धन और धर्म दोनों औषधि है – आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा.

रतलाम, 11 अगस्त। जैसे अंधे के लिए आंख, भूखे के लिए भोजन और प्यासे के लिए पानी का महत्व है, ठीक वैसे ही व्यक्ति के जीवन में धर्म का महत्व है। धन और धर्म दोनों औषधि है। धन मरहम है और धर्म टॉनिक है। धन एक्सटर्नल यूज के लिए है और धर्म इंटरनल के लिए, जबकि हम उल्टा करते हैं।
यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा ने मोहन टाॅकीज, सैलाना वालों की हवेली में कहीं। आचार्य श्री ने कहा कि जब तक शुद्ध धर्म की प्राप्ति नहीं होगी तब तक मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी। धर्म आवृत्ति में नहीं प्रवृत्ति में दिखता है। मोक्ष देने की ताकत शुद्ध धर्म में है। शुद्ध धर्म के तीन स्वरूप विनय, आज्ञा और उपयोग है। प्रारंभिक अवस्था का धर्म विनायक कहलाता है। जो नम जाएगा वह जम जाएगा। मोक्ष की यदि कोई नींव है तो वह विनय है। पेड़ में जो स्थान जड़ का है, वह विनय का है।
आचार्य श्री ने कहा कि धन के तीन कलंक है- एक- यह मौत तक साथ रहे कोई गारंटी नहीं, दूसरा- मौत के बाद भी साथ नहीं जाएगा, तीसरा – जहां तक संपत्ति साथ है, तब तक रहेगा। धर्म मौत पर और उसके बाद भी साथ है और हमेशा प्रसन्नता देता है। कीमत धन की या धर्म की करना है, यह हमें तय करना होगा। जिस तरह बच्चे को भूख लगने पर मां के पास समय न होने पर वह उससे बहलाने के लिए खिलौना दे देती है। खिलौने से बच्चे को खिला सकते हैं लेकिन उसकी भूख की तृप्ति के लिए दूध चाहिए होता है। ठीक हमारे जीवन में धन का स्थान खिलौने जैसा है और धर्म का दूध के जैसा। जीवन जीने की ताकत दूध से मिलेगी। धन चाहे कितना भी हो अगर दुर्गति से बचना है, तो धर्म का सहारा लेना पड़ेगा।
आचार्य श्री की निश्रा में श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी के तत्वावधान में 13 अगस्त, रविवार को पांचवां और अंतिम युवा शिविर आयोजित होगा। इसका विषय यह आंसू, वंदनीय है रहेगा। शिविर के लाभार्थी विधायक चेतन्य काश्यप एवं परिवार रहेगा। शिविर के दौरान अहमदाबाद के संगीतकार हार्दिक भाई शाह भजनों की प्रस्तुति देंगे।