पुण्योत्सव / छठा सत्र- विश्वास और श्रद्धा के साथ विवेक का त्रिनेत्र खुला रखे – स्वामी श्री चिद्म्बरानंद सरस्वती जी महाराज

रतलाम । महामंडलेश्वर स्वामी श्री चिद्म्बरानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि हमारी सनातन संस्कृति में अंधविश्वास को कही स्थान नहीं दिया गया है। विश्वास अँधा नहीं बल्कि विवेक संयुक्त होना चाहिए। भगवान शंकर विश्वास और माँ पार्वती श्रद्धा की प्रतीक है। विश्वास, श्रद्धा के साथ विवेक का त्रिनेत्र खुला रहना चाहिए। वर्तमान समय में विवेक दृष्टी से परिपूर्ण विश्वास नहीं होने से व्यवहारिक जगत में चौकाने वाले परिणाम सामने आते है इसलिए अंधविश्वास नहीं करें।
स्वामीजी “पुण्योत्सव” छठे सत्र में श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करवा रहे है। दयाल वाटिका में हरिहर सेवा समिति रतलाम समिति अध्यक्ष व आयोजक मोहनलाल भट्ट परिवार ने भागवतजी पोथी पूजन किया। श्रीमती अयोध्या देवी झंवर ने अपने जन्मदिन पर स्वामीजी को रजत गौ भेंट कर आशीर्वाद लिया।
यंहा अखंड ज्ञान आश्रम संचालक स्वामी श्री देवस्वरूपानन्द जी महाराज, रमेश शर्मा, रमेश राठी, प्रदीप उपाध्याय, शांतिलाल राव, उत्सव महिला भक्त मंडल परिवार रतलाम आदि ने आरती का लाभ लिया। संचालन कैलाश व्यास ने किया। सुनील भट्ट ने भजनों की प्रस्तुति दी।
उधार की सफलता टिकती नहीं-
उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति की महानता के पीछे उसका संघर्ष देखा जाना चाहिए। किसी की भी निंदा करना आसन होता है लेकिन उस व्यक्ति के किये गये संघर्ष/परिश्रम को अनदेखा नहीं किया जा सकता। प्रत्येक सफलता के पीछे बड़ी तपस्या और समर्पण होता है। उधार की सफलता टिकती नहीं है। जिसके जीवन में जितना बड़ा संघर्ष होता है, उसे परमात्मा उतनी ही बड़ी सफलता देता है।
पर्यावरण को बचना जरूरी-
स्वामीजी ने कहा कि प्रकृति को सम्मान देने के लिए हमारे यंहा गोवर्धन पूजन सहित अन्य पवित्र वृक्षों के पूजन की परम्परा है। शास्त्रों ने वृक्ष काटने नहीं बल्कि उनको पूजने की प्रेरणा दी है। जिस दिन यह दिव्य ऋषि प्रणित पर्यावरण सुरक्षा ज्ञान संयुक्त राष्ट्र संघ स्वीकार कर लेगा उस दिन दुनिया भारत के सामने नतमस्तक हो जाएगी। यदि हम प्रकृति को सुरक्षित नहीं रख सके तो हमारा जीवन भी खतरे में होगा। भगवान श्री कृष्ण ने पर्यावरण सुरक्षा के लिए अपने जीवन में कई संदेश दिए है।
दूषित मानसकिता से बचे-
उन्होंने कहा कि भगवान का जन्म और कर्म दिव्य है लेकिन संकुचित मानसकिता के लोग भगवान और उनकी लीलाओं को समझ नहीं पाते है। दोषपूर्ण दृष्टि से परमात्मा को देखने वालों की दूषित मानसकिता होती है। चोर्यासी लाख योनियों के संस्कारों से गुजरने के बाद मनुष्य जन्म मिलता है लेकिन पुराने संस्कार जाग्रत हो जाने से मनुष्य अपनी विवेक बुद्धि खो बैठता है। इसलिए अपना विवेक जाग्रत रखने के लिए सत्संग और कथा को जीवन में प्राथमिकता देना चाहिए। सम्पूर्ण विश्व में एक मात्र भारतीय वैदिक संस्कृति में ही 56 महाभोग, विविध रस सहित अन्य विशेषताएं समाहित है।
भट्ट परिवार अनुकरणीय समर्पण-
स्वामीजी ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा की कोरोना काल में भट्ट परिवार द्वारा तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद अधिक मास में वर्ष 2012 से कथा की परम्परा को जारी रखना धर्मनिर्वहन के प्रति अपनी निष्ठा को दर्शाता है। भट्ट परिवार का यह समर्पण अनुकरणीय है। सम्पूर्ण आयोजन की जिम्मेदारी नई पीढ़ी ने बखूबी निभाया है।