अच्छे कर्मों का फल बिना बताये मिलता है – गणाचार्य विरागसागर

भिण्ड । मध्यप्रदेश में चातुर्मासस्थ परमपूज्य गणाचार्य श्री विरागसागर जी मुनिमहाराज ने अपनी नित्यप्रति की धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि अच्छे कार्य, धर्माचरण और परोपकार का फल बिना बताये मिलता है। कभी कभी हम धर्माचारण करते रहते हैं और इसी बीच थोड़ी सी मुश्किल आ जाती है तो हमारा विश्वास डगमगाने लगता है कि अमुक व्यक्ति तो पाप कार्यों में लगा है फिर भी वह मजे में है और मैं अच्छे कार्य कर रहा हूं फिर भी परेशानी आ गई है। गणाचार्यश्री ने कहा कि अच्छे कार्यों का फल बिना बताये मिलता है, हम उसे समझने में कभी कभी भूल कर देते हैं, उन्होंने एक उदाहरण दिया कि-एक सेठ के दो पुत्र थे- एक धर्मात्मा और दूसरा अधर्मात्मा। धर्मात्मा पुत्र का पूर्व पापकर्म के उदय से धन कम हो रहा था, लेकिन अधर्मात्मा पुत्र का पूर्व पुण्य कर्म के उदय से धन वृद्धि को प्राप्त हो रहा था। दोनों में इसी बात को लेकर कभी-कभी संवाद हो जाता कि तुम इतना धर्म करते हो फिर भी तुम्हारा धन कम होता जा रहा है और मैं इतना पाप करता हूँय लेकिन मेरे धन में वृद्धि हो रही है। एक दिन दोनों ने विचार किया कि इस बात का निर्णय वीतरागी निग्र्रंथ संत के पास चलकर किया जाये, और निश्चित दिन में धर्मात्मा पुत्र भगवान के दर्शन-पूजा करके लौट रहा था कि रास्ते में उसे काँटा लग गया। उसी समय अधर्मात्मा पुत्र रात्रिभर वेश्या सेवन करके लौट रहा था तो उसे रास्ते में रुपयों से भरी एक थैली मिली। जब दोनों आपस में मिले तो अधर्मात्मा पुत्र ने कहा- देखो, मैं सत्य कहता हूँ कि तुम इतना धर्म करते हो, फिर भी दुःखी रहते हो और मुझे देखो मैं वेश्या के घर से निकला और मुझे रुपयों से भरी थैली मिली। इसलिये तुम धर्म को छोड़ो। लेकिन दिन निश्चित होने से दोनों संत के पास पहुँचे और अपनी बात रखी। संत ने कहा- सुख तो धर्म से ही होता है। आज इसने इतना धर्म किया कि आज इसकी मृत्यु थी। लेकिन धर्म के प्रभाव से वह मृत्यु काँटे में निकल गई। उसने पूछा- कैसे ? मुनिराज ने कहा- तुम नदी को पार करते समय जिस शिला के ऊपर रोज पैर रखते थे उसके नीचे सर्प था, आज तुमको काँटा लग जाने से धीरे-धीरे चले और आपने उस शिला पर पैर नहीं रखा जिससे सर्प ने तुम्हें काटा नहीं और तुम मृत्यु से बच गये तथा आज तुम्हारे बड़े भाई को राजसिंहासन होने वाला था। लेकिन पाप कार्य में आसक्त होने से वह पुण्य क्षीण हो गया और वह एक थैली के रूप में ही रह गया। उसने पूछा- कैसे ? महाराज ने कहा- इस नगर के राजा की मृत्यु हो गई है। और नवीन राजा के लिये एक हाथी का चयन किया गया कि वह हाथी सारे नगर में भ्रमण करेगा और जिसके गले में हार डालेगा वही उस नगर का राजा बनेगा। और वह हाथी तुम्हारे घर के दरवाजे पर आया था, काफी समय तक रुका रहा था। लेकिन तुम वेश्या के घर में थे, वह काफी समय तक इंतजार करके चला गया, इसलिये तुम्हारी राज्य सम्पदा छोटी सी थैली के रूप में शेष रह गई। दोनों की बातों के विषय में जब पता लगाया गया तो दोनों ही बातें सत्य थी। इस प्रकार श्रद्धा से कभी घबराना नहीं चाहिये कि मैं इतना धर्म करता हूँ, लेकिन मुझे कुछ भी नहीं मिलता और वह कुछ भी धर्म नहीं करता, लेकिन उसके पास इतना धन है। ध्यान रखना, वह वर्तमान में पाप कर रहा है आगे उसे उसका फल मिलेगा और आप वर्तमान में पुण्य कर रहे हो तो उसका फल आपको आगे मिलेगा, धर्म का फल बिना बताये मिलता है और निश्चित मिलता है इसलिए अच्छे कार्यों से कभी विमुख नहीं होना चाहिये।
संकलन-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर 9826091247