22 अप्रैल श्रद्धेय गुरुदेव आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज की 28 वीं पुण्यतिथि पर विशेष
भारत की पुण्यधारा को अनेक ऋषि, मुनियों , योगियों , मनीषियों की पुण्य भूमि होने का शोभाग्य मिला। जिन्होंने मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठित किया । युग चेतना को नई दिशा दिखाई। युद्ध, हिंसा, अशान्ति, साम्प्रदायिक वैमनस्य से संत्रस्त मानवता को शान्ति का सन्देश दिया। अज्ञानांधकार में दिग्भ्रमित प्राणीयों को ज्ञान का आलोक प्रदान किया ।
अहिंसा के मसीहा, क्रांतद्रष्टा, युग स्रष्टा, विश्व विख्यात गुरुदेव जैनाचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज उसी शृंखला की दिव्य विभूति थे । हरियाणा के ग्राम शिकोहपुर (गुडग़ाँव) को आचार्य श्री जी की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त हुआ। ब्राह्मण कुल के पिता सुनहरा सिंह जी एवं माता भारती देवी जी ऐसे विलक्षण बालक को पाकर आनन्दित हुए ।
20 अप्रैल 1942 को जंगरावा पंजाब में जैन धर्म की दीक्षा अंगीकार कर पूज्य श्री छोटेलाल जी महाराज का शिष्यत्व स्वीकार किया।
धर्म एवं सम्प्रदाय के नाम पर विषाक्त वातावरण को देखकर आपने मन में संकल्प लिया की प्राणीमात्र में मैत्री हो। वसुधैव कुटुम्बक़म की भावना का उदय हो। सम्पूर्ण विश्व मैं शान्ति का साम्राज्य हो ।
सन 1954 में मुम्बई में सर्वधर्म सम्मेलन एवं 1955 में उज्जैन , भीलवाड़ा में सर्वधर्म सम्मेलन का आयोजन कर सभी धर्मगुरुओं को एक मंच पर एकत्रित कर धार्मिक एकता का शंखनाद किया।
सन 1957 में दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन एक ऐतिहासिक क्रांति थी । जिसमें 27 देशों के प्रतिनिधि , भारत के प्रथम राष्ट्रपति ड़्रा राजेन्द्र प्रसाद , प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु, उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, विभिन्न धर्मों के धर्माचार्य एवं धर्मगुरुओं ने गुरुदेव द्वारा किये जा रहे शान्ति, भाईचारे, अहिंसा, मानवीय मूल्यों की स्थापना एवं सर्वधर्म समन्वय के प्रयासों का एक स्वर में समर्थन किया ।
गुरुदेव की सिंह गर्जना जनमानस को प्रेरित एवं आंदोलित कर देती थी । उनके आलोकिक व्यक्तित्व के सम्मुख सभी नतमस्तक थे । गुरुदेव का एक आह्वान पर सुप्त मानस में नई क्रान्ति फूँक देता । इस विराट सम्मेलन में उमड़ा अपार जनसमूह गुरुदेव के वर्चस्व एवं प्रभुत्व का परिचायक था । इसी संकल्प को मूर्तरूप देने के लिए गुरुदेव ने 1954 से 1994 तक अनेक सर्वधर्म सम्मेलन एवं सात विराट विश्व धर्म सम्मेलनों का आयोजन किया । जिसमें विश्व के शीर्षस्थ धर्मगुरु, धर्माचार्य, राजनेता एवं प्रबुद्ध हस्तियों ने सम्मिलित होकर अहिंसा, शान्ति के लिए आचार्य श्री जी द्वारा किए जा रहे प्रयासों का पुरज़ोर समर्थन किया ।
सन 1966 में गौरक्षा तथा गौसंवद्र्धन के लिए गौरक्षा आन्दोलन का नेतृत्व किया।
गुरुदेव की ओजस्वी वाणी से प्रभावित होकर गुडग़ाँव के चौगान माता मन्दिर में हरिजनों द्वारा निरीह पशुओं की बलि प्रथा को बंद करने का संकल्प , कार्ला केब पर बलि प्रथा का उन्मूलन , महावीर जयन्ती पर दिल्ली के बूछडख़ाने बंद करवाने का आव्हान किया ।
गुरुदेव की अप्रतिम साधना की साक्षी हैं महरौली स्थित दादावाड़ी का पावन तीर्थ एवं बिरला मन्दिर के पृष्ठभाग का वन । जहाँ गुरुदेव अविचल भाव से ध्यान में लीन रहे और अंतत: साधना का जो अमृत पाया उसे विश्व कल्याण हेतु मुक्त भाव से वितरित किया ।
भगवान महावीर की 2500 वीं निर्वाण शताब्दी पर भगवान महावीर के अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह जैसे सिद्धान्तों को विश्वव्यापी बनाने के लिए गुरुदेव ने साहसिक युगांतरकरी निर्णय लेकर विदेशों में जैन धर्म एवं भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार, विस्तार किया । विरोधों , अवरोधों की तेज़ आँधियों के समक्ष भी गुरुदेव न कभी रुके न कभी झुके । निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर निष्काम कर्मयोगी की भाँति अप्रमत्त भाव से गतिशील रहे ।
निन्दा, आलोचनाओं की परवाह किए बिना समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण मानवजाति को स्नेह सदभाव तथा सद्गुणों का अमृत बाँटते रहे । यह थी उनकी अद्भुत समत्व साधना ।
अमेरिका न्यू जर्सी के बिस्ट्रान में 108 एकड़ के विस्तृत भूखण्ड पर प्रथम जैन तीर्थ सिद्धाचलम की स्थापना की। जिसका भविष्य में आगे बढ़कर 120 एकड़ में विस्तार हो गया। नैसर्गिक सौन्दर्य से भरपूर यह स्थान अद्भुत है। गुरुदेव की तपोभूमी है । यहाँ का कण-कण गुरुदेव की गौरव गाथा का गान करता प्रतीत होता है । वहां पर समग्र जैन एकता का संदेश देना ही गुरूदेव की इच्छा शक्ति का ही परिणाम है । वहां पर समग्र जैन समाज के धर्मावलंबी अपनी-अपनी पद्धति से सेवा पूजा और साधना और स्वाध्याय करते है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ में जैन धर्म को विश्व के प्राचीन धर्म के रूप में मान्यता दिलवाना , संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र में सभी जीवों की रक्षा का सिद्धान्त सम्मिलित करवाना, कोलम्बिया, टोरंटो विश्वविद्यालयों में जैन विभाग की स्थापना आदि कार्य गुरुदेव के प्रयासों द्वारा ही सम्भव हुए ।
आज के 28 वर्ष पूर्व आपने धरती बचाओ पर्यावरण पर आधारित ब्राज़ील पृथ्वी शिखर सम्मेलन में प्रथम बार संयुक्त राष्ट्र संघ के इतिहास में अहिंसा की गूँज सुनाई दी ।
विभिन्न शाकाहार सम्मेलनों एवं अहिंसा सम्मेलनों का प्रतिनिधित्व कर विश्व में अहिंसा की चेतना का प्रसार किया एवं नया दृष्टिकोण दिया ।
देश की एकता अखण्डता के लिए आतंकवाद पीडि़त पंजाब में शान्ति स्थापित करने में अहम भूमिका का निर्वहन किया ।
राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद के समाधान के लिए हिन्दू – मुस्लिम नेताओं में शांतिपूर्ण वार्ता का प्रयास कर राष्ट्र को साम्प्रदायिक सौहार्द एवं एकता का सन्देश दिया।
सर्वधर्म समन्वय, हिंसा, वैमनस्य से मुक्त, प्रेम मैत्री से युक्त अहिंसक समाज रचना मानव मात्र के लिए कल्याणकारी है । भगवान महावीर एवं भारतीय संस्कृति के सार्वभौमिक सिद्धान्तों का प्रचार – प्रसार प्राचीन रूढिय़ों से मुक्त धर्म को वैज्ञानिक एवं जीवन्त स्वरूप, परम्पराओं को संशोधित एवं परिष्कृत रूप में प्रस्तुत करना, जाति, पन्थ , सम्प्रदाय से मुक्त मानव धर्म , विश्व धर्म, वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धान्त को आत्मसात करता हुआ सम्पूर्ण विश्व गुरुदेव का स्वप्न था जिसे साकार करने के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया । गुरुदेव के हिमालय सदृश विराट व्यक्तित्व एवं उनके कर्तृत्व को शब्दों में बाँध पाना असम्भव है ।
श्री विवेक मुनि जी महाराज को 13 मार्च सन 1993 को महरौली नई दिल्ली स्थित बड़ी दादाबाडी के मंगल प्रांगण में सभी धर्मों के धर्माचार्यों एवं चतुर्विध संघ की मंगल उपस्थिति में स्वयं गुरुदेव आचार्य श्री सुशील मुनि जी महाराज ने अपने श्री मुख से आपको दीक्षा मंत्र प्रदान करके अपना प्रथम शिष्य उदघोषित किया और श्री सिध्देश्वर मुनि को 19 अप्रैल 1994 को दीक्षा देकर अपना दुतिय शिष्य बनाया। पूज्य गुरूदेव द्वारा समय-समय पर अन्य भगवत दीक्षाएं प्रदान की गई।
22 अप्रैल 1994 को मानवता के मसीहा 20वीं सदी के महानायक, युग प्रणेता, मानव जगत के दैडिप्यमान सूर्य परम पूज्य गुरुदेव अखिल विश्व को अहिंसा, प्रेम, मैत्री, करन , वात्सल्य का अमृत बाँटते हुए चिर समाधि में लीन हो गये । दहिक रूप से संसार से विदा होकर भी लोक कल्याण , मानव सेवा के लिए किए गए कार्यों के रूप में गुरुदेव सदा अमर रहेंगे । उनके द्वारा दिए गए अवदानों से सम्पूर्ण मानवता इनके प्रति सदा कृतज्ञ रहेगी। सदियों तक उनकी यश गाथाएँ दिग – दिगन्तों में गूँजती रहेंगी ।
पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री सुशीलमुनिजी म.सा. जब विदेश में धर्म प्रचार कर भारतीय संस्कृति के समवाहक के रूप में आपने जैन धर्म के साथ अन्य धर्मो में समन्वय की भावना को जागृत कर प्रज्जवलित किया । गुरूदेव को रतलाम, मंदसौर, उज्जैन, इंदौर, भोपाल आदि स्थानों पर प्रवास कर जैन धर्म भारतीय संस्कृति हिन्दू धर्म पर्यावरण आदि पर समय-समय पर अपने स्पष्ट उदबोधन के माध्यम से सभी धर्मो में समन्वय एकता का संदेश दिया ।
आज हम उनकी पुण्यतिथि पर उनके कार्यों को पूरा करने का द्रढ संकल्प ले यही हमारी उनके प्रति सच्ची भावांजलि – श्रद्धांजलि होगी ।