सच्चे मन से प्रभु की आराधना और प्रार्थना करते हैं तो सब कार्य हो जाते हैं- साध्वी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा.

29 जुलाई से प्रारंभ होगा अठ्ठम तप, अधिक से अधिक संख्या में भाग ले

रतलाम 26 जुलाई । नीम वाले उपाश्रय में चातुर्मास के प्रवचन श्रृंखला में साध्वी श्री समकित गुणा श्री जी म.सा. ने अपने मंगल प्रवचन में हुए कहा कि ज्ञानी जन कहते हैं चिंतन करो, चिंतन करने के लिए आपके पास बहुत समय मिलता है। शांत सुधा रस ग्रंथ भी यह कहता है कि शांत हो जाओ तब सुधा रूपी रस मिलेगा।आप कोई भी ग्रंथ उठा लो बारह भावनाओं में से एक दो भावनाएं तो आपको मिलेगा ही और बारह भावना आपको सुना और मन में उतरना चाहिए। शांत सुधा रस ग्रंथ में बताया कि शांति कब मिलती है जब आपके दोष मिटेंगे तब शांति आएगी।क्रोध से झगड़ा होता है। शांत बैठने से नहीं होता है। अपनी स्वयं की आत्मा को देखें और दोष मिटाने की कोशिश करें।परमात्मा ने कहा है चिंतन के लिए शुद्ध स्थान चाहिए आपके घर में एक कमरा ऐसा होना चाहिए जिसमें कुछ भी नहीं हो वह कमरा खाली हो एक कमरा ऐसा बनाओ जिसमें आप शुद्ध विचार से शुभ विचार रख सके और आत्म चिंतन कर सकें। शांत सुधा रस लिखने वाले जो है वह विनय विजय जी म.सा. है जिन्होंने 300 साल पहले रचना की और 1000 प्रतियां निकाली। इन्होंने अपना पारिवारिक परिचय नहीं दिया इन्होंने कहा कि मेरा ज्ञान ही मेरा परिचय है। साध्वी श्री अन्नत गुणा श्री जी म. सा. ने अपनी व्याख्यान में कहा की आज हम यहां प्रद्युम्न चरित्र प्रारंभ करने जा रही प्रारंभ में मंगलाचरण होना चाहिए। परमात्मा की स्तुति करना चाहिए। पंच परमात्मा की स्तुति के बाद ही सरस्वती के पश्चात गुरुदेव को याद करना पड़ता है गुरु का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है तो कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। जैसे एक फैमिली में डॉक्टर होता है, फैमिली वकील होता है,जैसे एक फैमिली का ब्यूटी पार्लर होता है इसी तरह गुरु भी एक पारिवारिक होना चाहिए जिसे हम अपनी सारी समस्याएं बता सके और वह हमारी सारी चीजों को सुनकर हमें ज्ञान दे सके। गुरु के बिना सब कुछ शुन्य हैं। आप ना तो तप कर सकते हैं ना जप कर सकते हैं परंतु आप भक्ति तो कर ही सकते हैं भक्ति ऐसी शक्ति होती है जो भक्त को भगवान से मिलती है। मंदिर में जब भी जाए प्रसन्न होकर जाए कषाय को लेकर नहीं जाना चाहिए परिवार की समस्या और कषायों को लेकर जाने से कोई फायदा नहीं है।कषायो रहित भगवान की भक्ति और आराधना करना चाहिए।उसी से लाभ होता है। पंच परमेश्वर में गौतम स्वामी जी, भगवान आदिनाथ जी, भगवान शांतिनाथ जी, नेमिनाथ जी, पार्श्वनाथ जी के बारे में विस्तृत रूप से बताया तत्पश्चात माँ सरस्वती और गुरु की पूजा की जाती है। शुद्ध मन से सच्चे मन से प्रभु से प्रार्थना की जाए तो सब कार्य हो जाते हैं विश्वास,श्रद्धा होगा तो सब कार्य होंगे।आधि,व्याधि, रोग, शोक, दुःख सब परमात्मा दूर कर सकते हैं भगवान को दिल से याद करना चाहिए।
आज 2:00 से 3:00 जाप किया गया। 3:00 बजे बाद कलश भर गया तत्पश्चात धारणा की क्रिया संपन्न हूई। आज 3:00 बजे कलश का पूजन किया गया। सिद्धि तप के बारे में बताया कि सिद्धि तप से कर्मों की निर्जरा होती है।इसके लिए आपके मन को मजबूत बनाना पड़ेगा क्योंकि 12 महीने हम भोजन करते हैं परंतु कभी उपवास कभी-कभी ही करते हैं।इसलिए सिद्धि तप के लिए शरीर और मन को मजबूत बनाना पड़ेगा। कल सरस्वती की आराधना के बारे में समझाया जाएगा।सरस्वती के पास बुद्धि है और सरस्वती लक्ष्मी और ज्ञान दोनों देती है सरस्वती की आराधना और गुरु के बारे में समझाया जाएगा। 29, 30 और 31 जुलाई को अठ्ठम तप की आराधना होगी। इसमें तीन उपवास रहेंगे और शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु के जाप किए जाएंगे 28 तारीख को धारणा रहेगी तथा 1 अगस्त को पारणा किया जाएगा।इसमे जिसको भी भाग लेना है म. सा. या समिति से संपर्क कर सकते हैं।
सौ.वृ.त. त्रिस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज आन्नत चातुर्मास समिति रतलाम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित प्रवचन श्रृंखला में बड़ी संख्या में श्रावक व श्राविकाएं उपस्थिति रही।