नवकार भवन में जन्माष्टमी पर विशेष प्रवचन
रतलाम,07 सितंबर। परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने जन्माष्टमी पर कहा कि श्री कृष्ण भारतीय संस्कृति के गौरव पुरूष है। जन्माष्टमी का पर्व उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से प्रेरणा लेने का पर्व है। महापुरूष कभी अतीत नहीं होते। उनका आचरण वर्तमान के लिए आदर्श और भविष्य के लिए आलोक होता हैं।
सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में विशेष प्रवचन में आचार्यश्री ने श्री कृष्ण जन्म की कथा सुनाई और कहा कि श्री कृष्ण, राम और महावीर जितने भी महापुरूष हुए है, वे भारतीय संस्कृति की आत्मा है। उनकी गौरव गाथाएं सदियों से सुनी जा रही है और आगे भी सुनाई जाती रहेगी। महापुरूष जब भी जन्म लेते है, वे अपनी पुनवानी लेेकर आते है। श्री कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था, लेकिन पुनवानी के कारण ताले टूट गए और वासुदेव उन्हें गोकुल में यशोदा के पास छोड आए थे।
आचार्यश्री ने कहा कि भारत में जैन, बौद्ध और वैदिक संस्कृति सभी संस्कृतियों में महापुरूषों का असीम योगदान है। श्री कृष्ण को तीनों संस्कृतियां आदर्श मानती है। जैन शास़्त्र में श्री कृष्ण की कई गाथाए है। वे बुराई में भी अच्छाई ढूंढने में माहिर रहे। वर्तमान समय में लोग गुणवान लोगों में भी अवगुण ढूंढते है और अवगुणी के गुण नहीं देखते। महापुरूषों का गुणगान ही नहीं करना चाहिए, अपितु उनके गुणों को आचरण में भी लाना चाहिए। इससे जीवन धन्य होगा।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने अंतगढ सूत्र का वाचन किया। उन्होंने जप-तप से जीवन को सफल बनाने पर बल दिया। मंदसौर से आए प्रकाश रातडिया ने इस मौके पर आचार्यश्री से आगामी 1 जनवरी की महामांगलिक का लाभ मंदसौर को देने की विनती की। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।