स्वामी श्री ज्ञानानंद जी तीर्थ ने अपने प्रसारित संदेश में कहा-धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग अन्नदान जो प्राणदान देने के समान है

रतलाम । कैलाश पर्वत पर विराजित भगवान शिव के यहां बर्फ में घास नही उगती। यहां नन्दी को घास की चाह नही है। मां शक्ति का वाहन सिंह का डर भी नन्दी को नही सताता। कार्तिकेय के वाहन मोर को शिव के गले का शोभित सर्प का भय नही लगता। मोर गणेश के वाहन चुहे को नही खाता। जहां बैर निवास नही करता वहां अतृप्ति नही ठहरती। शिव परिवार का हर सदस्य हमें संतुलित जीवन जीने का संदेश देता है। हर मनुष्य शिव परिवार की तरह अतृप्त नही रह सकता। अन्न जीवन का आधार है। दुसरों की भूख मिटाकर तृप्त करने वाला मनुष्य देवतुल्य है। धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग अन्नदान जो प्राणदान देने के समान है।
उक्त विचार भानपुरा पीठ से अनंत विभूषित भानपुरा पीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य श्री ज्ञानानंद जी तीर्थ ने पूर्व धर्मस्व मंत्री स्व. पं. मोतीलाल दवे के द्वारा स्थापित 38 वां अ.भा. रामायण मेले के अंर्तगत प्रसारित अपने संदेश में व्यक्त किए।
उन्होने कहा कि धरतीमाता प्रकृति की चेतन्य मूर्ती है। बीज को अंकुर पल्लव, पुष्पलता, वनस्पति, ओषधि, पौधे, अन्न संपदा, रत्न आदि अनेक प्रकार की संतान उत्पन्न करती है। संतुष्टि से संतोष बढ़ता है। मनुष्य को परख की आवश्यकता है। शाकाहारी अन्न हमारे प्राण है।
उन्होने कहा कि हमारे जीवन में यदि कौई दुख आता है तो हम उसे मिटाने की कोशीश करते है। हमें दुख को नही दुख के कारण को मिटाना चाहिए। हमारी गलतीयों को भगवान क्षमा कर सकते है परंतु प्रकृति कभी क्षमा नही करती है।
उक्त जानकारी रामायण मेले के संयोजक पं. राजेश दवे ने दी है।