोशिश करता है कि सब उसके अनुकुल बन जाए। इसके लिए वह सबको तरह-तरह के आश्वासन देता है और भरोसा दिलाता है कि जीतने पर सारी समस्याएं हल करने का विश्वास करने को कहता है। लेकिन फिर भी सबको अनुकुल नहीं बना पाता है।
आचार्यश्री ने कहा कि दूसरों को अनुकुल बनाने का दृष्टिकोण जीवन भर पूरा नहीं हो सकता, लेकिन खुद को अनुकुल बनाने का प्लान हर व्यक्ति पूरा कर सकता है। इसलिए दूसरों को अनुुकुल करने में समय, शक्ति और सामथ्र्य लगाने का कोई अर्थ नहीं है। इसमें निराशा हीं मिलेगी। आज लोगों में जो दूसरों को अनुकुल बनाने की मानसिकता है, उसे केवल एक दृष्टि बदलने से बदला जा सकता है। दृष्टि बदलते ही पूरी सृष्टि बदल जाएगी।
आचार्यश्री ने कहा कि संसार को अनुकुल बनाना तो दूर की बात है, कोई भी व्यक्ति अपने परिवार को भी अनुकुल नहीं बना सकता है। यदि खुद को अनुकुल बनाने की कोशिश करेंगे, तो परिवार ही नहीं पूरी दुनिया हमारे अनुकुल बन जाएगी। आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने धर्म के महत्व पर प्रकाश डाला। इस मौके पर औरंगाबाद महाराष्ट्र के नागद शहर के आए प्रतिनिधि मंडल ने भाव व्यक्त किए। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।