गुरू का मिला सहारा, भव से कर दो किनारा

साध्वी सुदर्शना

परम पूज्य श्रद्धेय, युग प्रभावक श्रमणसंघ की गौरव गरिमा, महान संथारा साधक, प्रज्ञामहर्षि मरूधराभूषण अनंत उपकारी संयमप्रदाता, जन-जन के श्रद्धास्थान पूज्य गुरूदेव प्रवर्तक श्री रमेशमुनिजी म.सा. के श्री चरणों में आत्मा की अर्पणता के साथ अनंत वंदन । आप सदा के लिए अमर हो गए आपका समाधीमरण इतिहास में सदा स्मरणी रहेगा।
छोड़ गए आप हम सबको, सदा जीवित होने का आभास है । 
दर्शन नहीं अब आपकी देह का, फिर भी दिल में सदा वास है ।

जो प्रथम नजर में ही आपको अपना मुरीद बना ले, जिनकी छवि एक बार देखने पर भी सदा-सदा के लिए चिर स्मरणीय हो जाए जिनकी सूरत निहारती हुई पलके अनिमेष दृष्टि से अपने आपको परम सौभाग्यशाली समझे ऐसे व्यक्तित्व को आप क्या कहेेंगे। इस व्यक्तित्व को ब्राह्य दृष्टि से देखते है तो वे समाज सुधारक, साहित्य मनीषी चरित्र निर्माण के प्रबल सहयोगी है पर जब अन्तदृष्टि से देखते है तब तो वे क्षमा के समागर मृदुता के मेरू, सरलता के सिंघु, स्मयक चिंतन के निर्झर अनासक्त, धीर, वीर, गंभीरत मस्त साधक लगते थे। हम बड़े खुशनसीब है जिन्हें अपने गुरू की अनुमोदना करने, उनके निर्देशित मार्ग पर चलने एवं उनके गुणस्मरण करने का अवसर मिलता है । आपकी क- कृपा से खिला हुआ है जीवन का उपवन मेरा । मेरी सांसे हमेशा आपके ही नाम का रटन करती रहती है । आपके श्रीचरों में चारों धाम जितना आनंद प्राप्त होता था जो भी आपकी शरण में आता वो सुकुन प्राप्त किए बिना नहीं रहता । गुरू की अप्रतदृष्टि पडऩे पर मन हर्षित को उठता था पर आज वह दिव्य सितारा भौतिक शरीर से गए पर यश सत्प्रेरणा हमको प्रदान करेंगे ।
कर्ज चुका नहीं पाऊँगी देती हूँ श्रद्धांजलि आज
वीतरागता का लक्ष्य लेकर आगे बढ़े, गुरू आप हमें हे नाज
कभी न कभी तो आप सपने में दर्श दिखा देना, इसी विश्वास के साथ