कविता – प्रो. डी.के. शर्मा
रतलाम
सुबह-सुबह कालका मंदिर के आंगन में
एक बुजुर्ग अम्मा कांपते हाथों से
छुप-छुपकर
पूराने गंदे बटवे में रखे
दो-चार नोट गिन रही थी.
वह दीवार से सट कर
एक खम्बे की आड़ में बैठकर
धीरे-धीरे बटवा निकालकर
उसमें रखे नोट
बड़े ध्यान से देख रही थी.
मंदिर में जाते समय
मैंने उसका बटवा देख लिया,
दूर खड़ा रहकर
उसके चेहरे के भाव
पढ़ने का प्रयास किया.
बूढ़ी अम्मा ने इधर-उधर
देखते हुए कि कहीं
कोई देख तो नहीं रहा
उसने बटवे में रखे
दो-चार नोट बड़े ध्यान से गिने.
उसके चेहरे पर
असीम संतुष्टी दिखाई दी
मानों उसने
अम्बानी-अडानी के समान
खजाना पा लिया हो.
महत्व इसका नहीं कि
आपके पास संपत्ति कितनी है
महत्व है
उस संतुष्टी का
जो आपको मिली.
किसी भी वस्तु की कीमत
उसकी मात्रा से नहीं होती
उससे मिले सुख-संतोष की मात्रा
से होती है.
जितना गहन सुख
संतोष उतना ही अधिक.