स्व-आकर्षण बलवान और पर-आकर्षण कमजोर करने वाला -आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

छोटू भाई की बगीची में प्रवचन

रतलाम,28 सितंबर। एकाग्रता मन को मजबूत करती है और आकर्षण मन को कमजोर करता है। आकर्षण चाहे पांच इन्द्रियों का हो अथवा चार कषायों का हो, सभी मन को कमजोर ही करते है। लेकिन यदि स्व के प्रति आकर्षण हो जाए, तो मन बलवान होता है। खुद के प्रति आकर्षण रखने वाला ही स्वयं को जानकर कर्मों के बंधन से मुक्त होता है और आत्म कल्याण कर सकता है।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने छोटू भाई की बगीची में कही। चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि वर्तमान में सभी पर आकर्षण लेकर चल रहे है। इसलिए आत्मा के कल्याण के प्रति कमजोर है। मैं कौन हूं? का जवाब तू शेर है, भेड नहीं है, लेकिन सभी भेड मानकर भेडचाल चल रहे है। इसलिए कमजोर बने हुए है। व्यक्ति जिस दिन खुद को शेर मान लेगा, उस दिन कमजोर नहीं रहेगा और कल्याण के मार्ग पर आगे बढ जाएगा।
आचार्यश्री ने कहा कि बाजार से साधु-संत भी गुजरते है और सांसारी लोग भी गुजरते है, लेकिन सांसारियों में प्रत्येक वस्तु के प्रति आकर्षण रहता है। ये आकर्षण मन को चंचल बनाता है और व्यक्ति जेब ना चाहे, तब भी वह वस्तु पाने को लालायित रहता है। चूंकि आकर्षण की दुनिया बहुत बडी है, इसलिए सभी उसमें उलझे हुए है।
उन्होंने कहा कि कर्म और दोष बडे स्वाभिमानी होते है, वे बिना बुलाए नहीं आते, लेकिन मनुष्य आकर्षण के वश में आकर उन्हें बुला लेता है। ज्ञानियों ने इसीलिए वस्तुओं के आकर्षण की व्याधि से मुक्त रहने का संदेश दिया है। आकर्षण रखना ही है, तो धर्म, सत्य और संयम का रखो, जिससे कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाओगे।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने कर्म बंधन के प्रकारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने आसक्ति के बजाए विरक्ति के भाव में जीने पर जोर देते हुए कर्म बंधन से मुक्त रहने का आव्हान किया। महासती श्री इन्दुप्रभाजी मसा ने इस मौके पर आचार्यश्री से 10 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। अन्य तपस्वियों ने एक, दो, तीन उपवास के प्रत्याख्यान लिए। उडीसा से आए बसंत जैन ने भाव वंदना प्रस्तुत की। इस दौरान कई श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।