दीजिये दान मिलेगा आत्म सम्मान – मालव गौरव पूज्याश्री प्रियदर्शनाजी म.सा.

फोटो – सिद्धितप तपस्वी खुशबु अरिहंत बोराणा तपस्या के प्रत्याख्यान लेते हुए।  

रतलाम 02 सितंबर । श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ नीमचौक रतलाम पर पर्युषण महापर्व द्वितीय दिवस के अवसर पर जिनशासन चंद्रिका, मालव गौरव पूज्याश्री प्रियदर्शनाजी म.सा. (बेरछावाले) एवं तत्वचिन्तिका पूज्याश्री कल्पदर्शनाजी म.सा. ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि समस्त पर्वतों में मेरू पर्वत, मंत्र में नवकार मन्त्र, दान में अभय दान और पर्व में पर्युषण महापर्व सर्वश्रेष्ठ है। प्रभु ने मोक्ष के चार मार्ग के बताए हैं दान, शील, तप और भाव। दान धर्म का प्रवेश द्वार है। दान वही व्यक्ति दे सकता है जिसका धन से ममत्व कम जाए। दान देने वाला लेने वाले पर उपकार नही करता है। पूर्व जन्म में दान देकर आए हो तो इस जन्म में वैभव प्राप्त होता है। जीवन में पुण्यवानी के उदय से जो वैभव मिला है, उसका लाभ लेते रहना चाहिए और दान करते रहना चाहिए। जो व्यक्ति देना सीख जाता है उसे कभी भी कंगाली का सामना नही करना पड़ता है। दान के चार प्रकार है। अमृत समान, दूध समान, पानी समान और जहर के समान।
अमृत समान दान : शुध्द निर्मल भाव से स्व प्रेरणा से सुपात्र को दिया गया दान अमृत समान होता है, जैसे प्रभु महावीर के प्रथम भव में नयसार ने साधु भगवन्तों को सुपात्र दान दिया था। और उसके आगे प्रभु महावीर की भवों की यात्रा शुरू हुई जो मोक्ष तक पँहुची।
दूध के समान : आवश्यकता आने पर माँगने पर जो सहर्ष खुशी खुशी दान दे दे वह दूध के समान है, जैसे कृष्ण ने सुदामा को दिया।
पानी के समान : लोगो के देखा देखी सामाजिक लोक लाज की वजह से बिना मन के मजबूरी में दिया गया दान पानी के समान निर्रथक है।
जहर के समान : 100 बातें सुनाकर, 100 ताने देकर अपशब्द बोलकर दिया गया दान जहर के समान है। ऐसा दान आत्मा के गुणों के नष्ट कर देता है।
अमृत के समान और दूध के समान दिया गया दान निकट भवी बनाता है। इस दुनिया में धनवानों की लिस्ट तो बहुत बड़ी बन जाएगी लेकिन दानवान बहुत कम मिलेंगे । धन की केवल तीन गति बताई गई है। दान, भोग, नाश। कई मध्यमवर्गी व्यक्ति भी दिल के अमीर होते है, जो अपने खर्च में कटौती करके सद्कार्यों में खर्च करते है। धन की उदारता होती है तो जीवन का गौरव बढ़ता है। पुण्यवान के जीवन में धन की कमी नही आती है। भाग्य अगर रूठ जाए तो इकट्ठा किया हुआ धन भी चला जाता है। विख्यात दार्शनिक शेख सादी ने दो प्रकार के मूर्ख बताए है पहला वह जो धन तो खूब जोड़ लेता है लेकिन मौका आने पर बगले झाँकता है। दूसरा मूर्ख वह है जो ज्ञान तो खूब प्राप्त कर लेता है लेकिन जिसके आचरण में ज्ञान और विनय न हो।
जो जोड़ गया वो सब छोड़ गया
जो गाड़ गया वो झक मार गया
जो खा गया वो खो गया
जो दे गया वो ले गया।