क्रोध, मान, माया हम में जब तक रहेगी हम धर्म के वास्तविक रूप को नहीं समझ पाएंगे- पूज्य महासती संयम प्रभा जी

जावरा (अभय सुराणा) । हर प्राणी सुख प्राप्त करना चाहता है दिन-रात मेहनत करता है फिर भी सुख की प्राप्ति नहीं होती है विद्यार्थी पास होने में ,संयमी जीव आत्मा का कल्याण करने में सुख मानता है सुख अपने आत्मा के अंदर है जिसमें सरलता का गुण होता है उसे सुख प्राप्त हो जाता है । सरलता लाने के लिए आत्मा के अंदर राग और द्रेष की भावना को दूर करना पड़ेगा महान व्यक्ति के अंदर सरलता का गुण प्रत्यक्ष दिखाई देता है वे अपनी आत्मा का कल्याण कर लेते हैं अच्छे कार्य करने वाला महान बनता है । जब तक मन में आग है, जब तक मन में जहर है तब तक दुखः ही दुखः है जीवन की पहली सीडीं सरलता है । उपरोक्त प्रेरक विचार जैन दिवाकर भवन दिवाकर मार्ग पर जिन शासन गौरव पूज्य गुरुवर श्री उमेश मुनि जी महारा साहब ‘अणू’ की आज्ञानूवर्तनी पूज्य महासती श्री संयम प्रभा जी महारा साहब ने कहे आगे उन्होंने कहा कि भगवान ने धर्म का उपदेश क्यों दिया । विकारों के प्रति अरुचि नहीं होगी क्रोध, मान, माया जब तक रहेगी तब तक हम धर्म के वास्तविक रूप को नहीं समझ पाएंगे पापों के प्रति अरुचि होना चाहिए धर्म से लाभ क्या होता है (1) कर्मों की निर्जरा होती है (2) पुण्य का बंध बनता है हर मानव पुण्य का फल चाहते हैं लेकिन पुण्य के कार्य करना नहीं चाहता पाप के फल कोई नहीं चाहता लेकिन आदर सहित कार्य करता है जो बीज बोएंगे वही हम काटेंगे मान, सम्मान चाहने से नहीं मिलता कार्य से मिलता है । दूसरे को मान-सम्मान दिया तो खुद को भी सम्मान मिलता है । पुण्य के बंध से 9 प्रकार से लाभ होता है लेकिन 42 प्रकार से उदय में आता है पूर्व भव में अच्छा कार्य किया तो मनुष्य*जन्म मिला पुण्य हे तो कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता है लेकिन समाप्त हुआ तो कोई भी बचा नहीं सकता ।
श्री संघ के अध्यक्ष श्री इंद्रमल टुकड़ियां ट्रस्टी राकेश मेहता सुशील चपलोद पूर्व महामंत्री सुभाष टुकड़ियां ने नगर के समस्त धर्म प्रेमी बंधुओ से अधिक से अधिक व्याख्यान का लाभ लेने की अपील कि है । धर्मसभा का संचालन महामंत्री महावीर छाजेड़ एवं प्रभावना का लाभ स्व. संतोष देवी महेंद्र कुमार जी कोचट्टा परिवार द्वारा लिया गया।

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