यदि समयक्त आ गया, तो आत्मा को कोई दुखी नहीं कर सकता – आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा.

रतलाम, 20 अगस्त। आत्मा यदि मिथ्यात्म है तो वह पाप से बचाने का प्रयास नहीं करती है, फिर चाहे परमात्मा ही क्यों न मिल जाए। आत्मा कर्म का बंध कराती है। प्रवृत्ति से कर्म बंध नहीं होते हैं, परिणीति से होते हैं। आत्मा को मिथ्यात्म दुखी करती है। यदि समयक्त आ गया तो आत्मा को कोई दुखी नहीं कर सकता है।
यह उदग़ार आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा ने व्यक्त किए । वे सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में चातुर्मासिक प्रवचन में बोल रहे थे। आचार्य श्री ने आत्मा और मिथ्यात्म को परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि यदि हम छोटी सी चीज मिल जाने से सुखी और दुखी हो जाते हैं तो समझ लेना कि यह मिथ्यात्म है। यह ठीक वैसे ही है जैसे कि कैंसर शरीर के अंदर होता है, अंदर ही बढ़ता है और शरीर को खा जाता है। भगवान कहते हैं की आत्मा का कैंसर भी ऐसा ही होता है। प्रवचन में गणिवर्य डॉ. अजीतचंद्र सागर जी म.सा. ने भी अपने भाव रखे। प्रवचन प्रतिदिन आयोजित हो रहे है । श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्री संघ गुजराती उपाश्रय रतलाम एवं श्री ऋषभदेव जी केसरीमल जी जैन श्वेतांबर पेढ़ी रतलाम ने सभी श्रावक श्राविकाओं से प्रवचन में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित रहने का आव्हान किया है।