इतिहास के सबसे बड़े दानवीर भामाशाह जी को आज उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि एवं शत शत नमन

जिन्होंने अपने राष्ट्र को बचाने के लिए हल्दीघाटी के युद्ध में आर्थिक वजह के कारण हार के कगार पे पहुँचे महाराणा प्रताप को व उनकी सेना को इतना धन दिया की उनके 25000 सैनिको की 10 वर्षो तक राशन व अन्य जरूरते पूरी हो सके वो भी मुगलो के दिल्ली की गद्दी सौपने के प्रलोभन को ठुकराते हुए..आज भी राज्यस्थान में जहाँ जहाँ महाराणा प्रताप की स्मारक है वहाँ भामाशाह की भी मूर्तिया लगाई जाती है..ऐसे महान राष्ट्रभक्त भामाशाह को शत् शत् नमन…..
भामाशाह (1547 – 1600) बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमन्त्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगाने में आप सदैव अग्रणी रहे। मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था और दानवीरता के लिए भामाशाह नाम इतिहास में अमर है।
भामाशाह
दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में वर्तमान पाली जिले के सादड़ी गांव में 28 जून 1547 को ओसवाल जैन परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम भारमल था जो रणथम्भौर के किलेदार थे।
भावपूर्ण श्रद्धांजलि शत शत नमन