जैन दिवाकर वाणी – साधु की कोई त्रुटि देख शुद्ध भाव से,उसी के सामने त्रुटिप्रकट करें

साभार: जैन दिवाकर ज्योतिपुंज खंड 3/55.
प्रवचन: 30.10.1948
सुरेंद्र मारू इंदौर

इस अवसर्पिणी काल में जंबू स्वामी अंतिम केवली हुए हैं। उनके निर्वाण के पश्चात 5 चारित्रों मेंसे सामायिक और छेदोपस्थापना दो हीचारित्र रह गए हैं।परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय व यथाख्यात चारित्र का लोप हो गया।काल के दोष से मनुष्योंकी शक्ति निरंतर क्षीण होती जा रही है।शारीरिक/मानसिक बल घट गया है।अत:आज पहलेकी भांति उत्कृष्ट चारित्र से संपन्न मुनि नहीं रहे।फिरभी देश,काल के अनुसार जो साधना कर,भगवान की आज्ञामें चल रहे हैं,वे भाग्यवान हैं।उनमें स्खलनाएं हो सकती हैं तुलनात्मक दृष्टि से देखने पर स्पष्ट है कि आज भी भगवान महावीर के अनुयायी साधु, संसारके अन्य साधुओं की अपेक्षा अधिक त्यागी,तपस्वी और आचार परा यण है।अवसर्पिणी काल के 5वें आरे के लोग सामने कुछ नहीं कहते और पीठ पीछे निंदा करते हैं। *जिसके ह्रदय में धर्मकी सच्ची लगन, साधुओं के प्रति निष्कपट प्रीति है,वह साधु की कोई त्रुटि देख शुद्ध भावना से, उसी के सामने त्रुटि प्रकट करेगा। वह ढोल नहीं पीटता फिरेगा।