जैन समाज में गन्ने के रस से पारणा कराने का अपना एक अलग महत्व है

जावरा (अभय सुराणा) । जैन समाज के आराध्य देव प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को गोचरी के दोरान करीब 13 माह बाद यानी 400 दिवस के बाद चक्षु रस यानी गन्ने का रस मिला था। तभी से जैन समाज वर्षीतप का पारणा गन्ने के रस से करता आ रहा है। यह पंरपरा भगवान आदिनाथ के समय से चल रहीं हैं भगवान आदिनाथ को 400 दिवस निराहार रहने के पश्चात उनके पोत्र श्रेंयास कुमार द्वारा गन्ने का रस वेराकर उनका वर्षीतप का पारणा कराया गया था वर्षीतप पारणे मे 108 घडो से गन्ने का चक्षु रस से पारणा का लाभ लिया था आज भी परंपरा के अनुसार पारणे का अपना एक अलग महत्व है । उक्त जानकारी का प्रेसनोट जारी करते हुए श्री आल इंडिया श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस युवा शाखा नईदिल्ली के निवृत्तमान राष्ट्रीय संगठन मंत्री जैन संदीप रांका जावरा एंव श्री अ. भा. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद के वरिष्ठ प्रांतीय उपाध्यक्ष अनिल धारीवाल ने बताया। साथ ही देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एंव देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह के साथ देश के सभी प्रदेश के मुख्यमंत्री से नम्र निवेदन किया है कि आप अपने अपने प्रदेश में आखातीज 26 अप्रेल रविवार को गन्ने के रस की व्यवस्था कराने का आग्रह है। जैन समाज में अक्षय तृतीया वर्षीतप का बहुत बड़ा महत्व है साथ ही अक्षय तृतीया वर्षीतप पारणा के दोरान गन्ने के रस से ही किया जाता है साथ ही प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का अभिषेक भी गन्ने के रस से ही किया जाता है । इस दोरान वर्षीतप पारणा हेतु गन्ने के रस को उपलब्ध कराने की व्यवस्था कि जाय जिससे तप करने वाली की आप हम सभी के द्वारा अनुमोदना कि जा सके।
जिसमें वर्षीतप करने वालों का पारणा सबसे पहले केवल गन्ने के रस से किया जाता है। चूकि भगवान आदिनाथ को गोचरी मै 400 दिन पश्चात आखातीज के दिन ही गन्ने का रस मिला था, इस कारण बरसों से यह पंरपरा आखातीज के दिन की जाती है। इस दिन वर्षीतप करने वाले को केवल गन्ने का रस ही पिलाया जाता है।
जैन समाज में आखातीज का विशेष महत्व
यूं तो आखातीज देशभर में मनाई जाती है। इस दिन शादी ब्याह का अबूझ मुहूर्त होने के कारण इस दिन सैंकड़ों लोग जिनके मुहूर्त नहीं निकल पाते हैं वे भी इसदिन शादी ब्याह रचाते हैं। लेकिन जैन समाज में आखातीज का विशेष महत्व होता है।
उन्हें 13 माह बाद उन्हीं के सुपौत्र श्रेयांस कुमार द्वारा गन्ने का रस पिलाया गया। बस तभी से जैन समाज में वर्षीतप की परंपरा शुरू हो गई। जिसे हजारों साल हो चुके हैं।
सालभर करते हैं एक दिन छोड़कर एक दिन उपवास एंव बैला
जैन समाजजनों द्वारा पूरे 13 माह तक एक दिन छोड़कर एक दिन व्रत किया जाता है। इस तपस्या को वर्षीतप कहा जाता है। इसमें एक दिन बिल्कुल कुछ नहीं खाया जाता है। वहीं एक दिन केवल बियासना मे सुर्योदय के बाद और शाम को सुर्योस्त के पहले आगार सहित भोजन लेते हैं जिसमे जमीकंद हरी पत्ती सहित कही वस्तुओं का त्याग रहता है । इस प्रकार पूरे 13 माह व्रत करने के बाद वर्षीतप का पारणा आखातीज के दिन होता है।
सभी जैन धर्मावलम्बियों से निवेदन है की वर्षीतप की अनुमोदना मे अपनी अपनी भावनानुसार एकासना, आयंबिल जाप,उपवास जीवदया करुणा के भाव कर तप करने के वालो का भाव वंदना के साथ बहुमान कर तप करने वाले की महीमा मे अभिव्यक्ति करे ।
गन्ने के रस की व्यवस्था कराने का आग्रह जैन सोश्यल ग्रुप जावरा मैत्री परिवार के राजीव लुक्कड, पंकज कांठेड,आशीष पोखरना, दीपक मेहता, शंशाक मेहता, अजय पटवा, आलोक बरैया,राजेश पोखरना,अतुल पगारिया,सौरभ पगारिया,अजय कांठेड़,अर्पल कोचट्टा,मनीष पोखरना,आकर्ष जैन नितिन भंडारी, शरद डुंगरवाल, अंकुर जैन, विकास सियार, अभिषेक ओरा, संदीप श्रीमाल पारस श्रीमाल, मनीष पावेचा संदीप चोरडिय़ा, पियुष काठेड मनीष धारीवाल, निलेश कांकरिया पुखराज सुराणा, आशीष चत्तर, पवन पोखरना, पुखराज संचेती , अंशुल मेहता, आलोक कांकरिया शेलेष श्रीश्रीमाल ने की है।