धर्म किया नहीं जाता, सरल बन धर्म को जीया जाता है-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

रतलाम06 सितंबर। सरलता में धर्म है। धर्म में धार्मिकता होती है। सरल व्यक्ति ही धार्मिक हो सकता है। भावों में कुटिलता हो, तो कितना ही धर्म करने का प्रपंच करने पर लाभ नहीं मिलता। धर्म कभी किया नहीं जाता, अपितु सरल बनकर जीया जाता है।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होंने सन्मति के तीसरे गुण सरलता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरल व्यक्ति कभी विफल नहीं होता। हमारे भाव जब सरल होते है, तभी भाषा सरल होती है और व्यवहार भी सरल होता है। व्यवहार जब सरल होता है, तो पूरे जीवन में सरलता आ जाती है और व्यक्ति उदार होकर धर्म को जीता है। कुटीलता से कभी धर्म नहीं होता।
आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान समय में मनुष्य के भाव अटपटे हो रहे है, जो सरल नहीं बनने देते। यदि मति और गति सरल होगी, तो श्रुति सरल बनेगी, लेकिन मति और गति सरल नहीं हुई, तो कुछ भी सरल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सुख-दुख कर्मों के फल है। ये कर्म नहीं है। सुख पुण्य का और दुख पाप का फल होता है। पुण्य और पाप करने वालों को ये फल मिलकर ही रहते है, इनसे कोई बच नहीं सकता। व्यक्ति के भाव, भाषा और व्यवहार सरल होते है, तो पुण्य का बंध होता है, लेकिन यदि भाव, भाषा और व्यवहार में कुटीलता रहे, तो पाप का बंध होगा। ज्ञानियों की दृष्टि से संसार सुख-दुख का मेला है। हर व्यक्ति सुख पसंद और दुख को नापंसद करता है, लेकिन ये नहीं सोचता कि भाव, भाषा और व्यवहार सरल हांेगे, तभी सुख प्राप्त होगा।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचारण सूत्र का वाचन किया। उन्होंने विज्ञान के साथ आध्यात्म और आगमों के संतुलन पर प्रकाश डालते हुए तप और त्याग करने का आव्हान किया। धर्म सभा में दिल्ली त्रिनगर श्री संघ की और से विकास जैन ने चातुर्मास की विनती की। भीलवाडा से आए अभय जैन ने स्तवन प्रस्तुत किया। इस दौरान बडी संख्या मंे श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।