रतलाम, 30 जुलाई। भगवान कहते हैं कि आत्मा का सुख अलग है और इंद्रियों से जो सुख मिलता है वह अलग। हम सुनते तो अच्छा है लेकिन उस पर दोबारा विचार नहीं करते है। प्रभु ने बताया है कि संसार सुख देने जैसा नहीं है, फिर भी हम उसे सुख मानते हैं क्योंकि हम मोह के नशे में हैं।
यह बात वर्धमान तपोनिधि पूज्य आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सूरीश्वर जी म.सा. ने सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में चल रही प्रवचन श्रृंखला में कही। उन्होने कहा कि शराब का नशा तो कुछ घंटे में उतर जाता है और गड्ढे में गिरा व्यक्ति भी बाहर निकल आता है लेकिन मोह का गड्ढा ऐसा है कि प्रभु मिलने के बाद भी हम उससे बाहर नहीं निकल पाते हैं, जब यह नशा उतरेगा तब जाकर मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। जब तक संसार का राग है, तब तक मोक्ष के मार्ग पर नहीं चल सकते हैं।
गणिवर्य डॉ. अजीत चंद्र सागर जी म.सा. ने कहा कि सागर जी म.सा. की जन्म तिथि पर 45 आगाम की शोभायात्रा निकाली जाएगी। आगम के बहुमान को वह अपना बहुमान मानते थे। आज तक संसार का बोझ तो बहुत उठाया है, एक बार 45 आगम की पालकी उठाने का मौका मिलेगा। 4 अगस्त को सभी लोग इसमें शामिल होकर धर्म लाभ आवश्यक रूप से लेवे।
श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्री संघ गुजराती उपाश्रय रतलाम एवं श्री ऋषभदेव जी केसरीमल जी जैन श्वेतांबर पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन श्रृंखला में बड़ी संख्या में श्रावक, श्राविकाएं उपस्थित रहे।