संतजन-प्रकाशमय ज्योति- स्तंभ

  • जैन दिवाकर पूज्य गुरुदेव श्री चौथमलजी महाराज के प्रवचनों से लिए गए संक्षिप्त अंश -16
  • प्रवचनकार – जैन दिवाकर पूज्य गुरुदेव श्री चौथमल जी महाराज*.
  • साभार – आदर्श उपकार
  • लेखक – उपाध्याय श्रीप्यारचंदजी महाराज
  • संकलन/प्रस्तुति – सुरेंद्र मारू, इंदौर
  • मो. 98260 26001

संसार में संत जनों की बड़ी महिमा है। वे इस असार संसार में जीवित कल्पवृक्ष है उनके प्रकाश से संसार में प्रकाश फैल रहा है। वह अज्ञान – अंधकार में पड़ कर पथ भ्रष्ट हुए पथिकों के लिए प्रकाशमय ज्योति – स्तंभ हैं । संसार – सागर से पार उतरने के लिए वे जलयान है। उनकी कृपा पाकर सांसारिक प्राणी कृतार्थ हो जाता है। उनकी पवित्र वाणी में जो प्रभाव है वह संसार में अन्यत्र कहां है ? उनके स्निग्ध निरीक्षण में वात्सल्य का जो शीतल प्रवाह बहता है उसकी समानता गंगा का प्रवाह भी नहीं कर सकता। जिन्हें उन संत पुरुषों के सदुपदेश का श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है उनका जीवन पवित्र और निष्पाप बन जाता है। उनके उपदेश की बात जाने दीजिए, उनके दर्शन मात्र से हृदय के पट खुल जाते हैं।
मृगा पुत्र, एक राजा के पुत्र थे। वह एक दिन झरोखे में बैठे थे। उसी समय एक मुनि उधर से आ निकले। उनके मुंह पर मुंहपत्ती बंधी थी, बगल में रजोहरण दबा हुआ था। और हाथ में झोली लिए थे। ईर्यासमिति से अर्थात चार कदम आगे की भूमि को एकाग्र चित्र से देखते हुए चल रहे थे। नंगे पैर, नंगे सिर थे। उन मुनिराज पर दृष्टि पड़ते ही मृगा – पुत्र राजकुमार को ज्ञान हो गया और वह नरक, तिर्यंच आदि गतियों में होने वाली वेदनाओं को प्रत्यक्ष देखने लगे। उन्होंने अपने माता-पिता से संसार का दु:ख पूर्ण चित्र अंकित कर संयम धारण करने की आज्ञा मांगी। माता-पिता ने जब संयम की कठिनाई प्रगट कर उन्हें रोकने का प्रयत्न किया तो उन्होंने बड़ी दृढ़ता से कहा – संयम कायरों के लिए कठिन और शुरवीरों के लिए सरल है। संयम के कष्टों से अधिक कष्ट मैंने अनेकों बार नरक आदि में सहन किए हैं। फिर इन कष्टों से डरने का क्या कारण है ? इस प्रकार समझा – बुझाकर उन्होंने दीक्षा धारण की और घोर तपश्चरण द्वारा आत्मा का अक्षय कल्याण किया।
तात्पर्य यह है कि साधु – समागम क्षण भर में ही जीवन को सुपथ पर ले आता है अतएव सत्संगति के लिए प्रत्येक आत्म हितैषी को अवसर खोजना चाहिए। सत्संगति करके अपने को धन्य समझना चाहिए। पाप से मुक्त होने का यह सबसे सरल उपाय है। अत: सदा संतो के समागम में रहो।