रतलाम । केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ने पिछले दिनों पत्रकार वार्ता कर सीबीएसई एवं राज्य के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में कटौती की वकालत की। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जहां लाकडाऊन के कारण शिक्षण व्यवस्था प्रभावित हुई है ऐसे में पाठ्यक्रमों की अधिकता शैक्षिक सुधार में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। अत: आवश्यक है कि राज्य सरकारें भी और सेंट्रल एजुकेशन बोर्ड अपने भावी पाठ्यक्रमों में कटौती कर इस दिशा में पहल करें इसी बात को लेकर शिक्षक सांस्कृतिक संगठन ने रतलाम के शिक्षाविदों की एवं शिक्षकों की परिचर्चा आयोजित की । विषय प्रवर्तन प्रस्तुत करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मुरलीधर चांदनी वाला ने कहा कि पाठ्यक्रमों की अधिकता वैसे ही हमारी शिक्षण व्यवस्था को बोझिल बना रही है और भावी पीढ़ी को बस्ते के बोझ के तले कोल्हू के बैल की तरह जीवन जीने के लिए विवश कर रही है ऐसे में मंत्री जी का यह चिंतन देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। आपदा के इस दौर ने सबसे अधिक प्रभाव उन स्कूली बच्चों पर डाला है,जिनका खेलना-कूदना छूट गया, दादा-दादी और नाना-नानी के घर जाना छूट गया, ग्रीष्मकालीन शिविरों में जा कर कुछ नया सीखने की इच्छा मन में ही रह गई। अब आते साल की चिन्ता से ये बच्चे आशंकित और भयभीत दिखाई दे रहे हैं। आजकल स्कूली पाठ्यक्रम इतने विस्तार में होते हैं कि छात्र एक-दो दिन स्कूल न जा पाये, तो वह बुरी तरह पिछड़ जाता है। अभी कुछ समय से पाठ्यक्रम में लगातार फेरबदल हो रहे हैं , और हर बार नई-नई सूचनाओं और जानकारियों के समावेश ने पाठ्यक्रम का स्वरूप ही बदल दिया है। पाठ्यक्रम में नई सामग्रियों का प्रवेश तो स्वागतयोग्य होना चाहिए, लेकिन उसे समय सीमा में पूरा कर लेना शिक्षकों के लिये भी चुनौतीपूर्ण होता है, और बच्चों के लिये तो वह ऐसा बोझ होता है, जिसे जैसे-तैसे उतारना होता है। मौजूदा समय इसके लिये इजाजत नहीं देता कि स्कूलों में पाठ्यक्रम का आद्यन्त निर्वाह हो। यह बहुत जरूरी है कि सत्रारम्भ से पहले ही पाठ्यक्रम को नियोजित किया जाए। यदि यह समय रहते नहीं हुआ, तो प्रचलित पाठ्यक्रम की स्थूलता छात्र-छात्राओं के मनोविज्ञान पर विपरीत असर डालेगी। संस्था अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कहा कि स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली पाठ्यक्रम सत्र में पूरे होते ही नहीं हैं और लाभ अदाओं के कारण बंद स्कूलों में पाठ्यक्रम पूर्ण करना शिक्षकों के लिए असंभव कार्य है पाठ्यक्रम हमारे शिक्षण व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं विद्यार्थियों के हित में है और ना ही शिक्षकों के लिए उपयुक्त है अत: पाठ्यक्रम समय अवधि में पूर्ण हो ऐसा होना चाहिए । बड़े-बड़े पाठ प्रोजेक्ट कार्य होमवर्क और अन्य गतिविधियों से पहले ही विद्यार्थी अपने आप को बंधावा महसूस करता है ऐसे में पाठ्यक्रम की अधिकता उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करती है । चंद्रकांत वाफगांवकर ने कहा कि शिक्षण व्यवस्था खुली किताब की तरह होना चाहिए शैक्षणिक पाठ्यक्रम लघु और प्रायोगिक हो तो ज्यादा अच्छा है । शासकीय नवीन कन्या उमावि के प्राचार्य श्रीमती ममता अग्रवाल ने कहा कि माननीय मंत्री जी का चिंतन अपनी जगह बिल्कुल सत्य है पाठ्यक्रम की विद्यार्थियों के लिए एक कठिन समस्या है वहीं शिक्षकों के लिए भी एक चुनौती है। संस्था सचिव दिलीप वर्मा ने कहा कि हमारा शैक्षणिक कैलेंडर हमारी भौगोलिक एवं सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप होना चाहिए । शिक्षक रमेश उपाध्याय ने कहा कि पाठ्यक्रम में वर्णित सामग्री बच्चों के अनुकूल कभी कभी नहीं होती है । सेवानिवृत शिक्षिका भारती उपाध्याय ने कहा कि हमारी समूची शिक्षण व्यवस्था छात्रों के ऊपर आधारित होना चाहिए लंबे पाठ्यक्रम शिक्षण व्यवस्था को प्रभावित करते हैं । रक्षा के कुमार ने कहा कि पाठ्यक्रम की अधिकता बच्चों में अरुचि पैदा करती है इसी कारण वे समुचित दक्षता आएं प्राप्त नहीं कर पाते हैं । प्रतिभा चांदनी वाला ने कहा कि हमारा पूरा शैक्षणिक सिस्टम इससे प्रभावित होता है शिक्षकों का ध्यान केवल पाठ्यक्रम को पूरा करने में लगा रहता है और मूलभूत शिक्षण की ओर बेरुखी पैदा हो जाती है। श्याम सुंदर भाटी ने कहा कि पहली बार किसी सरकार ने इस और ध्यान देने की कोशिश की है देर आए दुरुस्त आए । राधेश्याम तोगड़े ने कहा कि लंबा और उबाऊ शैक्षणिक पाठ्यक्रम बच्चों के व्यक्तित्व में बाधक है । नरेंद्र सिंह पवार ने कहा कि पाठ्यक्रम की अधिकता की बजाए प्रायोगिक शिक्षा को ज्यादा बढ़ावा मिलना चाहिए स्कूली गतिविधियां अधिक हो सिद्धांत पाठ्यक्रम की बजाए। वरिष्ठ शिक्षिका कविता सक्सेना ने कहा कि पाठ्यक्रम सक्षम हो शुद्ध और सुचारू हो और सुरुचिपूर्ण वहीं छात्रों के लिए हितकर है। शिक्षिका अंजुम खान ने कहा कि कभी-कभी पाठ्यक्रम की अधिकता वर्ष भर की पढ़ाई में भी पूरी नहीं हो पाती और अनावश्यक बच्चों में तनाव पैदा हो जाता है। वरिष्ठ शिक्षक कमल सिंह राठौड़ ने कहा कि शैक्षणिक व्यवस्था ऐसी होना चाहिए पाठ्यक्रम आहुति प्रायोगिक हो और बच्चों के लिए उपयोगी हो सैद्धांतिक पाठ्यक्रम अधिक नहीं होना चाहिए । शिक्षक देवेंद्र सिंह वाघेला ने कहा कि वर्तमान शैक्षणिक पाठ्यक्रम स्कूलों की समय सारणी के हिसाब से बना हुआ है जो अत्यधिक बोझिल एवं अनुपयोगी साबित होता है पाठ्यक्रम सुषमा हो और उपयोगी हो । चर्चा में नरेंद्र सिंह राठौड़, कृष्ण चंद्र ठाकुर, दशरथ जोशी, रमेश चंद शर्मा, अनिल जोशी, गोपाल जोशी आदि ने भाग लिया। परिचर्चा का संचालन दिलीप वर्मा तथा आभार दिनेश शर्मा ने जताया ।