जिनवाणी के माध्यम से आत्मा से परमात्मा की यात्रा संभव है- प.पु.साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी म. सा.

रतलाम 25 जुलाई । चातुर्मास के पावन अवसर पर खेरादी वास स्थित नीम वाले उपाश्रय में चल रही प्रवचन श्रृंखला में परम पुज्य साध्वी श्री अनंत गुणा श्रीजी म. सा. ने अपने मंगल प्रवचन में बताया कि अनंत उपकारी श्रवण भगवंत महावीर ने अपने तीन चीज बताई रागी, वैरागी और वितरागी होते हैं। रागी संसार में भ्रमण करता है। वैरागी संसार में रहता हुआ भी संसार में लिप्त नहीं रहता है।वितरागी वह होता है जो न रागी होता है, ना वैरागी होता है जो शुभ, अशुभ, पाप और पुण्य से ऊपर होते हैं।जहाँ ना राग होता है ना द्वेष होता है। इसके लिए भव, भाव और स्वभाव को बदलना पड़ता है।तब वितरागी की यात्रा शुरू होती है।
भगवत कहते हैं कि आत्मा से परमात्मा बनने की यात्रा मनुष्य भव से शुरू होती है और उसमें लक्ष्य बनाना पड़ता है साथ ही पुरुषार्थ की भी अति आवश्यकता होती है। अशुभ भाव का त्याग करना है तो शुभ भाव रखने पड़ेंगे।अगर प्रसन्न चित् से पूजा नहीं करते तो कुछ होने वाला नहीं है इसके लिए आपको राग, द्वेष, कषाय, प्रपंचों को धीरे-धीरे छोड़ना होगा क्योंकि यह एकदम छूटने वाले नहीं है। पुरानी और खराब आदतों को सुधारना पड़ेगा।तब आत्मा के अनुरूप आदतें बनानी पड़ेगी क्योंकि आत्मा से परमात्मा की यात्रा करने त्याग और तप करना पड़ता है। सावन में बारिश से जिस प्रकार हरियाली होती है वैसे ही हरियाली आपको तप करके आत्मा को तृप्त कर लेना है।
मनुष्य जन्म मिला है तो जिनवाणी का लाभ उठा सकते हो और दूसरी गति जिनवाणी का लाभ नहीं उठा सकती। जिनवाणी के माध्यम से ही आत्मा से परमात्मा की यात्रा हो सकती है। कल से सिद्धि तप के कलश भर जाएंगे और धारणा होगी। जिसको भी सिद्ध तप मे भाग लेना है वह म. सा. से या समिति से संपर्क करे। कल व्याख्यान में साम्ब प्रद्युम्न चरित्र का वर्णन तथा शांत सुधा रस को समझाया जाएगा। शांत सुधा रस में 12 भावना है। जो शांत चित्त से इसके आराधना भावना करता है वह कुछ भी पा लेता है।
सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति रतलाम के तत्वाधान में आयोजित व्याख्यान में आज बड़ी संख्या में श्रावक व विकाएं उपस्थित रही।