रतलाम । आजादी की 74 वर्षगांठ के अवसर पर शिक्षक सांस्कृतिक संगठन द्वारा शिक्षकों तथा गणमान्य नागरिकों की परिचर्चा आयोजित की गई ऑनलाईन परिचर्चा का विषय था अधिकार जन आजादी बनाम दायित्व बोध आजादी इस विषय पर वक्ताओं ने खुलकर अपने विचार रखें अधिकांश वक्ताओं का मत था कि आजादी तो हमें प्राप्त हो गई हम स्वतंत्र देश के नागरिक भी बन गए हमारी अपनी संवैधानिक हस्ती भी पूरी दुनिया में स्थापित होगी लेकिन हमारे अपने देशवासियों ने अपने देश को क्या दिया क्या अर्पण किया यह गंभीर चिंतन का विष$य है ?
परिचर्चा का शुभारंभ करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर मुरलीधर चांदनी वाला ने कहा कि अधिकार मिलते नहीं , उनकी फसल उगानी पड़ती है। वे मुफ्त में नहीं मिलते। वे जताने से पास में नहीं आते। उसे पाने के लिये कड़ी मशक्कत चाहिए। उसे पाने के लिये जमीन-आसमान एक करना होता है। हमारा इतिहास तो उन योद्धाओं से भरा पड़ा है, जो अपनी जवाबदारियाँ निभाते हुए मर-खप गये, अपना हक नहीं ले पाये। लेकिन उनके पास यह संतोष था कि उन्होंने अपना पुरुषार्थ पूरे मनोयोग से किया, और आने वाली पीढी को समृद्ध विरासत सौंप कर गये। भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बिस्मिल, चाफेकर बंधु, लाला लाजपतराय, मदनलाल धींगरा और न जाने कितने वीर इस मातृभूमि के लिये कर्तव्य पूरा करते हुए ओझल हो गये, और हमें दे गये सुनहला भविष्य।
संस्था अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कहा कि आजादी तो हमें मिल गई लेकिन देश को कई समस्याओं ने भी जकड़ लिया, मसलन संप्रदायवाद, जातिवाद, नक्सलवाद और अब आतंकवाद की काली छाया चुनौती बनकर खड़ी है इनसे मुक्ति मिलना आवश्यकता है । विषय प्रवर्तन प्रस्तुत करते हुए वरिष्ठ शिक्षक राजेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि देश को आजादी मिलने की पूर्व ही अंग्रेजों ने हमें बांटना शुरु कर दिया जो आज तक सतत जारी है आज भी भारतीयता को वर्ग संप्रदाय जाति और धर्म में पाठ करें हमारी एकता को कमजोर किया जा रहा है यह आजादी का सपना नहीं था । पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी डॉक्टर सुलोचना शर्मा ने कहा कि आजादी मनुष्य की सांस की तरह होती इसे किसी भी कीमत पर खोया नहीं जा सकता इसके लिए हर बलिदान देना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। समाजसेवी महेश व्यास ने कहा कि बड़ी कुर्बानियां देने के बाद हमें आजादी मिली है इसकी कीमत समझना होगी। वरिष्ठ शिक्षक चंद्रकात वाफगांवकर ने कहा कि आजादी के दीवाने भारत माता को आजाद कराने के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार थे अब हमारी बारी है हम देश को वह सब कुछ अर्पण करें जिसके अभिलाषा देश को । सेवानिवृत शिक्षिका भारतीय उपाध्याय ने कहा कि सुविधाओं के नाम पर हम सब देश से ग्रहण करते हैं लेकिन जब देने की बात आती है कौन पीछे हो जाते हैं । कवि श्यामसुंदर भारती ने कहा कि देश को अपने नागरिकों से काफी अपेक्षाएं रहती है अच्छे नागरिकों का निर्माण और निष्ठावान देशवासी देश का गौरव बढ़ाते है । सेवानिवृत्त शिक्षक रमेश उपाध्याय ने कहा कि देश हमें बहुत कुछ देता है नाम प्रतिष्ठा पद धन दौलत और हम बदले में क्या देते हैं भुखमरी बेरोजगारी दंगा फसाद इत्यादि । महिला सचिव रक्षा के कुमार ने कहा कि आने वाली पीढ़ी को आज़ादी की कीमत समझा नहीं होगी तभी वह अपने देश के प्रति दायित्व से न्याय कर पाएंगे । खेल अनुदेशक चंद्रशेखर लश्करी ने कहा कि हमारे संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर में देश को एक शुद्ध मजबूत संविधान का निर्माण कर अनुपम सौगात दी थी हम उस संविधान की रक्षा कर देश को बहुत कुछ दे सकते हैं । कवि एवं व्यंग्यकार श्याम सुंदर भाटी ने कहा कि देश को हमसे कॉफी अपेक्षाएं रहती है हमें भी देश को निराश नहीं करना चाहिए अच्छे और निष्ठावान नागरिकों का निर्माण शिक्षकों के द्वारा ही संभव है। श्रीमती प्रतिभा चांदनी वाला ने कहा कि अधिकार और दायित्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जब हमें आजादी मिली तब हमें दायित्वों का बोध महसूस हुआ । दिलीप वर्मा ने कहा कि आजादी हमको ऐसे ही नहीं मिल गई बड़े संघर्षों के बाद हमें आज यह सुकून भरी जिंदगी नसीब हुई है इसकी रक्षा करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है । कविता सक्सेना ने कहा कि देशवासियों में देश के लिए देश प्रेम की भावना होना सबसे बड़ी देशभक्ति है । राधेश्याम तोगड़े ने कहा कि जब से हम आजाद हुए हैं हम सिर्फ अपना विकास करने में लगे हुए हैं हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश है तो हम हैं हम से ही देश का अस्तित्व है। वरिष्ठ शिक्षक कमल सिंह राठौड़ ने कहा कि हमें आजादी तो मिल गई लेकिन हमारी मातृभाषा । हिंदी अभी तक अंग्रेजी की गुलाम बनी हुई है जो हमें पराधीनता का बोध कराती है हमें हमारी भाषा की आजादी भी चाहिए । पूर्व अध्यक्ष कृष्णचंद्र ठाकुर ने कहा कि हमें उन शहीदों की कुर्बानियों को नहीं भुलना चाहिए जिन्होंने अपना सब कुछ देश को आजाद कराने में अपना सर्वत्र न्यौछावर कर दिया था उनका त्याग और बलिदान हर हिंदुस्तानी को सदैव याद रखना होगा । शिक्षक देवेंद्र वाघेला ने कहा कि हर कोई आजादी के बदले में बहुत कुछ चाहता है देश से हमको सब कुछ मिला है एक बेहतर जिंदगी बेहतर भविष्य तो हमें भी अपने देश के लिए बेहतर से बेहतर देना चाहिए । रमेश कटारिया ने कहा कि हम बड़े सौभाग्यशाली हैं कि हम आजाद मुल्क में पैदा हुए इसलिए हमें गुलामी की त्रासदी नहीं मालूम कि क्या होती है । वरिष्ठ शिक्षक दशरथ जोशी ने कहा कि देश के लिए जितना भी हम करें कम है हमें जापान से देशभक्ति सीखना चाहिए।
परिचर्चा में श्री नरेंद्र सिंह राठौर, मिथिलेश मिश्रा, अंजुम खान, आरती द्विवेदी आदि अपने-अपने विचार व्यक्त किए । इस मौके पर अनिल जोशी, मदन लाल मेहरा, मनोज प्रजापति, रमेश चंद शर्मा, रमेश चंद परमार, मनोज कसेरा आदि उपस्थित थे । संचालन दिलीप वर्मा तथा आभार रक्षा के कुमार ने व्यक्त किया ।