भारतीय चेतना के कण-कण में राम, जन-जन के मन में श्री राम, और यत्र तत्र सर्वत्र भी है श्री राम – अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज

उदगांव /कोडरमा। भारत गौरव साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का महाराष्ट्र के ऊदगाव का ऐतिहासिक चौमासा चल रहा है इस दौरान भक्त को प्रवचन कहा –
अयोध्या में श्री राम मन्दिर की स्थापना का अर्थ है-
आदमी से इन्सान और इन्सान से आचरण की स्थापना..!
अयोध्या जिसे जैन धर्म और दर्शन की सनातन परम्परा तीर्थंकरों की जन्म भूमि के रूप में, सदियों से पूजती आ रही है, इसलिए जन जन की आराधना स्थली है। जहाँ पाप, ताप सन्ताप रूपी शत्रु आत्मा में प्रवेश नहीं कर सकते, वह अयोध्या है। श्री राम के जन्म स्थान पर विराटत्व की आराधना के निमित्त, भव्यातिभव्य “राम मंदिर अयोध्या” का भारत के यशस्वी प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के मुख्य यजमानत्व में लोकार्पण, भारतीय मानस की आस्था की वह प्रणाममय अभिव्यक्ति है जो जाति, धर्म, सम्प्रदाय की समस्त बाधाओं से परे, मनुष्यत्व के उत्कर्ष को समर्पित है। इस महा मांगलिक और ऐतिहासिक क्षण की हम अनुमोदना करते हैं।
श्री राम – उदार हैं, गुणवान हैं, सरल हैं, पवित्र हैं, कोमल हैं, दयालु हैं, माधुर्य से परिपूर्ण हैं, अविचल हैं, समदर्शी हैं, उपकारी हैं, पराक्रमी हैं, दिव्य गुणों की खान हैं, गुणों के भण्डार हैं। श्री राम वन गमन का आदेश मिलने पर, पिता के वचनों की रक्षा के लिये कभी भी, कहीं भी मान मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करते हैं। पिता दशरथ या माता कैकेई के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं कहते, क्योंकि मर्यादा उन्हें सिर्फ प्रिय ही नहीं बल्कि उनके जीवन का अभीष्ट भी था। उनके स्वभाव में क्षमा, शौर्य, करुणा, शील, सदाचार के सौन्दर्य का मणिकांचन योग उनके चरित्र का वह उज्जवल पक्ष है जो उनके मित्रो को ही नहीं, शत्रुओं को भी मन्त्र मुग्ध कर देता है।
भारतीय चेतना के कण-कण में राम, जन-जन के मन में श्री राम, और यत्र तत्र सर्वत्र भी है श्री राम। वे स्थितप्रज्ञ, असंपृक्त, अनासक्त, और एक ऐसे नायक, जिसमें सत्ता के प्रति निरासक्ति का भाव है। वह जिस सत्ता के पालक हैं, उसे छोड़ने के लिए सदा तैयार हैं। श्री राम जाति वर्ग से परे हैं। सभी को साथ ले चलने वाले नीति कुशल न्याय प्रिय राजा थे। श्री राम का नायकत्व कोई सुपरमैनशिप नहीं है, लेकिन वह तो उनकी अपार ऊर्जा का सम्यक समन्वय और सन्तुलन है। श्री राम साध्य हैं साधन नहीं। राम का चरित्र, राम की शक्ति, भारतीय संस्कृति की चिरन्तन चिन्तन की चेतना का निरूपण और मर्यादाओं का विश्लेषण है।
श्री राम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा जन-जन की श्रद्धा के साथ-साथ अध्यात्म और सद्भावना का केन्द्र और भारतीय सामाजिक संस्कृति के नव प्रवाह का उद्गम स्थल बने। इन युगान्तकारी क्षणों की अन्तर्मन से अन्तर्मना की अनुमोदना और अनन्त शुभसंशाओ सहित निर्विघ्न सम्पन्न होने की प्रार्थना। उक्त जानकारी मीडिया प्रभारी जैन राज कुमार अजमेरा,जैन मनीष सेठी ने दी।