इंदौर (राजेश जैन दद्दू ) । “संतोष” सबसे बड़ा मूल मंत्र है”जो आपके पास है उसमें यदि आपने संतोष कर लिया तो आपसे ज्यादा खुश कोई दूसरा व्यक्ति नहीं,” जो प्राप्त है उसे पर्याप्त मानो” मन को हर स्थिति में आनंद से भरो” उपरोक्त उदगार मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज ने मोदीजी की नसिया में प्रातःकालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
मुनि श्री ने कहा कि “मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी समस्या है जो उसके पास है उससे उसमें संतोष नहीं,और और की चाह उसके जीवन से सुख शांति को छीन लेती है इसी संद्रभ मेंआचार्य गुरुदेव विद्यासागरजी महाराज कहते है कि “जो पाता है सो भाता नहीं, जो भाता है सो पाता नहीं, इसीलिए सुख साता नहीं” उन्होंने कहा कि पेट भरने की चिंता करो, पेटी भरने की नहीं”पेटी भरने की चिंता करोगे तो आपका रहा सहा सुःख भी दुःख में तव्दील हो जाऐगा। उन्होंने आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज के “कर्तव्य पथ प्रदर्शक” में “निन्यानबे का चक्कर” पर कहानी लिखी जो कि एक सेठ तथा मजदूर परिवार पर आधारित है एक दिन सेठजी से सेठानी बोली बो अपने बाजू में सुखिया का परिवार रहता है, वह बहुत सुखी है देखो सुवह सुवह जल्दी उठता है भगवान की भक्ती करता है,तथा मजदूरी करने निकल जाता है,सेठ जी ने कहा कि वह अभी निन्यानबे के चक्कर में नहीं पड़ा है इसीलिये सुखी है,सेठजी ने सेठानी से एक सोने की मोहर की पोटली देते हुये कहा कि इसे रात के अंधेरे में उसके घर पर डाल दैना फिर देखना ? सेठानी ने रात के अंधेरे में मोहरों से भरी वह पोटली उसके घर में डाल दी।
सुवह हुई और सुखिया उठा उसने उसने घर के आंगन में पोटली को देखा तो उसने अपनी पत्नी को आबाज दी और कहा कि देखो आज भगवान ने प्रसन्न होकर उसके घर सोने की बरसात कर दी है उसने जब मोहरें गिनी तो वह 99 थी उसने प्रभु से सिकायत करते हुये कहा कि आपने एक मोहर कम क्यों दी? चलो कोई बात नहीं एक मोहर मेंअपनी कमाई से कर लूंगा और उसने 100 मोहर करने के लिये दिनरात महनत करना शुरू किया इससे उसके घर में जो सुवह सुवह पूजा पाठ की आबाज आती थी वह आना बंद हो गई और जो शाम को अपने घर आ जाता था और बच्चों के साथ खेलता था वह खुशियों से दूर होकर वह दिन रात मजदूरी कर एक एक करके जैसे तैसे रूपया जोड़ा और एक मोहर खरीद ली अब उसके पास पूरी 100 मोहर थी वह बहूत खुश हुआ इसके बाद उसको मोहरों की सुरक्षा की चिंता हुई उसके लिये तिजोरी खरीदने के लिये उसने फिर धन इकट्ठा किया,और तिजोरी खरीद कर ली,उसमें उन मोहरों की पोटली को रखा तो वह एक खाने में रखा गई, तिजोरी खाली खाली नजर आई उसको भरने के लिये वह फिर वह प्रयत्नशील हो गया कहते है कि आज तक वह तिजोरी नही भरी वह उसको भरने में ही लगा हुआ है। जो सुख शांति उसके घर में पहले थी वह भंग हो चुकी है मुनि श्री ने प्रश्न करते हुये कहा कि यह धन आप किसके लिये कमाते हो? तो जबाव मिला कि पापी पेट भरने के लिये तो जबाव देते हुये कहा कि “पापी पेट नहीं पेट बाला पापी है क्यों कि उसने अपने साथ जो “इच्छाओं” की पेटी अटेच कर रखी है,वह कभी भरने बाली नही” यदि आप अपने जीवन को सुखी बनाना चाहते हो तो स्वंय में संतुष्ट रहना सीखो सबको संतुष्ट करना तो मुश्किल है लेकिन स्वंय में संतुष्ट होंना सरल है “प्राप्त को पर्याप्त मान लोगे तो मन हर स्थिति में आनंद से भर जाऐगा” जीवन के दो पहलू है और यह दौनों सुखः और दुखःका क्रम लगातार चलता रहता है,आप चाहो तो प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपनेअनूकूल बना सकते हो और यदि व्यर्थ की आकांक्षाओं में उलझ गये तो अच्छे खासे जीवन को भी नरक बनने में देर नहीं लगती”अपने आपको सुखी रखना चाहते हो तो किसी दूसरे से होड़ और प्रतिष्पर्धा से बचो मुनि श्री ने कहा कि मोदीजी की नसिया का यह परिसर विस्तृत और ऊर्जावान परिसर है इस धरोहर को वृहद कार्य योजना बनाकर बहूत ही भव्य बनाया जा सकता है जिससे आप लोगों को साधू समागम मिलता रहे, यह इंदौर नगर के पश्चिमी क्षेत्र का शानदार स्थान है उन्होंने सभी टृस्टीओं को आशीर्वाद प्रदान किया इस अवसर पर मुनि श्री निर्वेगसागर महाराज एवं मुनि श्री संधान सागर महाराज सहित समस्त क्षुल्लक मंचासीन रहे।
धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू एवं प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया प्रातःकाल भगवान नेमीनाथ की प्रतिमा पर 183 वर्ष बाद पहलीबार शांतिधारा संपन्न हुई एवं मुनि संघ की प्रेरणा से मंदिर टृस्ट कमेटी ने निर्णय लिया कि प्रत्येक पूर्णमासी और अमावस्या पर अभिषेक एवं शांतिधारा संपन्न हो जिससे निरंतरता बनी रहे।इस अवसर पर धर्म प्रभावना समिति के अध्यक्ष अशोकरानी डोसी, आनंद नवीन गोधा, योगेन्द्र काला, पारस पांड्या, नीरज मोदी, मनोज काला, जयदीप जैन, कमल काला सहित समस्त पदाधिकारी एवं समाज जन उपस्थित थे।