सुख चाहिए तो दूसरों को सुखी बनाए स्वयं भी सुखी हो जाएंगे- आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा.

रतलाम, 14 अगस्त। सभी की यह इच्छा होती है कि हमें सुख की प्राप्त हो जाए और दुःख समाप्त हो जाए। हम जितनी सुख की प्राप्ती करेंगे, दुःख उतना ही बढ़ता जाएगा। दुःख जितना ज्यादा मिलता है, उतना हम प्रभु से जुड़ते जाते है और सुख मिलने पर हम प्रभु से दूर हो जाते है।
यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा ने मोहन टाकीज, सैलाना वालों की हवेली में प्रवचन में कहीद्य सुख और दुःख पर प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री ने कहा कि सुखी होने का कोई सरल मार्ग नहीं है। हर मार्ग कठिन है, लेकिन एक सीधा मार्ग यह है कि सुखी होने के लिए दूसरे को सुखी बनाए तो स्वयं भी सुखी हो जाएंगे।
आचार्य श्री ने कहा कि यदि दूसरों का भला सोचोगे तो लाभ होगा। यह शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योकि भला शब्द का उल्टा लाभ होता है। इसलिए आप लोगों का भला करते जाओं तो उसका लाभ आपको मिलता जाएगा। प्रभु कभी दया करना बंद नहीं करते, बल्कि हम उन्हे याद नहीं करते है। यदि आप उन्हे याद करोंगे तो प्रभु भी दया करेंगे। दरसअल संसारी चाहता है कि सुख उसे ही मिले और किसी को न मिले लेकिन साधु की चाह होती है कि जो मुझे मिला वह सबको मिले।
आचार्य श्री ने कहा कि खिलौना बच्चे को मां से दूर करता है। ठीक इसी प्रकार सुख भी खिलौना है जो हमें प्रभु देते है और वह हमसे दूर चले जाते है। सुख पाने के बाद आपको पाप का रास्ता पसंद करना है या धर्म का यह आपको चुनना होता है। यदि धर्म के मार्ग पर चलोगे तो प्रभु साथ रहेंगे। सुख इस भव के लिए है और पुण्य परभव के लिए होता है। सुख और पुण्य की प्राप्ती से ज्यादा गुण महत्वपूर्ण होता है।
श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे। आचार्य श्री की निश्रा में चातुर्मास के दौरान त्याग तपस्या का क्रम निरंतर चल रहा है। इसमें मुंबई से आए रिचा चिराग शाह का ढ़ाई वर्ष का पुत्र अरहम भी आयंबिल तप कर रहा है। डेढ़ वर्ष की उम्र में अरहम ने आयंबिल तप किया था।