पर्युषण महापर्व के दौरान ध्यान और प्रार्थना का अभ्यास मानसिक शांति और एकाग्रता को बढ़ाता है – साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा.

रतलाम। सौ.वृ.त. श्री राजेंद्र सूरी त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्री संघ एवं चातुर्मास समिति द्वारा नीम वाला उपाश्रय खेरादी वास में रतलाम नंदन प. पू .श्री 1008 जैन मंदिर के प्रेरणादाता, राष्ट्र संत कोकण केसरी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय लेखेन्द्र सूरीश्वर जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती एवं मालवमणि पूज्य साध्वी जी श्री स्वयं प्रभा श्री जी म.सा. की सुशिष्य रतलाम कुल दीपिका शासन ज्योति साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा., श्री अक्षयगुणा श्रीजी म.सा. श्री समकित गुणा श्री जी म.सा. श्री भावित गुणा श्री जी म.सा. उपासना में विराजे हैं जिनका चातुर्मास में नित्य प्रवचन चल रहे हैं इसी तारतम्य में आज 31 अगस्त 2024,शनिवार को प. पु. साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी मसा. ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि यह पर्युषण महापर्व है और जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है, जो आत्म-शुद्धि, आत्म-निरीक्षण, और क्षमा प्राप्ति के लिए समर्पित होता है। यह महापर्व 8 दिन का है। पर्युषण का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि करना, बुरे कर्मों को दूर करना, और दूसरों के प्रति क्षमा भाव रखना । इसमें रोज विभिन्न धार्मिक गतिविधियां हो रही हैं इसमे उपवास, प्रार्थना, और ध्यान करते हैं। पर्युषण पर्व के अंतिम दिन को ‘संवत्सरी’ कहा जाता है, जो सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन समाज जन एक दूसरे से क्षमा याचना करना चाहिए और “मिच्छामी दुक्कड़म” कहते हैं, जिसका अर्थ होता है “यदि मैंने आपको जानबूझकर या अनजाने में किसी भी प्रकार से कष्ट दिया है, तो कृपया मुझे क्षमा करें।”
संवत्सरी के दिन समाज जन के लोग अपने आत्मनिरीक्षण के जरिए पिछले वर्ष में किए गए पापों के लिए प्रायश्चित करते हैं और अगले वर्ष के लिए शुद्ध और धर्म पूर्ण जीवन का संकल्प लेते हैं।
पर्युषण पर्व में अनुशासन, संयम, और धर्म का विशेष महत्व होता है। अपने दैनिक जीवन में अहिंसा, सत्य, और अचौर्य जैसे सिद्धांतों का पालन करने का प्रयास करते हैं, और इस पर्व के माध्यम से वे अपने जीवन में धर्म और नैतिकता को और भी मजबूती से स्थापित करने का प्रयास करते हैं। पर्युषण पर्व के कई आध्यात्मिक और मानसिक लाभ होते हैं, जो समाज जन को उनके जीवन में शांति, समृद्धि, और संतुलन प्राप्त करने में मदद करते हैं। इसमे मुख्य लाभ आत्मशुद्धि और आत्मनिरीक्षण पर्युषण पर्व के दौरान लोग अपने भीतर झांकने और आत्मनिरीक्षण करने का अवसर पाते हैं। इससे उन्हें अपने विचारों, भावनाओं, और कार्यों का मूल्यांकन करने में मदद मिलती है, जिससे वे अपने जीवन को सुधार सकते हैं। इस पर्व का सबसे बड़ा लाभ क्षमा और प्रायश्चित का अभ्यास है। “मिच्छामी दुक्कड़म” के माध्यम से लोग अपने संबंधों को सुधारते हैं और अपने हृदय को क्रोध, द्वेष, और ईर्ष्या जैसे नकारात्मक भावों से मुक्त होना चाहिए।
पर्व के दौरान ध्यान और प्रार्थना का अभ्यास मानसिक शांति और एकाग्रता को बढ़ाता है। यह मन को शांत करता है और तनाव को कम करता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।संयम और अनुशासन पर्युषण के दौरान उपवास और संयम का पालन करना शारीरिक और मानसिक अनुशासन को बढ़ावा देता है। इससे व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना सीखता है और अपने जीवन में अनुशासन का पालन करता है।
धार्मिक शिक्षा पर्व के दौरान धार्मिक प्रवचन और शिक्षाओं का आदान-प्रदान होता है, जिससे लोगों को धर्म, नैतिकता, और जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों के बारे में गहरी समझ प्राप्त होती है।सकारात्मक ऊर्जा और शांति जब लोग पर्युषण पर्व के दौरान सकारात्मक सोच और भावनाओं का अभ्यास करते हैं, तो यह उनके जीवन में शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इससे उनका व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन बेहतर होता है। उक्त बात व्याख्यान में कहीं तथा दोपहर में नाट्य मंचन हुआ। जिसमें एक सेठ सेठानी और उनका भाई था सेठ व्यापार के लिए बाहर गया और वहां पर उसको साधु मिले और साधु ने कहा कि संसार में तुम अकेले ही हो और तुम जब मरोगे तो तुम्हारे साथ कोई नहीं जाएगा सेठ नहीं माना और सेठ ने साधु को कहा कि मेरे साथ में मेरी पत्नी और मेरे भाई है फिर साधु ने तरीका बताया उसे तरीके से सेठ लेट गए और परिवार वालों को लगा कि सेठ मर गए हैं तब साधु महाराज आए और उन्होंने कहा कि मैं तुमको एक दवाई देता हूं जिससे तुम्हारा सेठ जिंदा हो जाएगा पर तो तुम दोनों में से किसी को अपने प्राण देने पड़ेंगे तो दोनों ने ही मना कर दिया साधु महाराज को बोला तुम अकेले हो तुम ही पी लो साधु ने औषधि को ग्रहण किया और फिर सेठ को आवाज लगाई सेठ तुरंत खड़े हो गए और गृहस्थ छोड़कर वन की तरह प्रस्थान कर गए। इस कहानी का सार यह निकलता है कि मोह ग्रस्त नहीं होना है अपने को अपना कार्य करते ही रहना है अपने कर्म अपने साथ में जाएंगे दूसरा कोई भी व्यक्ति आपके साथ नहीं जाएगा।सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में बड़ी संख्या में श्रावक, श्राविकाए व समाज जन उपस्थित थे।