अहिंसा तीर्थ प्रणेता राष्ट्रसंत आचार्य श्री 108 प्रमुखसागरजी मसा ने जैन मांगलीक भवन मै प्रवचन दिए
जावरा (अभय सुराणा)। अहिंसा तीर्थ प्रणेता राष्ट्रसंत आचार्य श्री 108 प्रमुखसागरजी महाराज ने अपने मुखारविंद से कहा कि मैं वह परमात्मा को नमस्कार कर रहा हूं जिसने सब कर्मों का नाश कर दिया है और आप स्वर्ग को नहीं मोक्ष को प्राप्त करने का भाव रखो । जैसे दूध को तपाने के लिए पात्र की आवश्यकता है वैसे ही आत्मा को पाने के लिए शरीर को तपाने की आवश्यकता है । नियम संयम करके शरीर को तपाओ जिससे स्वर्ग नहीं बल्कि मोक्ष प्राप्त हो जाएगा । आचार्य श्री ने कहा स्वर्ग और नर्क धरती पर ही है अगर नर्क देखना है तो कैंसर के हॉस्पिटल में चले जाओ स्वर्ग देखना हो तो संत की सभा में चले जाओ । आचार्य श्री ने कहा मन के अछे परिणाम स्वर्ग में है मन के खराब परिणाम नर्क है जहाँ सुख ही सुख है वहा स्वर्ग है जहाँ सुख ज्यादा दुख कम वे मनुष्य पर्याय है । जहाँ दुख ज्यादा सुख कम वह त्रियंच पर्याय है और जहाँ दुख ही दुख है वहा नर्क गति है हमें कभी भी सन्तों की भगवन्तों निंदा आलोचना नही सुन्ना चाहिए ना करना चाहिए । क्योंकि निंदा करने वाले कि जिव्हा छेद दी जाती है और सुनने वाले के कान में कांच पिघलाक़े डाला जाता है । इसलिए हमें कोई भी निंदा आलोचना नही करनी चाहिए स्वर्ग के सुख सास्वत नही है सास्वत सुख क्या है यह मैं कल बताऊंगा। आज आचार्य श्री की उपस्थिति में चातुर्मास समिती अध्यक्ष महावीर जी मादावत, चातुर्मास समिती वरिष्ठ सदस्य सूरेश लुहाडिय़ा,हूमड दिगम्बर जैन समाज कोषाध्यक्ष दिलीप मादावत का जन्मदिन था तो तीनो लोगो ने आचार्य श्री से आशीर्वाद लिया । समाज के वरिष्ठ वीजय ओरा, पुखराज सेठी, नरेन्द्र गोधा, पवन पाटनी, रितेश जैन, विनोदीलाल दोशी, तेजकुमार पाटनी, शांतिलाल जी अग्रवाल, सुरेश अग्रवाल, अजय दोशी, राजेश कियावत, हिम्मत गगवालं, राजेश भाचावत, अन्तिम कियावत, पी.सी जैन, पारस गंगवाल आदि लोगों ने बधाई दी तथा उज्जवल भविष्य की कामना की।