छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन
रतलाम,11 सितंबर। विश्व की जनसंख्या 8 अरब से अधिक है। भारत की जनसंख्या 1 अरब 40 करोड हो गई है। इसमें सबके सब मानवताधारी नहीं है, लेकिन मैं चाहता हूं सभी मानवता धारी बने। यदि मानव बनकर भी मानवताधारी नहीं बने, तो मानव बनना कोई बडी बात नहीं है। संसार में मानवता का जागरण हो, इसीलिए ये विषय लेेकर आया हूं। मानव बनना यदि दुर्लभ है, तो मानवताधारी बनना अति दुर्लभ है।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन देते हुए उन्हांेने कहा कि मानवता के निकट आने की पहली शर्त नम्रता है। नम्रता यदि जीवन में आती है, तो व्यक्ति मानवता के निकट आता है। मानवता की दूसरी शर्त संवेदनशीलता, अर्थात दूसरों को दुखी देखकर द्रवित होना है। दुखी लोगों की मदद करने से मानवता प्रकट होती है। मानवता तीसरी शर्त उदारता है, अर्थात जिसके रदय में स्वार्थ का भाव ना हो, वही उदार व्यक्ति मानवता रखता है। नम्रता, संवेदनशीलता और उदारता ये तीनों गुण व्यक्ति में व्यापकता लाते है। संसार में जितने भी महापुरूष हुए है, वे पहले मानवताधारी बने है।
आचार्यश्री ने कहा कि मानवता आती है, तो महानता आती है और महानता से ही व्यक्ति भगवान बनते है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में धनवान, रूपवान, विद्वान, बुद्धिमान बने, लेकिन सबसे पहले मानवताधारी मानव बने। क्योंकि इससे ही मानव बनना सार्थक होगा। संसार में मानव की नहीं मानवता की और साधु की नहीं साधुता की पूजा होती है। आचार्यश्री ने कहा कि मानवता हम सबके भीतर है। उसे कहीं से प्राप्त नहीं करना है, अपितु सिर्फ प्रकट करना है। ये कार्य सिर्फ नम्रता, संवेदनशीलता और उदारता से हो सकता है।
प्रवचन में कई श्रावक-श्राविकाओं तप-त्याग के संकल्प लिए। संजय मेहता ने 24 उपवास एवं ज्योति पिरोदिया ने 8 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। आचार्यश्री की निश्रा मंे 12 सितंबर से दूसरे पर्यूषण पर्व की आराधना जप, तप, त्याग और तपस्या के साथ की जाएगी। इस मौके पर श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया।